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________________ १२२ पग-पुराम अथानन्तर गौतमस्वामी क है हैं-हे श्रेणिक ! अनरण्यके पुत्र दशरथने पृथिवीपर भ्रमण करते केकईको परणा सो कथा महापाश्वर्यका कारण तू सुन । उत्तर दिशाविर्ष एक कौतुकमगल नामा नगर, ताके पर्वत समान ऊंचा कोट, तहां राजा शुभमति राजकरै सो वह शुभमति नाममात्र नहीं यथार्थ शुभमति ही हैं, ताकी राणी पथुश्री गुण रूप आमरणोंसे मंडित ताके के ई पुत्री द्रोणमेघ पुत्र भए, जिनके गुण दशों दिशामें व्याप रहे केकई अतिसुन्दर सर्व अंग मनोहर अद्भुत लक्षणोंकी धरणहारी सर्व कलावों की पारगामिनी अति शोभती भई । सम्यग्दर्शनसे संयुक्त श्राविकाके व्रत पालनहारी जिनशासनकी बेत्ता महाश्रद्धावन्ती तथा सांख्य पतिजल वैशेषिक वेदात न्याय मीमांसा चादिक परशास्त्ररहस्यकी ज्ञाता तथा लौकिक शास्त्र भृगारादिक तिनकी रहस्य जाने, नृत्यकलामें अति निपुण, सर्व भेदोंसे मंडित जी संगीत सो भली भांति जाने, उर कंठ सिर इन तीन स्थानकसे स्वर निकसे हैं पर स्वरोंके सात भेद है पडत्र १ ऋषभ २ गांधार ३ मध्यम ४ पंचम ५ धैवत ६ निषाद ७ सो केकईको सर्वगम्य अर तीन प्रकारका लय शीघ्र १ मध्य २ विलंबित ३ अर चार प्रकारका ताल स्थायी १ संचारी २ आरोहका ३ अवरोहक ४ अर तीन प्रकारकी भाषा संस्कृत १ प्राकृत २ शौरसेनी ३ स्थायितालके भूषण चार प्रसन्नादि १ प्रसन्नान्त २ मध्यप्रसाद ३ प्रसन्नाद्यवसान ४ अर संचारीके छह भूषण निवृत्त १ प्रस्थिल २ बिंदु ३ प्रखोलित ४ तमोमन्द ५ प्रसन्न ६ आरोहणका एक प्रसन्नादि भूषण अर अवरोहणके दो भूषण प्रसन्नात १ कुहर २ ये तेरह अलङ्कार अर चार प्रकार वादित्र बे ताररूप सो तांत १ चामके मढ़े ते आनद्ध २ अर बांसुरी आदि फूकके बाजे वे सुपिर ३ अर कांसीके बाजे वे घन ४ ये चार प्रकारके वादित्र जैसे केकई बजाये तैसे और न वजावे, गीत नत्य वादिन ये तीन भेद हैं सो नृत्यमें तीनों आए अर रसके भेद नव शृंगार १ हास्य २ करुणा ३ वीर ४ अद्भूत ५ भयानक ६ रौद्र ७ बीभत्स ८ शांत तिनके भेद जैसे केकई जाने तैसे और कोऊ न जाने अक्षर मात्रा अर गणितशास्त्र में निपुण, गद्य पद्य सर्वमें प्रवीण, व्याकरण छन्द अलंकार नाममाला लक्षणशास्त्र तर्क इतिहास भर चित्रकलामें अतिप्रवीण तथा रत्नपरीक्षा, अश्वपरीक्षा, नरपरीक्षा, शस्त्र परीक्षा, गजपरीक्षा, वृक्षपरीक्षा, वस्त्रपरीचा, मुगन्धपरीक्षा सुगन्धादिक द्रव्योंका निपजावना इत्यादि सर्व वातोंमें प्रवीण, ज्योतिष विद्यामें निपुण बाल वृद्ध तरुण मनुष्य तथा घोड़े हाथी इत्यादि सर्वके इलाज जानै मन्ध औषधादि सर्वमें तत्पर वैद्यविद्यानिधान सर्व कलामें सावधान महाशीलान्ती महामनोहर, युद्ध कलामें अतिप्रवीण शृंगारादि कलामें अति निपुण, विनय ही है अाभूषण जाके कला अर गुण भर रूपमें ऐसी कन्या और नाहीं। गौतम स्वामी कहै हैं-हे श्रेलिक ! बहुत कहनेकर कहा? केकाईके गुणों का वर्णन कहां तक करिये तब ताके पिताने विचारा कि ऐसी कन्याके योग्य वर कौन ? स्वयंबर करिए तहां यह आप ही वरै। ताने हरिवाहन आदि अनेक राजा स्वयम्बरमण्डपमें बुलाये सो विधवकर संयुक्त आये तहा भ्रमते संते जनकसहित दशरथ भी पाए सो यद्यपि इनके निकट राज्यका विभव नहीं तथापि रूप अर गुणोंकर सर्व राजावोंत अधिक है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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