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________________ २२० पा-पुराण मारदने कही तब राजा दशरथ 'देवेभ्यो नमः' ऐसा शब्द कहकर हाथजोड सिर नवाय नमस्कार करता भया। बहुरि नारदने राजाको सैनकरी तब राजाने दरबारको कहकर सबको इटाए पर एकांत विराजे तब नारदने कही,-हे सुकौशल देशके अधिपति चिच लगाय सुन तेरे कन्याण की बात कहूं हूं मैं भगवानका भक्त जहां जिनमंदिर होय तहां बंदना करूहूं सो मैं लंकामें गया हुना तहां महा मनोहर श्रीशांतिनाथका चैत्यालय बंदा सो एक वार्ता विभीषणादिके मुखसे सुनी कि रावणने बुद्धिसार निमित्तज्ञानीको पूछा कि मेरी मृत्यु कौन निमित्तते है तब निमित्वज्ञानीने कही-दशरथका पुत्र अर जनककी पुत्री इनके निमित्तसे तेरी मृत्यु है, सुनकर रावण सचिंत भया तब विभीषणने कही-श्राप चिंता न करें दोनों को पुत्र पुत्री न होय वा पहिले दीऊनको मैं मारूगा सो तिहारे ठीक करनेको विभीषणने हलकारे पठाए थे सो वै तिहारा स्थान निरूपादि सब ठीक कर गये हैं और मेरा विश्वास जान मुझे विभीपसने पछी कि क्या तुम दशरथ और जनकका स्वरूप नीके जानो हो ? तब मैंने कही मोहि उनको देखे बहुत दिन हुए हैं अब उनको देख तुमको कहूँगा सो उनका अभिप्राय खोटा देखकर तुमपे आया सो जबतक वह विभीषण तिहारे मारनेका उपाय करे ता पहिले तुम आपा छुपाय कहीं बैठ रहो। जे सम्यकदृष्टि जिनधर्मी देव गुरु धर्मके भक्त हैं विन सबसे मेरी प्रीति है तुम सारिखोंसे विशेष है तुम योग्य होय सो करो तिहारा कल्याण होय । अब मैं राजा जनकसे यह वृत्तांत कहनेको जाक हूं तब राजाने उठ नारदका सत्कार किया, नारद आकाशके मार्ग होय मिथिलापुरीकी ओर गए जनकको समस्त वृत्तांत कह', नारद को भव्य जीव जिनधर्मी प्राणसे भी प्यारे हैं। नारद तो वृत्तांत कह देशान्तरको गए पर दोनों ही राजावोंको मरणकी शंका उपजी। राजा दशरथ ने अपने मंत्री समुद्रहृदयको बुलाया एकान्तमें नारदका कहा सकल वृत्तांत कहा । सब राजाके मुखतें मंत्री ये महाभयके समाचार सुन कर स्वामीकी भक्तिमें परायण अर मंत्रशक्तिमें महाश्रेष राजाको कहता भया-हे नाथ ! जीतन्यके अर्थ सकल करिये है जो त्रिलोकीका राज्य प्रादे अर जीव जाय तो कौन अर्थ ? तातें जब लग मैं तिहारे वैरियों का उपाय करू तब लग तम अपना रूप छिपाय कर पृथ्वी पर विहार करो ऐसा मंत्रीने कहा। तब राजाने देश भंडार नगर याको सौप कर नगरतें बाहिर निकसे । राजाके गये पीछे मंत्रीने राजा दशरथके रूपका पुतला वनाया एक चेतना नहीं और सब राजा होके चिन्ह बनाये, लाखादि रसके योग कर उसविष रुथिर निरमापा अर शरीरकी कोमलता जैसी प्राणधारीके होय तैसी ही बनाई सो महिलके सातवें खणमें सिंहासनविर्ष विराजमान किया सों समस्त लोकोंको नीचेसे मुजरा होय, ऊपर कोई जाने न पावे, राजाके शरीरमें रोग है पृथ्वी पर ऐमा प्रसिद्ध किया। एक मंत्री और दजा पूतला बनाने वाला यह भेद जाने, इन को भी देखकर ऐसा भ्रम उपनै जो राजा ही है पर यही वृत्तांत राजा जनकके भी भया । जो कोई पंडित हैं तिनके बुद्धि एक सी ही है । मंत्रियों की वृद्धि सबके ऊपर होय विचर है। यह दोनों राजा लोकस्थिविके वैचा पृथ्वीमें भागे फिरें. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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