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पा-पुराण महा पवित्र राजाने पठाया अपमानकर दग्ध जो मन सो मेरे हृदयका ताप और भोति न मिटे. अब मुझे मरण ही शरण है । ऐसा विचार एक विशाखनामा भण्डारीको बुलाय कहनी भई । हे भाई, यह बात तू काहूसे मत कहियो मोहि विषते प्रयोजन है मो तू गीघ्र लेगा। तब प्रथमः तो वाने शंकाान हाय लाने में ढील करी बहु विचारी कि औषधि निमित्त मंगाया होगा सो लानेको गग अर राणी शिथिल गात्र मलिन चित्त वस्त्र प्रओढ सेजपर पड़ी। राजा दशरथ. ने अन्तःपुरमें आयकर तीन राणी देखीं सुप्रभा न दंखी । सुप्रभाते राजाका बहुत स्नेह सो इसके महिलमें राजा आय खड़े रहे ता समय जो विष लेने को पठाया हुता सो ले आया अर. कहता भया-हे देवी, रह विष लेहु यह शब्द राजाने सुना तब उनके हाथसे उठाय लिया सर आप राणीकी सेज ऊपर बैठ गए तब राणी सेजसे उतर बैठी : राजाने आग्रहकर सेज ऊपर बैठाई अर कहते भए हे बल्लभे, ऐसा क्रोध काहे किया जाकर प्राण तजा च हे हैं। सब वस्तुनिते जीतन्य प्रिय है अर सर्व दुःखांस भरणका बडा दुःख है ऐसा तोहि कहा दुःख है जो विष मंगाया। तू मेरे हृदयका सर्वस्व है जाने तुझे क्लेश उपजाया हो ताको मैं तत्काल तीब्र दंड दू। हे सुन्दरमुखी, तू जिनेन्द्रका सिद्धांत जाने है शुभ अशुभगति का कारण जान है जो विष तथा शस्त्र प्रादिसे अपघात कर मरे हैं वे दुर्गतिमें पड़े हैं ऐमी बुद्धि तोहि क्रोधसे उपजी सो क्रोधको धिक्कार, यह क्रोध महः अंधकार है अब तू प्रसन्न हो, जे पतिव्रता हैं तिनने नौलग प्रीतमके अनुरागके वचन न सुने तौलग ही क्रोधका आवेश है । तब सुप्रभा कहती भई-हे नाथ तुम पर कोप कहा परन्तु मुझे ऐसा दुःख भया जो मरण बिना शांत न होय : तब राजा कही हे राणी, तोहि ऐसा कहा दुःख भया तब राण ने कही भगवानका गंधोदक और राणि निको पठाया अर मोहि न पठाया यो मेरेमें कौन कार्यकर हीनता जानी ? अबलों तुम मेरा कभी भी अनादर न किया अब काहेतें अनादर किया यह बात राजासों रःणी कहे है ता समय वृद्ध खोजा गंधोदक ले माया अर कहता भया-हे देगी, यह भगवानका गंधोदक नरनाथ तुमको पठाया सो लेह भर ता समय तीनों राणी आई अर कहती भई हे मुग्धे पतिकी तोपर अति कृपा है तू कोपको काहे प्राप्त भई देख हमको तो गंधोदक दासी ले आई अर तेरे वृद्धखोजा ले आया पतिके तोसे प्रेममें न्यूनता नहीं जो पतिमें अपराध मी होय अर वह आप स्नेहकी बात करे तो उत्तम स्त्री प्रसन्न ही होय हैं । हे शोभने, पतिसूक्रोच करना सुखके विध्नका कारण है सो कोप उचित नाहीं सो तिनने जब या भांति संतोष उपजाया तब सुप्रभाने प्रसन्न होय गंधोदक सीसंपर चढ़ाया अर नेत्रोंको लगाया।
राजा खोजासे कोपकर कहते भए -हे निकृष्ट ! ते ऐती ढल कहां लगाई तब वह भयकर कंपायमान होय हाथ जोड सीस निवाय कहता भया-हे भक्तवत्सल हे देव हे विज्ञानभूषण ! अत्यंत वृद्ध अवस्था कर हीनशक्ति जो मैं सो मेरा कहा अपराथ मोपर आप क्रोध करो सो मैं क्रोधका पात्र नाहीं । प्रथम अवस्थाविषै मेरे भुज हाथीके सूड समान हुते उरस्थल प्रवल था भर जांघ गज बंधन तुल्य हुती अर शरीर दृढ हुता अब कर्मनिके उदयकरि शरीर अत्यंत
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