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पग-पुराण जे नक्षत्र तिनसे श्राकाश शोभ । गौतमस्वामी कहे हैं-हे राजा श्रेणिक ! ऐसा रामका माहात्म्य देखकर जनकने अपनी पुत्री सीताको रामको देनी विचारी बहुत कहनेकरि कहा ? जीबोंके संयोग अथवा वियोगका कारण भाव एक कर्मका उदय ही है सो वह श्रीराम श्रेष्ठ पुरुष महासौभाग्यवंत अतिप्रतापी औरनमें न पाइये ऐसे गुणोंकर पृथिवीमें प्रसिद्ध होता भया जैसे किरणोंके समू कर सूर्य महिमाको प्राप्त होय ॥ इति श्रीरविषेणोचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविषै म्लेच्छनिकी हार,
रामकी जीतका कथन वर्णन करनेवाला सताइसबां पर्व पर्ण भया ।। २७॥
अथानन्तर ऐसे पराक्रमकर पूर्ण जो राम तिनकी कथा विना नारद एकक्षण भी न रहे सदा राम कथा करवो ही करे । कैसा है नारद रामके यश सुनकर उपजा है परम पाश्चर्य जाको बहुरि नारदने सुनी जो जनकने रामको जानकी देनी विचारी । कैसी है जानकी ? सर्व पृथिवीवि प्रकट है महिमा जाकी । नारद मनमें चिंतवता भया । एकबार सीताको देख जो कैसी है.कैसे लक्षणोंकर शोभायमान है जो जनकने रामको देनी करी है सो नारद शीलसंयुक्त है हृदय जाका, सीताके देखनेको सीताके घर आया सो सीता दर्पण में मुख देखती हुती सो नारदकी जटा दर्पणमें भासी सो कन्या भयकर व्याकुल मई, मनमें चिनयती भई-हाय माता यह कौन है भयकर कम्पायमान होय महलके भीतर गई। नारद भी लारही महल में जाने लगे तब. दूरपालीने रोका सो नारदके अर द्वारपालीके कलह हुआ। कलहके शब्द सुन खड़गके अर धनुषले थारक सामन्त दौड़े ही गये । कहते भए, पकड लो पकड़ लो यह कौन है। ऐसे तिन शस्त्र धारियोंके शब्द सुनकर नारद डरा, आकाश वर्ष गमनकर कैलाश पर्वत गया, तहां तिष्ठकर चिंतवता भया। .. जो मैं महाकष्टको प्राप्त भया सो मुशकिलसे बचा नवा जन्म पाया जैसे पक्षी दावानल से बाहिर निकसे तैसे मैं वहांसे निकसा । सो धीरे २ नारदकी कांपनी मिटी अर ललाटके पसेव पूंछ केश विखर गए हुते ते समारकर बांधे, कापै हैं हाथ जिसके, ज्यों ज्यों वह वात याद आचे त्यों त्यों निश्वास नाषे मह क्रोधायमान होय मस्तक हलाएं ऐसे विचारता भया कि देखो कन्याकी दुष्टता, मैं अदुष्टचित्त सरल स्वभाव रामके अनुरागते ताके देखनेको गया हुता सो मृत्यु समान अवस्थाको प्राप्त भया यम समान दुष्ट मनुष्य मोहि पकड़नेको भाये सो भली भई जो बचा, पकड़ः न गया। अब वहु पापिनी मो आगे कहां बचे जहां जहां जाय वहां वहां ही उसे कष्टमें नाखू मैं विना बजाये वादित्र नाचू सो जब वादिन बाजे तब कैसे टरू ऐसा विचारकर शीघ्र ही वैताइयकी दक्षिण श्रेणीविष जो रथनूपुर नगर वर्हा गया महा सुन्दर जो सीताका रूप सो चित्रपटविष लिख लेगया, कैसा है सीताका रूप ! महासुन्दर है ऐसा लिखा मानों प्रत्यक्ष ही है सो उपवनविष भामंडल चन्द्रगतिका पुत्र अनेक कुमारोंसहित क्रीडा करने को आया हुता सो चित्रपट उसके सभीप डार आप छिप रहा सो भामण्डलने यह वो न जान्या
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