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________________ seater २६ होयगा शोभनीक वस्तुमें सन्देह कहा ? अब तुम या पुत्रको लेवो पर प्रसूतिके घर में प्रवेश कर भर लोकनिको यही जनावना जो राखीके गुप्त गर्भ हुता सो पुत्र भया तब राणी पतिकी श्राज्ञा प्रमाण प्रसन्न होय प्रसूतिगृहविषै गई, प्रभातविषै राजाने पुत्रके जन्मका उत्सव किया । रथन्पुर में पुत्र के जन्मका ऐसा उत्सव भया जो सर्व कुटुम्ब श्रर नगरके लोग आश्चर्य को प्राप्त भए रनोंके कुण्डलकी किरणोंकर मंडित जी यह पुत्र सो माता पिताने याका नाम प्रभामण्डल धरा भर पोषन के निमित्त थायको सोंपा । सर्व अन्तःपुरकी राणी आदि सकल स्त्री तिनके हाथ रूप कमलोंका भ्रमर होता भया । भावार्थ - - यह बालक सव लोकोंको वल्लभ, बालक सुखसों तिष्ठे हैं, यह तो कथा यहाँ ही रही । श्रथानन्तर मिथिलापुरीमैं राजा जनककी रानी विदेहा, पुत्रको हरा जान विलाप करती भई, अति ऊंचे स्वरकर रुदन किया सर्व कुटुंक्के लोक शोकसागर में पड़े रानी ऐसे पुकारे मानो शस्त्रकर मारी है--हाय ! हाय पुत्र ! तुझे कौन लेगया, मोको महादुखका करणहारा वह निर्दई कठोर चित्तके हाथ तेरे लेने पर कैसे पड़े ? जैसे पश्चिम दिशा की तरफ सूर्य आय अस्त हो जाय तैसे तू मेरे मंदभागिनीके आयकर अस्त होय गय । मैं भी परभवमें किसीका बालक विदोहा था सो मैं फल पाया तातैं कभी भी अशुभ कर्म न करना । जो अशुभ कर्म है सो दुखका बीज है। जैसे वीज बिना वृक्ष नाही तैसे अशुभ कर्म बिना दुख नहीं । जा पापीने मेरा पुत्र हरा सो मोकू ही क्यों न मार गया, अधमुईकर दुःख के सागर में काहेको डुत्रो गया । या भांति राती अति विलाप किया, तब राजा जनक आय वीर्य वंथावता भया हे प्रिये, तू शोक को मत प्राप्त होवे तेरा पुत्र जीव हैं काहूने हरा हैं सो तू निश्चय सेती देखेगीं वृथा काहेको रुदन करें है पूर्व कर्मके प्रभावकर गई वस्तु कोई तो देखिए कोई न देखिए तू स्थिरता को प्राप्त हो । राजा दशरथ मेरा परम मित्र है सो वाको यह वार्ता लिखूं हूं वह अर मैं तेरे पुत्रको तलाशकर लावेंगे भले २ प्रवीण मनुष्य तेरे पुत्र के टूढिनेको पठायेंगे। या भांति कहकर राजा जनकने अपनी स्त्रीको संतोष उपजाय दशरथके पास लेख भेजा सो दशरथ लेख बांच महाशोकवंत भया, राजा दशरथ अर जनक दोनोंने पृथ्वीमें बालकको तलाश किया परन्तु कहीं भी देखा' नाहीं तब महाकष्टकर शोकको दाब बैठ रहे ऐसा कोई पुरुष अथवा स्त्री नहीं जो इस बालक के गए सुकर भरे नेत्र न भया होय, सब ही शोकके वश रुदन करते भए । 1 अथानन्तर प्रभामण्डलके गए का शोक भुलावनेको महामनोहर जानकी बाल लीलाकर सर्व धुलोको आनन्द उपजावती भई । महाहर्षको प्राप्त भई । जो स्त्रीजन तिनकी गोदमें तिष्ठती अपने शरीरकी कांतिकर दशों दिशाको प्रकाशरूप करती वृद्धिको प्राप्त भई । कैसी है जानकी १ कमल सारिखे हैं नेत्र जाके घर महासुकंठ प्रसन्न वदन मानो पद्मद्रहके कमलके निवाससे साचात् श्रादेवी ही आई है, याके शरीररूप क्षेत्र में गुणरूप धान्य निपजते भए ज्यों २ शारीर बढ़ा त्यों त्यों गुण बड़े समस्त लोकोंको सुखदाता अत्यन्त मनोज्ञ सुन्दर लचयोंकर संयुक ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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