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पप-पुराण दोनों भाई बाललीला करते कौनके चित्तको न हरें, चंदनकरि लिप्त है शरीर जिनका, केसरका तिलक किये अति सोहैं, मानों विजयागिरि अरि अजनगिरि ही स्वर्ण के रससे लिप्त हैं, अनेक जन्मका बढ़ा जो स्नेह तातै परम स्नेहरूप चन्द्र सूर्य समान ही हैं। महल मांही जावें तब तो सर्व स्त्रीजनको अतिप्रिय लगें अर बाहिर आवें तब सर्व जनोंको प्यारे लगें। जब ये बचन बोलें तर मानों जगतको अमतकर सीचें हैं, अर नेत्रोंकर अवलोकन करें तब सबको हर्पसे पूर्ण करें सबन के दारिद्र हरणहारे सबके हितु सबके अन्तःकरण पोषणहारे मानों ये दोनों हर्षकी अर शूरवीरता की मूर्ति ही हैं, अयोध्यापुरीविष सुख से रमते भए। कैसे हैं दोनों कुमार ? अनेक सुभट करें हैं सेवा जिनकी, जैसे पहले बलभद्र विजय अर वासुदेव त्रिपृष्ठ होते भए तिन समान है चेष्टा जिनकी । बहुरि केकईको दिव्यरूपका थारणहारा महाभाग्य पृथिवीपर प्रसिद्ध भरत नामा पुत्र भया बहुरि सुप्रभाके सर्व लोकमें सुन्दर शनुवोंका जीतनहारा शत्रुघ्न ऐसा नाम पुत्र भया, पर रामचन्द्रका नाम पन तथा बलदेव अर लक्ष्मण नाम हरि अर बासुदेव अर अद्धचक्री भी कहे हैं, एक दशरथकी जो चार राणी सो मानों चार दिशा ही है तिनके चार ही पुत्र समुद्र समान गंभीर पर्वत समान अचल जगतके प्यारे, इन चारों ही कुमारोंको पिता विया पढ़ानेके अर्थ योग्य पाठकको सौंपते भए॥
___अथानन्तर कापिन्य नामा नगर अतिसुन्दर, तड़ो एक शिवी नामा ब्रामण ताकी इषुनाम स्त्री ताके अरि नामा पुत्र सो महा अविवेकी अविनई माता पिताने लड़या सो महा कुचेष्टाका धारणहारा हजारों उलहानोंका पात्र होता भया, यद्यपि द्रव्यका उपार्जन, धर्मका संग्रह, विद्य का ग्रहण, वा नगरमें ये सब ही बातें सुलभ हैं परन्तु याको विद्या सिद्ध न भई, तब माता पिताने विचारी विदेशमें याहि सिद्धि होय तो होय, यह विचार खेद खिन्न होय धरतें निकास दिया, सो महादुखी हो। केवल वस्त्र याके पास सो यह राजगृह नगरमें गया, तहां एक वैवस्वत नामा धनुर्वेदका पाठी महापण्डित, जाके हजारों शिष्य विद्याका अभ्यास करें, ताके निकट ये अरि यथार्थ धनुष विद्याका अभ्यास करता भया सो हजारों शिष्योंविष यह महाप्रवीण होता भया । ता नगरका राजा कृशान सो ताके पुत्र भी वैवस्वत के निकट वाण विद्या पढ़ें सो राजाने सुनी कि एक विदेशी ब्राह्मण का पुत्र आया है, जो राजपत्रनिहतै अधिक बाणविद्याका अभ्यासी भया सो राजा मनमें रोष किया । जब यह बात बैवस्वतने सुनी तब अरिको समझाया कि तू राजाके निकट मूर्ख हो जा, विद्या मत प्रकाशै, सो राजाने धनुष विद्याके गुरु को बलाया जो मैं तेरे सर्व शिष्योंकी विद्या देखूगा तब सब शिष्यों को लेकर यह गया। सब ही शिष्यों ने यथायोग्य अपनी अपनी बाणविद्या दिखाई, निशाने बींधे, ब्राह्मणका जो पुत्र अरि, ताने ऐसे बाण चलाए सो विद्यारहित जाना गया तब राजाने जानी, याकी प्रशंसा काहूने झूठी कही तब वैवस्वतको सर्व शिष्यों सहित सीख दीनी तब अपने घर आया वैवस्वतने अपनी पुत्री अरिको परणाय विदा किया सो रात्रि ही प्रयाणकर अयोध्या माया । राजा दशरथसों मिला अपनी वाणविद्या दिखाई तव राजा प्रसन्न हो अपने चारों पुत्र पाखविधा
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