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उपवासादिक यह मांसाहारीको नरकसे नाहीं बना सके हैं । या जगतमें ये सब ही जाति के जीव बाथव भए हैं तातें जो पापी मांसका भक्षण करें है ताने तो सर्व बांधव भषे जो दुष्ट निर्दयी मच्छ मग पक्षियोंको हने हैं अर मिथ्यामार्गमें प्रवरते हैं सो मधु मांस मवखत महाङ्कगतिमें जावे हैं। यह मांस वृक्षनितें नाहीं उपजे है, भूमितें नाहीं उपजै है, पर कमलकी न्याई जल से नाही निपजै है अथवा अनेक वस्तुओंके योगते जैसे औषथि बने है तैसे मांस की उत्पत्ति नाही होय है, दुष्ट जीव निर्दयी वा गरीब बडा वल्लभ है जीतव्य जिनको ऐसे पक्षी मृग मत्स्यादिक तिनको हनकर मांस उपजावै हैं सो उत्तम जीव दयावान नहीं भर्षे पर जिनके दुग्धकरि शरीर वृद्धिको प्राप्त होय ऐसी गाय भैंस छेली तिनके मृतक शरीरको भर्ख हैं अथवा मार मारकर भरे हैं तथा तिनके पुत्र पौत्रादिकको भी हैं ते अधर्मी महानीच नरक निगोदके अधिकारी हैं जो दुराचारी मांस भखे हैं ते माता पिता पुत्र मित्र सब ही भर्से । या पृथ्वीके तले भवनबासी पर व्यन्तर देवोंके निवास हैं अर मध्य लोकमें भी हैं ते दुष्ट कर्मके करनहारे . नीच देव हैं जो जीव कषाय सहित तापस होय हैं ते नीच देवों में निपजे हैं. पातालमें प्रथम ही रत्नप्रभा पृथ्वी ताके तीन भांग, तिनमें खर पर पंक भागमें तो भवनवासी अर व्यनार देवनिके निवास हैं पर वहल भागमें पहिला नरक ताके नीचे छह नरक और हैं ये सातों नरक छह राजूमें हैं पर सातवें नरकके नीचे एक राजूमें निगोदादि स्थावर ही हैं, स जीव नहीं हैं पर निगोदसे तीन लोक भरें हैं।
अथानन्तर नरकका व्याख्यान सुनो-कैसे हैं नारकी जीव ? महाकर, महाडशन्द बोलनेहारे, अति कठोर है स्पर्श जाका, महादुगंध अन्धकाररूप नरकमें पड़े हैं। उपमारहित जे दुख तिनका भोगनहारा है शरीर जिनका, महाभयंकर नरक ताहि कुम्भो कहिए जहां वैतरणी नदी है अर तीक्ष्ण कंटक युक्त शान्मलीच जहां अमिपत्रवन तीक्ष्ण खडगकी धारा समान है पत्र जिनके अर तहां देदीप्यमान अग्निसे ततायमान तीखे लोहेके कीले निरंतर है उन नरकनिमें मधु मां लके भक्षणहारे अर जीवोंके मारणहारे निरंतर दुख भोगे हैं। जहां एक माध अंगुलभी चत्र सुखका कारण नहीं अर एक पल को भी नारकियों को विश्राम नाही जो चाहें कि कई भाजकर छिप रहें तो जहां जांय तहां ही नारकी मार अर असुरकुमार पापी देव बताय देय। महा प्रज्ज्वलित अंगारतुल्य जो नरककी भूमि तामें पडे ऐसे विलाप करें जैसे अग्निमें मत्स्य व्याकुल हुआ विलाप करें पर भयसे व्याप्त काहू प्रकार निकस कर अन्य ठौर गया था तो तिनको शीतलता निमित्त और नारकी वेतरणी नदीके जलसे छींटे देय सो बेतरखो महा दुर्गध चारजलकी भरी ताकरि अधिक दाहको प्राप्त होंय बहुरि विश्रामके अर्थ मसिपत्र बनमें जाय सो असिपत्र सिर पर पडे मानो चक्र खड्ग गदादिक हैं तिनकरि विदारे जावें, बिद गये हैं नासिका कर्ण कंधा जंधा आदि शरीरके अंग जिनके, नरकमें महाविकराल महादुखदाई पवन है अर रुधिरके कण वरस हैं जहां पानीमें पेलिए हैं पर क्रूर शम्द होय हैं तीष शलोंसे मेदिर हैं महाविलापके शब्द करै हैं अर शाल्मली वृक्षोंसे घसीटिए हैं भर महामनगरोंके घातसे कुटिए
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