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________________ वन्धुरग कंडलमण्डितने अन्याय मार्ग किया सो यह मेरा परम शत्र है जो गर्भ में विराधना करू ती राणी मरणको प्राप्त होय सो यासे मेरा वैर नाही तातें जब यह गर्भ बाहिर आवै तब मैं याहिं दुखद् ऐसा चिंतवता हुआ पूर्व कर्मके बैरकरि क्रोधायमान जी देव सो कंडलमण्डितके जीयपर हाथ मसले । ऐसा जानकर सर्व जीवनिकू क्षमा करनी काहू को दुख न देना जो कोई काहू को दुख देय है सो आपकी ही दुख सागरमें डुबोवे है। अथानन्तर समय पाय रानी विदेहाके पुत्र अर पुत्रीका युगल जन्न भया तब वह देव पुत्र को हरता भया सो प्रथम तो क्रोधके योगकरि नाने ऐसी विचारी कि मैं याहि शिलापर पटक मारू यहुरि विचारी कि धिक्कार है भो मैं असा अनन्त संसारका कारण पाप चितया, बालहत्या समान और कोई पाप नाही, पूर्व भवमें मैं मुनिव्रत बरे हुते तृणमात्रका भी विराधन न किया सर्व आरंभ तजा, नाना प्रकार तप किए श्रीगुरुके प्रसादसे निर्मल धर्म पाय ऐसी विभूतिको प्राप्त भया अब मैं ऐसा पाप कैसे कर अल्पमात्र भी पापकर महादुखकी प्राप्ति हो है। पापकरि यह जीव संसार वनविप बहुत काल दुखरूप अग्निमें जलें है अर जो दयावान निर्दोष है भावना जाकी महासावधानरूप है सो धन्य है । सुगति नामा रत्न वाके हाथमें है । वह देन ऐसा विचारकर दयावान होयकर बालकको आभूषण पहराय काननविर्षे महा देदीप्यमान कुण्डल घाले। परणलब्धी नामा विद्याकर आकाशते पृथिवीविष सुखकी ठौर पंथराय आप अपने धाम गया सो रात्रिके समा चन्द्रगति नामा विद्य धरने या चालकको आभरणकी ज्योंतिकर प्रकाशमान आकाशसे पड़ता देखा तब विचारी कि यह नक्षत्रपात भया तथा विद्युत्पात मया यह विचारकर निकट आय देखे तो बालक है । तब हर्षकर चालकको उठाय लिया पर अपनी राणी पुष्पवती जो सेजमें सूती हुनी ताकी जांघोंके मध्य धर दिया और राजा कहता भया-हे राणी! उठो उठो तिहारे बालक भया है बालक महाशोभायमान हैं। तब रानी सुन्दर है मुख जाका, ऐसे बालकको देख प्रसन्न भई, जाकी ज्योतिके समूहकर निद्रा जांती रही, महाविस्मयको प्राप्त होय राजाको पूछती भई-हे नाथ ! यह अद्भुन बालक कौन' पुण्यवती स्त्रीने जाया। तब राजाने कडी-हे पारी! तैंने जना, तो समान और पुए गवती कौन है, धन्य है भाग्य तेरा, जाके ऐला पुत्र भया तब वह रानी कहती भई-हे देव ! मैं तो बांझ हूं मेरे पुत्र कहां ? एक तो मुझे पूर्वोपार्जित कर्मने ठगी बहुरि तुम कहा हास्य करो हो ? तब राजाने कही हे देनी, तुम शंका मत करो स्त्रियोंके प्रच्छन्न (गुप्त) भी गर्भ होय है तब रानी ने कही ऐसे ही हो हु परन्तु याके यह मनोहर कुण्डल कहाते आए ऐसे भूमण्डलमें नहीं तब राजाने कही-हे रानी! ऐसे विचारकर कहा ? यह बालक आकाशसे पड़ा और मैं झेला तुझे दिया यह बड़े कुलका पुत्र है याके लक्षशनिकर जानिये है यह मोटा पुरुष है अन्य स्त्री तो गर्म के मारकर खेदखिन्न भई हैं परन्तु हे प्रिये, तेने याहि सुखसे पाया पर अपनी कुधिमें उपजा भी बालक जो माता पिताका भक्त न होय अर विवेकी न होय शुभ काम न करे तो ताकर कहा ? कई एक पुत्र शत्रु समान होय परणवे हैं ता उदरके पुत्र का कहा विचार ? तेरे यह पुत्र सुपुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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