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सत्ताईसों पर को पकड गढमें राखें । कालिंद्री भागा नदीकी तरफ विषम स्थल हैं तहां जावें अथवा विपुलाचलकी तरफ जावे अथवा सर्व सेनासहित कंजगिरिकी ओर जावें पर-सेना महा भयानक भाव है। साधु श्रावक सर्वलोक अति विह्वल हैं ते पापी गो आदि सब जीवोंके भक्षक हैं सो जो आप आज्ञा देहु यो करें यह राज्य भी तिहारा और पृथिवी भी तिहारी यहांकी प्रतिपालना सब तुमको कर्तव्य है, प्रजाकी रक्षा किये धर्मकी रक्षा होय है, श्रावक लोक भावसहित भगवानकी पूजा करै हैं न नाप्रकारके व्रत धरै हैं, दान करै हैं, शील पाले हैं, सामायिक करे हैं, पोशा परिक्रमण करे हैं, भगवानके बडे बडे चैत्यालयोंमें महा उत्सव होय है, विधिपूर्वक अनेक प्रकार महापूजा होय है. अभिषेक होय है, विवेकी लोक प्रभाव ना करे हैं अर साधु दश लक्षण धर्म कर युक्त प्रात्मध्यानमें आरूढ़, मोक्षका साधक तप करें हैं प्रजाके नष्ट भए साधु श्री श्रावकका धर्म लुपै है अर प्रजाके होते धर्म अर्थ काम मोक्ष सधे हैं । जो राजा परचक्रतें पृथिवीको प्रतिपालना करे सो प्रशंसाके योग्य है, राजाके प्रजाकी रक्षातें या लोक परलोकविष कन्याणकी सिद्धि होय है प्रजा बिना राजा नहीं अर राजा बिना प्रजा नहीं, जीवदयामय धर्मका जो पालन करे सो यह लोक परलोकमें सुखी होय । धर्म अर्थ काम मोक्षकी प्रवृत्ति लोगोंके राजाकी रक्षातें होय है अन्यथा कैसे होय ? राजाके भुजबलकी छाया पायकर प्रजा सुखसे रहै जाके देशमें धर्मात्मा धर्म सेवन करें हैं दान तप शील पूजादिक करें हैं सो प्रजाकी रक्षाके योगसे छठा अंश राजाको प्राप्त होय है। यह सर्व वृत्तांत राजा दशरथ सुन कर चलनेको उद्यमी भए अर श्रीराम को बुलाय राज्य देना विचारा । बादित्रोंके शब्द होते भए तब मंत्री आए अर सब सेवक आए हाथी घोडे रथ पयादे सब आय ठाडे भए जलके भरे स्वर्णमयी कलश स्नानके निमित्त सेक्क लोग भरलाए अर शस्त्र वांधकर बडे बड़े सामंत लोक आए अर नृत्यकारिणी नृन्य करती. भई अर राजलोककी स्त्री जन नानाप्रकारकै बस्त्र आभूषण पटल में ले ले पाई। यह राजाभिषेकका आडंबर देखकर राम दशरथसे पूछते भये कि हे प्रभो! यह कहा है ? तब दशरथने कही-हे पुत्र ! तुम या पृथिवीकी प्रतिपालना करो मैं प्रजाके हित निमिच शत्रुके समूडसे लडने जाऊं हूं वे शत्रु देवोंकर भी दुर्जय हैं तब कमलसारिखे नेत्र हैं जिनके ऐसे श्रीराम कहते भए-हे तात ! ऐसे रंकन पर एता परिश्रम कहा ? ते आपके जायबे लायक नहीं, वे पशुसमान दुरात्मा जिनमे संभापण करना भी उचित नाही तिनके सम्मुख युद्धकी अभिलाषाकर आप कहां पधारें। उन्दरू ( चूहा ) के उपद्रव कर हस्ती क्रोध न करे अर रुईके भस्म करने के अर्थ अग्नि कहा परिश्रम कर तिनपर जानकी हमको प्राज्ञा करो यही उचित है।
___ ये राम के वचन सुन दशरथ अति हर्षित भये तब राम को उर से लगाय कर कहते भये । हे पद्म ! कमलसमान हैं नेत्र जाके ऐसे तुम बालक सुकुमार अंग कैसे उन दुर्टीको जीतोगे यह वात मेरे मनमें न आवै। तब राम कहते भये-हे तात कहा तत्कालका उपजा अग्निका कसका मात्र भी विस्तीर्ण वनको भस्म न करे, करे ही करे, छोटी बडी अवस्थापर कहा प्रयोजन
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