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पा-पुराण है अंग जाका, सीता कहिए भूमि ता समान क्षमाकी धरणहारी तात जगामें सीता कहाई, बदन कर जाता है चन्द्रमा जाने, पल्लव समान है कोमल आरक्त हस्त जाके, महाश्याम महासुन्दर इन्द्रनील मणि समान है केशोंके समूह जाके, अर जीती है मदकी भरी हंसिनी की चाल जाने, अर सुन्दर है भोह जाकी पर मौलश्रीके पुष्प समान मुखकी सुगंध, गुंजार को हैं भ्रमर जापर, अति कोमल है पुष्पमाला समान भुजा जाकी अर के हरी समान हैं कटि जाकी अर महा श्रेष्ठ रसका भरा जो केलेका थंभ वा समान है जंघा जाकी, स्थल कमल समान महामनोहर हैं चरण जाके, अर अतिसुन्दर है कुचयुग्म जाका, अति शोभायमान है रूप जाका, महाश्रेष्ठ मन्दिरके आंगन में महारमणीक सातसै कन्याओंके समूहमें शास्त्रोक्त क्रीडा करे, जो कदाचित् इन्द्रकी पटराणी शची अथवा चक्रवर्तीकी पटराणी सुभद्रा याके अङ्गकी शोभाको किंचित मात्र भी धरे को वे अतिमनोशरूप भासें श्रेमी यह सीता सबनितें सुन्दर है, याको रूप गुणयुक्त देख राजा जनकने विचारा, जैसे रति कारदे ह को योग्य है तैसे यह कन्या सर्व विज्ञानयुक्त दशरथके बड़े पुत्र जो राम तिन हीके योग्य है, सूर्यको किरणके योगते कमलकी शोभा प्रकट होप है।
इति श्रीविषणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत मन्थ, ताकी भाषा बचनिकाविषै सीता
प्रभामंडल का जन्म कथा नाम बर्णन करनेबोलो छब्बीसवां पर्ब पूर्ण भयो ॥२६॥
अथानन्तर राजा श्रेणिक यह कथा सुनकर गौतमस्वामीको पूछता भया-हे प्रभो! जनकने रामका कहा माहात्म्य देखा जो अपनी पुत्री देनी विचारी तब गणधर चित्तको आनन्दकारी वचन कहते भए-हे राजन् ! महापुण्याधिकारी जो श्रीरामचन्द्र तिनका सुयश सुन, जो कारणते जनक महा बुद्धिमानने रामको अपनी कन्या देनी विचारी। बैताड्यपर्वतके दक्षिण भागमें अर कैलाश पर्वतके उत्तर भागमें अनेक अंतर देश से हैं तिनमें एक अर्धचर्वर देश. असंयमी जीवनिका है जहां महा मूढ जन निर्दई म्लेच्छ लोकों कर भरा ताविष एक मयूरमाल नामा नगर कालके नगर समान महा भयानक, तहां आंतरगतम नामा म्लेच्छ राज्य करे सो महा पापी दुष्टोंका नायक महानिर्दई बडी स्नासे नानाप्रकारके श्रायुधोंकर मण्डित सकल म्लेच्छ संग लेय आर्य देश उजाडनेको आया सो अनेक देश उजाडे । केमे हैं म्लेच्छ ? करुणाभाव रहित प्रचंड हैं चित्त जिनके अर अत्यंत है दौड जिनकी सो जनक राजाका देश उजाडने को उद्यमी भए जैस टिड्डीदल आवै तैसे म्लेच्छोंके दल अाए सबको उपद्रव करण लगे तब राजा जनकने अयोध्याको शीघ्र ही मनुष्य पठाए, म्लेच्छोंके आवनेके सब समाचार राजा दशरथको लिखे सो जनकके जन शीघ्र ही जाय सकल वृत्तांत दशरथसे कहते भए-हे देव ! जनक वीनती करी है परचक्र भीलोंका आया सो सब पृथिवी उजाडै है अनेक आर्य देश विध्वंस किए । ते पापी प्रजाको एक वर्ग किया चाहै हैं सो प्रजा नष्ट भई तब हमारे जीनेकर कहा, अब हमको कहा कतव्य है ? उनसे लडाई करना अथवा कोई गढ पकड तिहुँ लोगों
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