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________________ २२३ चौबीसको पव सर्व राजा सिंहासनपर बैठे अर केकईको द्वारपाली सबनके नाम ग्राम गुण कहै है सो वह विवेकिनी साधुरूपिणी मनुष्यों के लक्षण जाननेवाली प्रथम तो दशरथकी ओर नेत्ररूप नीलकमलकी माला डारी बहुरि वह सुन्दर बुद्धिकी थरनहारी जैसे राजहंसनी बुगलोंके मध्य बेठे जो राजहंस उसकी ओर जाय तैसे अनेक राजाबोंके मध्य वैठा जो दशरथ ताकी ओर गई सो भावमाला तो पहिले ही डारी हुती पर द्रव्य रूप जो रत्नमाला सो भी लोकाचारके अर्थदशरथके गलेमें डारी तब कैयक नृप जे न्यायवन्त बैठे हुते ते प्रसन्न भए अर कहते भए कि जैसी कन्या थी तैसा ही योग्य वर पाया अर कैयक विलषे होय अपने देश उठ गए अर कैय के जे अति धीठ थे ते क्रोधायमान होय युद्धको उद्यमी भए अर कहते भये जे बड़े २ वंशके उपजे अर महा ऋद्धिके मंडित ऐसे नृप तिनको तजकर यह कन्या नही जानिए कुलशील जिसका ऐसा यह विदेशी ताहि कैसे वरै, खोटा है अभिप्राय जाका ऐसी कन्या है ताते या विदेशी को यहांसे काटकर कन्याके केश पकड बलात्कार हर लो ऐसा कहकर वे दुष्ट कैयक युद्धको उद्यमी भए तब राजा शुभमति अति व्याकुल होय दशरथको कहता भया-हे भव्य ! मैं इन दुष्टोंको निवारू हूँ तुम इस कन्याको रथमें चदाय अन्यत्र जावो जैसा समय देखिए तैसा करिये सर्व राजनीतिमें यह वात मुख्य है या भांति जब ससुरने कही तब राजा दशरय अत्यंत धीर बुद्धि है जिनकी, हंसकर कहते भये-हे महाराज! आप निश्चित रहो। देखा ! इन सबनको दशों दिशाको भगाऊ ऐसा कहकर आप रथविर्षे चढ़े अर केकईको चढ़ाय लीनी । कैसा है रथ ? जाके महामनोहर अथ जुड़े हैं। कैसे हैं दशरथ ? नानों रथपर चढ़े शरद ऋतुके सूर्य ही हैं पर केकई घोडौंकी बाप समारती भई कैसी हैं कैकई ? महापुरुषार्थ के स्वरूपको धरे युद्धकी मूर्ति ही है, पसेि विनती करती भई-हे नाथ! आपकी प्राज्ञा होय अर जाकी मृत्यु उदय आई होय ताहीकी तरफ रथ चलाऊ । तब राजा कहते भए कि हे प्रिये, गरीबोंके मारनेकर कहा ? जो या सर्व सेना का अधिपति हेमप्रभ है जाके सिरपर चन्द्रमा सारिखा सुफेद छत्र फिरे है । ताही की तरफ रथ चला। हे रणपण्डिते, आज मैं इस अधिपति हीको मारूंगा। जब दशरथने ऐसा कहा तब वह पतिकी आज्ञा प्रमाण वाहीकी तरफ रथ चलावती भई । कैसा है रथ ? ऊंचा है सुफेद छत्र जाके बर मारक्त रूप है महाध्वजा जाकी, रथविषै ये दोनों दम्पती देवरूप विराजे हैं इनका रथ अग्नि समान है.जे या रथकी और आए वे हजारों पतङ्गकी नाई भस्म भए, दशरथके चलाये जे बाण तिनकर अनेक राजा बींधे गए सो क्षणमात्र में भागे तब हेमप्रभ जो सबोंका अधिपति हुता ताके प्रेरे पर लज्जावान होय दशरथसे लडनेको हाथी घोडा रथ पियादोंसे मडित पाए। किया ईशरपनेका महाशब्द जिन्होंने, तोमर जातिके हथियार बाण चक्र कनक इत्यादि अनेक जातिके शख अकेले दशरथपर डारते भए । सो वड़ा आश्चर्य है दशरथ राजा एक रथका स्वामी था सो युद्ध समय मानो असंख्यात रथ हो गये अपने बाणकर समस्त बैरिनिके बाण काट डाले पर आप जे बाण चलाये ते काहूकी दृष्टि न पाए पर शत्रुवोंके लगे सो राजा दशरथने हेमप्रभकोखमात्र में जीत लिया ताकी ध्वजा छेदी छत्र उड़ाया भर रथके अश्व पायल किये रथ तोर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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