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________________ चित्रपट निरखे है अर सीता ऐसे शब्द उच्चारण कर है अर नानाप्रकारकी अज्ञान चेष्टा करे है मानो याहि वाय लगी है तातें तुम शीघ्र ही साता उपजाबनेका उपाय विचारो वह भोजनादिकते पराङ्मुख होय गया है सो बाके प्राण न छूटे ता पहिले ही यत्न करो। तब यह वार्ता चंद्रगति सुनकर अति व्याकुन भया अपनी स्त्रीसहित आयकर पुत्रको ऐसे कहता भया-हे पुत्र ! तू स्थिरचित्त हो और भोजनादि सर्व क्रिया जैसे पूर्वे करे था तैसे कर । जो कन्या तेरे मनमें बसी है सो तुझे शीघ्र ही परणाऊंगा, इस भांति कहकर पुत्रको शांतता उपजाय राजा चन्द्रगति एकांतविष हर्प विषाद अर आश्चर्यको धरता संता अपनी स्त्रीसे कहता मयाहे प्रिये, विद्याथरोंकी कन्या अतिरूपवंती अनुपम उनको तजकर भूमिगोचरियोंका सम्बंध हमको कहा उचित, अर भूमिगोचरियोंके घर हम कैसे जावेंगे अर जो कदाचित् हम जांय प्रार्थना करें अर वह न दें तो हमारे मुखकी प्रभा कहां रहेगी, तातै कोई उपायकर कन्याके पिताको यहां शीघ्र ही ल्यावें । ऐसा उपाय करें, तब भामण्डलकी माता कहती भई-हे नाथ, युक्त अथवा अयुक्त तुम ही जानो तथापि ये तुम्हारे वचन मुझ प्रिय लागे तब एक चपलवेग नामा विद्याघर अपना सेवक आदर सहित बुलायकर राजा सकल वृक्षांत वाके कानमें कहा भर नीके समझाया सो चपलवेग राजा की आज्ञा पाय बहुत हर्षित होय शीघ्र ही मिथिला नगरी जाय पहुँचा आकाशतें उरकर अश्व का भेर धर गौ महिषादि पशुनिको त्रास उपजावता भया, राजाके मंडल में उद्रा किया तब लोगों की पुकार आई सो राजा सुनकर नगरके बाहिर निकसा प्रमोद उद्वेग पर कौतुकका भरा राजा अश्वको देखता भया । कैसा है अश्व ? नव. यौवन है अर उछलता संता अति तेज को धरे मन समान है वेग जाका, सुन्दर हैं लक्षण जाके, पर प्रदक्षिणारूप महा आवर्तको परे है मनोहर है मुख जाका, अर महाबलवान खुरोंके अग्रभाग कर मानों मृदंग ही बजावै है जापर कोई चढ़ न सके पर नासिकाको शब्द करता संता प्रति शोभायमान हे ऐसे अश्वको देखकर राजा दृर्षित होय बारम्बार लोगनिस कहता भया यह काहू का अश्व बंधन तुडाय आया है तब पंडितोंके समूह राजासे प्रिय वचन कहते भए-हे राजन्, या तुरंग के समान कोई तुरंग नाही, औरोंकी तो क्या बात ऐसा अश्व राजाके भी दुर्लभ, आपके भी देखने ऐसा अश्व न आया होयगा । सूर्यके रथके तुरंगनिकी अधिक उपमा सुनिये है सो या समान नो ते भी न होंयेंगे, कोई दैवके योग आपके निकट ऐसा अश्व आया है सो श्राप याहि अंगीकार करो। अाप महापुण्याधिकारी हो, तव राजाने अश्वको अंगीकार किया। प्रश्वशालामें ल्याय सुन्दर डोरीते बांश अर भांति भांतिकी योग सामग्रीकर याके यत्न किये एक मास याको यहां हुमा एक दिन सेवकने आय राजा नमस्कारकर विनती कीनी। हे नाथ एक बनका मतंग गज आया है सो उपद्रव करे है तब राजा बड़े गजएर सवार होय वा हाधीकी ओर गए वह सेवक जिसने हाथीका वृत्तान्त आय कहा था ताके कहे मार्ग कर राजाने महावन में प्रवेश किया सो सरोवरके तट हामी खड़ा देखा अर चाकरोंसे कहा जो एक तेज तुरंग न्यानो तब मायामई अश्वको तत्काल ले गए । सुन्दर है शरीर जाका राजा उसपर चढ़े सो वह आकाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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