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________________ इच्कीमनी पर्ग २०५ व्याधि कर पीड़ित प्राणी जहां बहुरि वह वन काल रूप जो व्याघ्र साकरि अति भयानक है भर कैसा है यह वन ? अनन्त जन्मरूप जे कंटक वृक्ष तिनका है समूह जहां बिजय बलभद्र आदि श्रीरामचन्द्र पयंत आठ तो सिद्ध भए और पद्मनामा जो नवमां बलभद्र वह ब्रह्म स्वर्गमें महाऋद्धिका धारी देव भया। अब नारायणोंके शत्रु जे प्रतिनारायण तिनके नाम सुनो-अश्वग्रीव १ तारक २ मेरक ३ मधुकैटभ ४ निशुम ५ बलि ६ प्रल्हाद ७ रावण ८ जरासिंध है। अब इन प्रतिनारायणोंकी राजथानियोंके नाम सुनो, अलका १ विजयपुर २ नन्दनपुर ३ पृथ्वीपुर ४ हरिपुर ५ सूर्यपुर ६ सिंहपुर ७ लंका ८ राजगृही है । ये नौ ही नगर कैसे हैं महारत्न जडा अनि देदीप्यमान स्वर्ग लोक समान हैं। हे श्रेणिक ! प्रथम ही श्री जिनेन्द्रदेवका चरित्र तुझे कहा बहुरि भरत आदि चक्रवर्तियों का कथन कहा और नारायण बलभद्र तिनका कथन कहा इनके पूर्व जन्म सकल वृत्तांत कहे पर नव ही प्रतिनारायण तिनके नाम कहे । ये वेसठ शलाकाके पुरुष हैं तिनमें कैयक पुरुष तो जिन भाषित तपसे ताही भवमें मोक्ष को प्राप्त होय हैं, कैयक स्वर्गको प्राप्त होग हैं पीछे मोक्ष पावै हैं भर कैयक जे वैराग्य नहीं धरे हैं चक्री तथा हरि प्रतिहरे ते कैाक भववर फिर तपकर मोक्षको प्राप्त होय हैं। ये संसारके प्राणी नाना प्रकारके जे पाप तिनकार मलीन मोहरूप सागरके भमरमें मग्न महा दुःखरूप चार गति तिनमें भ्रमण कर तप्तायमान सदा व्याकुल होय है ऐसा जानकर जे निकट संसारी भव्य जीव हैं ते संसारका भ्रमण नहीं चाह हैं, मोह तिमिरका अंतकर सूर्य समान केवलज्ञानका प्रकाश करे हैं। इति श्रीरविषेणाचा विरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविणे चौदह कुलकर, चोबोस तीर्थंकर; वारह चक्रवर्ती, नव नारायण, नव प्रतिनारायण नव वलभद्र, ग्यारह रुद्र, इनके माता पिता पूर्ण भव नगरीनिक नाम पूर्ण गुरु कथन नाम वर्णन करनेवाला बीस पर्व पूर्ण भया ।। २०॥ अथानन्तर गौतम स्वामी कहै हैं-हे मगधाधिपति ! श्रागै अष्टम बलभद्र जो श्रीरामचन्द्र, तिनका सम्बन्ध कहिये हैं सो सुनहु-अर राजनिके वंश अर महा पुरुषनिकी उत्पत्ति, तिनका कथन कहिये हैं सो उरमें धारहु । भगवान दशम तीर्थकर जे श्रीशीतलनाथ स्वामी तिनको मोच गए पीछे कौशांबी नगरी में एक राजा सुमुख भया अर ताही नगर में एक श्रेष्ठी वीर ताकी स्त्री बनमाला सो अज्ञानके उदयतें राजा सुमुखने घरमें राखी फिर विवेकको प्राप्त होय मुनियोंको दान दिया सो मरकर विद्याधर भया ओर वह बनमाला विद्याधरी भई सोता विद्याधरने परणी एक दिवस ये दोनों क्राडा करनेको हरिक्षेत्र गये अर वह श्रेष्ठी वीर बनमालाका पति विरहरूप अग्नि कर दग्धायमान सो तपकर देवलोकको प्राप्त भया, एक दिवस अवधिकर वह देव अपने बैरी सुमुख के जीवको हरिक्षेत्रमें क्रीडा करता जान क्रोधकर तहांसे भार्यासहित उठाय लाया सो या क्षेत्रमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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