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सत्ताईसवा पर्व शार्दल समान हुते ते हू अतिचोभको प्राप्त भए, महावादित्रोंके शब्द करते अर मुखसे भयानक शम्द बोलते अर धनुषवाण खड्ग चक्रादि अनेक शस्त्रोंको थरे पर रक्त वस्त्र पहिरे, खंजर जिनके हाथमें, नाना वर्णका अंग जिनका, कैयक काजल समान श्याम, कैयक कर्दम समान, कैयक ताम्रपर्स, वृनोंके बक्कल पहिरे पर नानाप्रकार के गेरुआदि रंग तिनकर लिए हैं अंग जिनके अर नानाप्रकारके वृनोंकी मंजरी तिनके हैं छोगा सिरपर जिन्के, अर कोडी सारिखे हैं दांत जिनके पर विस्तीर्ण हैं उदर जिनके ऐसे भासें मानों कुटक जातिके वृक्ष ही फूले हैं अर कैयक भील भयानक आयुधोंको धरे कठोर है जंघा जिनकी, भारी भुजावोंके वरणहारे असुरकुमार देवों सारिखे उन्मत्त, महानिर्दई पशुमासके भक्षक, महादृढ जीवहिंसाविर्ष उद्यमी, जन्मही से लेकर पापोंके करणहारे, तत्काल खोटे प्रारम्भनके करणहारे अर सूकर भैंस व्याघ्र न्याली इत्यादि जीवोंके चिह्न हैं जिनकी ध्वजावोंमें नाना प्रकारके जे वाहन तिन पर चढ़े, पत्रोंके है छत्र जिनके नानाप्रकारके युद्धके करणहारे अति दौड़के करणहारे महा प्रचंड तरंग समान चंचल वे भील मेघमाला समान लक्ष्मण रूप पर्वतपर अपने स्वामीरूप पवनके प्रेरे वाण वृष्टि करते भए, तब लक्ष्मण तिनके निपात करनेको उद्यमी तिनपर दोड़े, महाशीघ्र है वेग जिनका जैसे महा गजेन्द्र वृक्षके समूह पर दौडे सो लक्ष्मणके तेज प्रतापकर वे पापी भागे सो परस्पर पगों कर मसले गये तब तिनका अधिपति अन्तरगत अपनी सेनाको धीर्य बंधाय सकल सेना सहित भाप लक्ष्मणके सन्मुख आया महाभयंकर युद्ध किया, लक्षणको रथरहित किया, तब श्रीरामचन्द्रने अपना रथ चलाया, पवन समान है वेग जाका, लक्ष्मणके समीप आए, लक्ष्मणको दूजे रथ पर चढ़ाया भर आप जैसे अग्नि वनको भस्म करे तैस विनकी अपार सेनाको वाण रूप अग्नि कर भस्म करते भए, कैयक तो वाणनिकरि मारे अर कैयक कनकनामा शस्त्रसे विध्वंसे कैयक तोमरनामा आयुषसे हते, कैयक सामान्य चक्रनामा शस्त्रसे निपात किये, वह म्लेच्छोंकी सेना महाभयंकर प्रत्येक दिशाको जाती रही, छत्र चमर ध्वजा धनुष आदि शस्त्र डार डार भाजे महा पुण्याधिकारी जो राम ताने एक निमिषमें म्लेच्छोंका निराकरण किया जैसे महामुनि क्षणमात्र में सर्व कषायोंका निपात करें तैसे उसने किया । वह पापी अंत गत अपार सेनारूप समुद्रकर पाया हुता सो भय खाय दश घोडोंके असवारोंसे भागा तब श्रीरामने आज्ञा करी ये नपुंसक युद्धसे परामुख होय भागे अब इनके मारने कर कहा ? तब लक्ष्मण भाईसहित पाछे बाहुडे । ने 'म्लेच्छ भयसे व्याकुल होय सह्याचल विन्ध्याचलके वनोंमें छिप गये। श्रीरामचन्द्र के भयसे पशु हिंसादिक दृष्ट कर्मको तज वन फलोंका आहार करें जैसे गरुडते सर्प डरै तैसे श्रीरामसे डरते भए । लक्ष्मणसहित श्रीरामने शांत है स्वरूप जिनका, राजा जनकको बहुत प्रसन्न कर विदा किया पर पाप पिताके समीप अयोध्याको चले सर्व पृथिवीके लोक आश्चर्यको प्राप्त भये । यह 'सबको परम आनन्द उपजाया, परमहर्षवान रोमांच होय आये । रामके प्रभावसे सवप थ्वी विभूति से शोभायमान भई जैसे चतुर्थ कालके आदि ऋषभदेवके समय सम्पदासे शोभायमान भई हुती धर्म अर्थ कामकर युक्त जे पुरुष विनसे जगत ऐसा भासता मया जैसे बर्फ के अवरोधकर वर्जित
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