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________________ पग-पुराण हरि नामकरि प्रसिद्ध भया जाही कारणसे याका कुज हरिवंश कहलाया। ता हरिके महागिरि नाम पुत्र भया ताके हिमगिरि ताके वसुगिरि ताके इंद्रगिरि ताके रत्नमाल ताके संभूत ताके भूतदेव इत्यादि सैकडों राजा हरिवंशविणै भये । ताही हरिवंशमें कुशाग्रनामा नगरविणै एक राजा सुमित्र जगविणे प्रसिद्ध भया । कैमा है राजा सुमित्र ? भोगोंकर इंद्र ममान, कांतिकरि जीता है चंद्रमा जाने अर दीप्तिकर जीता है सूर्य अर प्रतापकर नवाए हैं शत्र जाने। ताके राणी पद्मावती कमल सारिखे हैं नेत्र जाके, शुभ लक्षणोंसे संपूर्ण अर पूर्ण भए हैं सकल मनोरथ जाके, सो रात्रीविष मनोहर महल में सुखरूप सेजपर सूती हुती सो पिछले पहर सोलह स्वप्न देखे-गजराज १, वृषभ २, सिंह ३, लक्ष्मी स्नान करती ४, दोय पुष्पमाला ५, चंद्रमा ६, सूर्य ७, दो मच्छ जलमें केलि करते ८, जलका भरा कलश कमल समूहसे मुंह ढका ६, सरोबर कमल पूर्ण १०, समुद्र ११, सिंहासन रत्नजटित १२, स्वर्गलोकके विमान आकाशते श्रावते देखे १३ अर नागकुमारके विमान पातालसे निकसते देखे १४, रत्नोंको राशि १५, निर्ध म अग्नि १६ । तब राखी पद्मावती सुवुद्धिवंती जागकर आश्चर्य भया है चित्त जाका, प्रभात क्रियाकर विनयरूप भरतारके निकट आई, पलिके सिंहासन पर विराजी, फूल रहा है मुख कमल जाका, महान्यायका वेत्ता, पतिव्रता हाथ जोड नमस्कार कर पतिसे स्वप्नोंका फल पूछती भई, तब राजा सुमित्र स्वप्नोंका फल यथार्थ कहते भए । तब ही रत्नोंकी वर्षा आकाशसे वरमती भई । साढे तीन कोटि रत्न एक संध्यामें वरसे सो त्रिकाल संध्या वर्षा होती भई । पन्द्रह महीनों लग राजाके घरमें रत्नपारा वर्षी अर जे पट कुमारिका ते समस्त परिवार सहित माताकी सेवा करती भई अर जन्म होते ही भगवानको क्षीरसागरके जलकरि इन्द्र लोकपालों सहित सुमेरु पर्वत पर स्नान करावंते भए अर इन्द्रने भक्तिसे पूजा भर स्तुति कर नमस्कार करी फिर सुमेरुसे ल्याय माताकी गोदमें पथराये। जबसे भगवान माताके गर्भमें पाए तब हीते लोक अणुव्रत अर महाब्रतमें विशेष प्रवरते अर माता व्रतरूप होती भई तातें पृथ्वीविणे मुनिसुव्रत कहाए । अंजनगिरि समान है वर्ण जिनका, परन्तु शरीरके तेजसे सूर्य को जीतते भए अर कांतिकर चंद्रमा को जीतते भए सर्व भोग सामग्रो इन्द्रलोकतै कुवेर लावे अर जैसा आपको मनुष्य भवमें सुख है तैसा अहमिद्रोंको नाहीं भर हाहा हूहू तुंवर नारद विश्वावसु इत्यादि गंवोंकी जाति हैं सो सदानिकट गान करा ही करें पर किसरी जातिकी देवांगना तथा स्वर्गकी अप्सरा नृत्य किया ही करें अर वीणा बांसुरी मृदंग आदि बादित्र नाना विधिक देव बजाया ही करें अर इन्द्र सदा सेवा करें अर आप महासुन्दर यौवन अवस्थाविणे विवाह भी करते भए सो जिनके राणी अद्भुत आवती मई, अनेक गुण कला चातुर्यताकर पूर्ण हाव भाव विलास विभ्रमकी धारणहारी, सो कैयक वर्ष आप राज्य किया, मनशंछित भोग भोगे। एक दिवस शरदके मेघ विलय होते देख आप प्रतिबोयको प्राप्त भये। तब लोकांतिक देवनने पाय स्तुति करी तब सुब्रत नाम पुत्रको राज्य देय वैरागी भये । कैसे हैं भगवान ? नहीं है काहू वस्तु की वांछा जिनके, आप वीतराग भाव थर दिव्य स्त्रीरूप जो कमलोंका वन तहांत निकसे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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