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प-पुरा डाला रथसे नीचे डार दिया तब वह राजा हेमप्रभ और रथपर चढ़ कर भयंकर कम्पायमान होय अपना यश कालाकर शीघ्र ही भागा। दशरथने आपको बचाया स्त्री बचाई अपने रथके प्रश्च बचाए वैरियोंके शस्त्र छेदे अर वैरियोंको भगाया, एक दशरथ अनंगरथ जैसे काम करता भया, एक दशरथ सिंह समान ताको देख सर्व योधा सर्व दिशाको हिरण समान हो भागे। अहो; धन्य शक्ति या पुरुषकी अर थन्य शक्ति या कन्याकी, ऐसा शब्द ससुर की सेनामें अर शत्रयों की सेनामें सर्वत्र भया अर बंदी जन मिरद बखानते भए। राजा दशरथने महाप्रतापको धरे नगरमें केकईसे पाणिग्रहण किया महामंगलाचार भया, राजा केकईको परणकर अयोध्या पाए पर जनक भी मिथिलापुर गये बहुर इनका जन्मोत्सव अर राज्याभिषेक विभूतिसे भया पर समस्त भयरहित इन्द्र समान रमत भए ।
तह सर्व रानीनिक मध्य राजा दशरथ केकई कइते भए-चन्द्रवदनी! तेरे मनमें जो वस्तुकी अभिलाषा होय सी मांग, जो तू मांगे सोई देऊ । हे प्राणप्यारी ! तोसों में अति प्रसन्न भया हूं। जो तू अति विज्ञानसे उस युद्ध में रथको न प्रेरती तो एक साथ एते वैरी आए थे तिनको मैं कैसे जोतता । जब रात्रीका अन्धकार जगत में व्यास रहा है जो अरुण सारिखा सारथी न होय तो ताहि सूर्य कैसे जीते । यः भांति केकईके गुणवर्णन राजाने किए तब वह पतिव्रता लज्जाके भारकर अधोमुख हो गई। राजाने रहुरि कही तब केकईने वीनती करी हे नाथ ! मेरा वर आपके धरोहर रहे जिस समय मेरी इच्छा होयी ता समय लूगी। तब राजा अति प्रसन्न होय कहते भये हे कमलवदनो! मृगनयनी ! श्वेत श्यामता आरक्तता ये तीन वर्ष को धरे अद्भुत हैं नेत्र जाके, अद्भुत बुद्धि तेरी हे महा नरपतिकी पुत्री अति नयकी वेसा सर्व कलाकी परगामिनी सर्व भागोपभोग निधि ते प्रार्थना मैं धराहर राखो । तू जब जो चाहेमी सो ही मैं दूंगा अर सब ही राज लोक ककईकी देख हर्षको प्राप्त भए अर चित्त में चिंतवते भए यह अद्भुत बुद्धिनिधान है सो कोई अपूर्व वस्तु मांगेगी अल्पवस्तु क्या मागे ?
अथानन्तर गौतम स्वामी श्रेणि कसे कहे हैं हे श्रेणिकं ! लोकका चरित्र मैं तुझे सोपताकरिं कहा । जो पापी दुराचारी है ते नरक निगोदके परम दुःख पाये हैं अर जे धर्मात्मा साधु जन हैं ते स्वर्गशेक्ष में महा सुख पावै हैं। भगानकी आज्ञाके अनुसार बड़े बड़े सत्पुरुषोंके चरित्र तुझे कहे। अब श्रीरामचन्द्रजीकी उत्पत्ति सुन । कैसे हैं श्रीरामचन्द्रजी ? उदार प्रजाके दुःख हरणहारे महान्यायपंत महा धर्मवंत महाविवेकी महाशरवीर महाज्ञानी इक्ष्वाकु वंशका उद्योत करणहारे बड़े सत्पुरुष हैं। इति श्रीरविपेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविर्षे राणी केकईको राजा
दशरथका बरदानवर्णन कथन करनेबाला चौबीसबां पर्ण पूर्ण भया ॥२४॥
अथानन्तर जाहि अपराजिता कहै हैं ऐसी कौशल्या सो रत्नजडित महिलविले महामुंदर सेज पर सूती हुती सो रात्रीके छिले पहिर अतिशयसे अद्भत स्वप्न देखती भई उज्ज्वल हस्ती
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