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________________ १६ दया मोक्षका मूल है। परिग्रहकं संयोगसे राग द्वेष ही संसारमें दुःखके कारण हैं। कई एक जीव दर्शनमोहके अभावसे सम्यक दर्शनको भी पावे हैं परन्तु चरित्र मोहके उदयसे चारित्रको नहीं धरि सके हैं चारित्रको भी धारिकै वाईस परिषहोंसे पीड़िा होकर चारित्रसे भ्रष्ट होजाय हैं और कै ए: अणुपा भी धार नहीं सके हैं केवल अवत सम्यक्ती ही होय हैं, और संसारके अनन जीव सम्यक्तसे रहित मिथ्यादृष्टि ही हैं, जो मिथ्यादृष्टि हैं वे बार बार जन्म मरण करै हैं, दुःख रूप अग्निस तप्जायमान भव संकटमें पड़े हैं. मिथ्या दृष्टि जीव जीभके लोलुपी हैं और कामालं कसे मलीन हैं क्रोध मान माया लोभमें प्रवृत्ते हैं. और जो पुण्याधिकारी जीव संसार शरीर भोगनसे विरक्त होइकरि शीघ्र ही चारित्रको धारे हैं और निवाहै हैं और संयममें प्रवृत्त हैं, वे महाधीर परम समाधिसे शरीर छोड़कर स्वर्गमें बड़े देव होकर अद्भुत सुख भोगे हैं, वहांसे चार उत्तम मनुष्य होकर मोक्ष पावे हैं, कई एक मुनि तपकर अनुत्तर विमानमें अहिमन्द्र होय हैं तहांत चयकर तीर्थंकर पद पावे हैं, कई एक चक्रवर्ती बलदेव कामदेव पद पावे हैं, कई एक मुनि महातप कर निदान बांध स्वर्गमें जाय वहांसे चयकर बासुदेव होय हैं वे भोगको नाहीं तत्र सके हैं । इस प्रकार श्रीवर्द्धमान स्वामीके मुख से धर्मोपदेश श्रवणकर देव मनष्य तिर्यच अनेक जीव ज्ञानको प्राप्त भये । कई पुरुष र नि भये कई एक श्रावक भए कई एक तिथंच भी श्रावक भए । देव व्रत नहीं धारण कर सके हैं तातें अबतसम्यक्तको ही प्राप्त भए, अपनी अपनी शक्ति अनुसार अनेक जीव धर्म में प्रवर्ते, पाप कर्मके उपार्जनसे विरक्त भए थर्म श्रवणकर भगवानको नमस्कारकर अपने अपने स्थान गए । श्रेणिक महाराज भी जिनवचन श्रवणकर हर्षित होय अपने नगरको गए। अथानन्तर सन्ध्यासमय सूर्य अस होनेको सम्मुख भया अस्ताचलके निकट आया अत्यन्त आरक्ता (सुरखी) को प्राप्त भया किरण मंद भई सो यह बात उचित ही है जब मर्य का अस्त होय तब किरण मंद होय हो होंय जैस अपने स्वामीको आपदा परे तब किसके तेज की वृद्धि रहै । चकवीनक अश्रुपात सहित जे नत्र तिनको देख मानो दयाकर सूर्य अस्त भया भगवानके समवशरणविष सदा प्रकाश ही रहे हैं रात्रि दिनका विचार नाही अर सर्व पृथ्वीविषै रात्रि पड़ी सन्ध्यासमय दिशा लाल भई सो मानो धर्म श्रवणकर प्राणियोंके चित्तसे नष्ट भया जो राग सो सन्ध्याके छलकर दशों दिशानिमें प्रवेश करता भया (भावार्थ) रागका स्वरूप भी लाल होय है अर दिशावि भी ललाई भई अर सूर्यके अस्त होनसे लोगोंके नेत्र देखनेसे रहित भए क्योंकि सूर्यके उदयसे जो देखनेकी शक्ति प्रगट भई थी सो अस्त होनेसे नष्ट भई अर कमल संकुचित भए जैसे बड़े राजाओंके अस्त भये चोरादिक दुर्जन जगतविष परथन हरणादिक कुचेा करें तस सूर्यके अस्त होनेसे पृथ्वीविष अन्धकार फैल गया। रात्रि समय धर फर चम्पेकी कलीके समान जो दीपक तिनका प्रकाश भया, वह दीपक मानो रात्रिरूप स्त्रीके आभूषण ही हैं। कमलके रससे तृप्त होकर राजहंस शयन करते भये अर रात्रिसम्बन्थी शीतल मंद सुगन्ध पवन चलती भई मानो निशा (रात) का स्वास ही है अर अमरोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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