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अठाईसवां पर्व
२३४ कि यह मेरी बहिनका चित्रपट है चित्रपट देख मोहित चित्त भया लज्जा अर शास्त्रज्ञान अर विचार सब भूल गया लम्बे २ निश्वास नाखे होठ सूक गए गात शिथिल हो गया रात्रि अर दिवस निद्रा न आवे अनेक मनोहर उपचार कराए तो भी इसे सुख नाहीं सुगन्थ पुष्प अर सुन्दर पाहार याहि विष सगान लगें। शीतल. जलसे छोटिये तो भी संताप न जाय कबहूं मौन पकड़ रहे कबहूं हंसे कबहूं विकथा बके कबहूं उठ खडा रहे वृथा उठ चले बहुरि पाछा प्रावै ऐसी चेष्टा करे मानो याहि भूत लगा है तब बड़े बड़े बुद्धिमान याहि कामातुर जान परस्पर बात करते भए जो कन्याका रूप किसीने चित्रपटपिप लिख कर इसके लिंग आय डारा सो यह विक्षिप्त होय गया कदाचित् यह चेष्टा नारदने ही करी होय तब नारदने अपने उपाय कर कुमारको व्याकुल जान लोगनकी बात सुन कुमारके बंधूनिको दर्शन दिया तब तिनने बहुत
आदर कर पूछा-हे देव ! कही यह कौनकी कन्याका रूप है । तुमने कहां देखी यह कोऊ स्वर्गविष देवांगनाका रूप है अथवा नागकुमारीका रूप है या पृथ्वीविष आई होवेगी सो तुमने देखी तब नारद माथा हलाय कर वोला कि एक मिथिला नामा नगरी है वहां महासुन्दर राजा इन्द्रकेतुका पुत्र जनक राज्य करे है ताके विदेहा राणी है सो राजाको अति प्रिय है तिनकी पुत्री सीताका यह रूप है ऐसा कहकर फिर नारद भामण्डलसे कहते भए-हे कुमार ! तू विषाद मत कर तू विद्याधर राजाका पुत्र है तोहि यह कन्या दुर्लभ नाहीं सुलभ ही है। अर तू रूप. मात्रहींसे क्या अनुरागी भया । यामें बहुत गुण हैं याके हाव भाव पिलासादिक कौन वर्णन कर सके पर यही देख तेरा मिस वशीभूत हुआ सो क्या आश्चर्य है ? जिसे देखे बड़े पुरुषों का भी चित्त मोहित हो जाय । मैं तो यह आकारमात्र पटमें लिखा है ताकी लावण्यता बाहीविष है लिखवमें कहां आवै । नवयोवन रूप जलकर भरा जो कांसिरूष समुद्र ताकी लहरों विषे वह स्तनरूप कुम्भोंकर तिरे हैं पर ऐसी स्त्री तोय टार और कौनको योग्य, तेरा अर दाका संगम योग्य है या भांति कहकर भामण्डलको अति स्नेह उपजाया अर आप नारद आकाशविष बिहार किया । भामण्डल कामके बाणकर वेध्या अपने चिचमें विचारता भया कि यदि यह स्त्री रत्न शीघ्र ही मुझे न मिले तो मेरा जीवना नाही । देखो यह आश्चर्य है वह सुन्दरी परमकांति की धारणहारी मेरे हृदयमें तिष्ठती हुई अग्निकी माला समान हृदयको आताप करे है । सूर्य है सो तो वाह्य शरीरको आताप करे है अर काम है सो अन्तर वाह्य दाह उपजावै है । सूर्यके माताप निवारवेको तो अनेक उपाय हैं परन्तु कामके दाह निवारवेका उपाय नाहीं । यह मुझे दो अवस्था आय बनी हैं कै तो बाका संयोग होय अथवा कामके बाणोंकर मेरा मरण होयगा निरन्तर ऐसा विचारकरि भामण्डल विह्वल हो गया सो भोजन तथा शयन सब भूल गया, न महलविष न उपवनविष याहि काहू ठौर साता नहीं, यह सब वृत्तान्त कुमारके व्याकुलताका कारण नारद कृत कुमारकी माता जानकर कुमारके पितासे करती भई- हे नाथ! अनर्थका मूल जो नारद साने एक अत्यन्त रूपवती स्त्रीका चित्रपट लायकर कुमारको दिखाया सो कुमार चित्रपटको देखकर अति विभ्रम चित हो गया सो धीर्य नहीं धरै है लज्जारहित होय गया है बारम्बार
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