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पच्चीसवा पर्व इन्द्र के ऐरावत हस्ती समान १ और महा केसरी सिंह २ अर सूर्य ३ तथा सर्व कला पूर्ण चन्द्रमा ४ ये पुराणं पुरुषोंके गर्भ में आवनेके अद्भत स्वप्न देख आश्चर्यको प्राप्त भई बहुरि प्रभातके वादिष पर मंगल शब्द सुन कर सेजतें उठी। प्रभात क्रियातें हर्षको प्राप्त भया है मन जाका, महा विजयवंती सखी जनमण्डित भरतारके समीप जाय सिंहासन पर बैठी । कैसी है राणी ? सिंहासनको शोभित करणहारी हाथ जोड नम्रीभूत होय मनोहर स्वप्न जे देखे तिनका वृत्तान्त स्वामीसे कहती मई । तब समस्त विज्ञानके पारगामी राजा स्वप्नोंका फल. कहते भए-हे कांते ! परम भाश्वर्यका कारण तेरे मोक्षगामी पुत्र अंतर वाह्य शत्रुवोंका जीतनेहारा महा पराक्रमी होयगा । रागद्वेष मोहादिक अंतरंग शत्रु कहिए और प्रजाके बायक दुष्ट भूपति वहिरंग शत्रु कहिए या भांति राजाने कही तब राणी अति हर्पित होय अपने स्थानक गई मन्द मुलकन रूप जो केश उनसे संयुक्त है मुख कमल जाका अर राणी के कई पति सहित श्रीजिनेंद्रके जे चैत्यालय तिनमें मावसंयुक्त महा पूजा करावती भई सो भगवानकी पूजाके प्रभावतें राजाका सर्व उद्वेग मिटा चित्तौ महाशांति होती भई।
अथानन्तरं राझी कौशल्या के श्रीराम का जन्म भपा, राजा दशरथने महा उत्सव किया पत्र चमर सिंहासन टार बहुत द्रव्य याचकोंको दिये, उगते सूर्य समान है वर्ण रामका, कमल समान है नेत्र और लक्ष्मीसे प्रालिंगित है वक्षस्थल जाका तातें माता पिता सर्व कुछम्बने इनका पचनाम धरा सुमित्रा प्रति संदर है रूप जाका सो महा शुभ स्वप्न अवलोकन कर आश्चर्यको प्राप्त होती भई वे स्वप्न कैसे सो सुनो-एक बडा केहरी हि देखा, लक्ष्मी अर कीर्ति बहुत आदरसे सुन्दर जलके भरे कलश कमलसे ढके तिनकर स्नान करावै है पर आप सुमित्रा बडे पहाडके मस्तक पर बैठी है और समुद्र पर्यंत पृथिवीको देखे है पर देदीप्यमान हैं किरमोंके समूह जाके ऐसा जो सूर्य सो देखा भर नानाप्रकारके रनासे मंडेत चक्र देखा । ये साप्न देख प्रभातके मंगलीक शब्द भए तब सेजते उठिकर प्रातक्रियाकर बहुत विनयसंयुक्त पतिके समीप जाय मिष्ट वाणीकर स्वप्नोंका वृत्तांत कहती भई तब वह कहता भया-हे वरानने ! कहिए सुन्दर है वदन जाका तेरे पृथ्वीपर प्रसिद्ध पुत्र होयगा, शत्रुलोंके समूहका नाश करनहारा महा तेजस्वी आश्चर्यकारी है चेष्टा जाकी ऐसा पतिने कहा तब वह पतिव्रता हर्षसे भरा है चित्त जाका अपने स्थानकको गई. सर्व लोकोंको अपने सेवक जानती भई बहुरि याके परमज्योतिका धारी पुत्र होता भया मानो रत्नोंकी खानविष रत्न ही उपजा जैसा श्रीरामके जन्मका उत्सव किया हुता तैसा ही उत्सव भया । बा दिन सुमित्राके पुत्रका जाम भया ताही दिन रावणके नगरविर्षे हजारों उत्पात होते भए, अर हितुवोंके नगरमें शुभ शकुन भए, इंदीवर क ल समान श्यामसुन्दर अर कांति रूप जल का प्रवाह भले लक्षणोंका धरणहारा तातें माता पिताने लक्ष्मण नाम थरा । राम लक्ष्मण ये दोऊबालक महामनोहर रूप मंगा समान हैं लाल होंठ जिनके अर लाल कमल समान हैं कर पर चरख जिनके माखनसे भी अति कोमल है शरीरका स्पशे जिनका, अर महासुगंध शरीर में
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