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________________ २३६ पद्म-पुराण · भर जैसे अकेला उगता ही बाल सूर्य घोर अंधकार के समूह को हरे ही हरै तैसे हम बालक ही तिन दुष्टों को जीतें ही जीतें । ये वचन रामके सुनकर राजा दशरथ अति प्रसन्न भए, रोमांच होय चाए अर बालक पुत्रके भेजनेका कछु इक विषाद भी उपजा नेत्र सजल होय गए । राजा मनमें विचार है— जो महापराक्रमी त्यागादि व्रतके वारणहारे क्षत्री तिनकी यही रीति है जो प्रजाकी रक्षा के निमित्त अपने प्राण भी तजनेका उद्यम करें अथवा आयुके वय विना मरण नाही यद्यपि गहन रणमें जाय तौ भी न करै । ऐमा चितवन करता जो राजा दशर्थ ताके चरणकमलयुगल को नमस्काकर राम लक्ष्मण बाहिर निसरे । सर्व शास्त्र विद्या में प्रवीण सर्व लक्षणों कर पूर्ण सब को प्रिय है दर्शन जिनका, चतुरंग सेनाकर मण्डित, विभूतिकर पूर्ण अपने तेजकर देदीप्यमान, दोनों भाई, राम लक्ष्मण रथमें आरूढ़ होय जनककी मदत चले सो इनके जायवे पहिले जनक पर कनक दोनों भाई, पर- सेनाका दो योजन अंतर जान युद्ध करणको चढे हुवे सो जनक कनकके महारथी योधा शत्रुत्रोंके शब्द न सहते संते म्लेच्छों के समूहमें जैसे मेथकी पटायें सूर्यादि ग्रह प्रवेश करें तैसे यह थे सो म्लेच्छोंके पर सामंतोंके महायुद्ध भया जाके देखे पर सुने रोमांच होय आवें । कैसा संग्राम भया बडे शस्त्रनका है प्रहार जहां, दोनों सेनाके लोक व्याकुल भए, कनकको म्लेच्छका दवाव भया तत्र जनक भाईकी मदतके निमित्त अतिक्रोधाय - मान होय दुर्निवार हाथियोंकी घटा प्रेरता भया सो वे बरबर देशके म्लेच्छ महा भयानक जनकको भी दबाते भये ताही समय राम लक्ष्मण जाय पहुँचे, अति अपार महागहन म्लेच्छकी सेना रामचन्द्र ने देखी, सो श्रीरामचन्द्र का उज्ज्वल छत्र देख कर शत्रुवों की सेना कंपायमान भई, जैसे पूर्णमासीके चन्द्रमाका उदय देखकर अंधकारका समूह चलायमान होय, म्लेच्छों के वाणोंकर जनकका बषतर टूट गया हुता और जनक खेदखिन भया हुता सो रामने धीर्य बंधाया जैसे संसारी जीव कर्मोंके उदय कर दुःखी होय सो धर्मके प्रभाव कर दुखोंसे छूट सुखी होय । वैसे जनक रामके प्रभावकर सुखी भया, चंचल तुरंगनि कर युक्त जो रथ तामें आरूढ जो राघव महाउद्योत रूप है शरीर जिनका वषतर पहिरे हार पर कुंडल कर मंडित धनुष चढाय और बाब हाथमें सिंहके चिन्हकी हैं ध्वजा जिनके अर जिन पर चमर दुरे हैं और महामनोहर उज्ज्वल छत्र सिर पर फिरे हैं पृथिवीके रक्षक धीर वीर है मन जिनका से श्रीराम लोकके वल्लभ प्रजाके पालक शत्रुत्रोंकी विस्तीर्ण सेना में प्रवेश करते भए । सुभटानेके समूह कर संयुक्त जैसे सूर्य किरणोंके समूह कर सोधै तैसे शोभते भए जैसे माता हाथी कदलीवनमें बैठा केलोंके समूहका विध्वंस करे तैसे शत्रुत्रोंकी सेनाका भंग किया । जनक अर कनक दोनो भाई बचाये पर लक्ष्मब जैसे मेघ बरसें तैस वाणोंकी वर्षा करता भया, तीक्ष्ण सामान्य चक्र भर शक्ति कनक त्रिशूल कुठार करीत इत्यादि शस्त्रोंके समूह लक्ष्मणके भुजावों कर चले, तिनकर अनेक म्लेच्छ सुबे जैसे फरसीनकर वृक्ष करें, ते भील पारधी महाम्लेच्छ लक्ष्मणके वाणोंकर विदारे गये हैं उरस्थल जिनके, कटगई हैं भुजा र ग्रीवा जिनकी, हजारां पृथिवीमें पडे, तब वे पृथिवीके कंटक विनकी सेना लक्ष्मण आगे भागी, लक्ष्मण सिंहसमान दुर्निवार ताहि देखकर जे म्लेच्छों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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