________________
बीसवां पर्व स्वामीके मुक्ति गए पीछे नमिनाथ स्वामी के अन्तराल भये अर काशीपुरोमें राजा सम्भूत, ते स्वतन्त्रलिङ्ग स्वामीके शिष्य मुनि होय पद्मयुगल नामा विमानयिौ देव भए तहांतें चयकर कंपिल नगरमें राजा ब्रह्मरथ राणी चूला तिनके ब्रह्मदत्त नामा बारवें चक्रवर्ती भए। ते के खंड पृथ्वीका राज्यकर मुनिव्रत विना रौद्रध्यानकर सातवें नरक गये । यह श्रीनेमिनाथ स्वामीको मुक्ति गये पीछे पार्श्वनाथ स्वामीके अन्तरालमें भए । ये बारह चक्रवर्ती बडे पुरुष हैं, छै खण्ड पृथिवीके नाथ जिनकी आज्ञा देव विद्याथर सब ही मान हैं। हे श्रेणिक ! तोहि पुण्य पापका फल प्रत्यक्ष कहा सो यह कथन सुनकर योग्य कार्य करना अयोग्य काम न करना जैसे घटसारी पाथेय विना कोई मार्गमें चले तो सुखसे स्थानक नहीं पहुंचे तैसे सुकृत विना परलोकमें सुख न पावै कैलाशके शिखर समान जे ऊचे महल तिनमें जो निवास कर है सो सर्व पुण्यरूप वृक्षका फल है पर जहां शीत उष्ण पवन पानीकी बाथा होय ऐसी कुटियों में बसे हैं दरिद्ररूप वीच पसे हैं सो सर्व अधर्मरूप वृक्षका फल है। विन्ध्याचल पर्वत के शिखर समान ऊचे जे गजराज उनपर चढ़कर सेनासहित चले हैं चंवर दुरे हैं सो सर्व पुण्यरूप वृक्षका फल है, जे महा तुरझोंपर चमर दुरते अर अनेक असवार पियादे जिनके चौगिर्द चले है सो सब पुण्यरूप राज का चरित्र है पर देवोंके विमान समान मनोज्ञ जे रथ तिनपर चढ़कर जे मनुष्य गमन करें हैं सो पुण्यरूप पर्वतके मीठे नीझरने हैं अर जो फटे पग अर फाटे मैले कपड़े अर पियादे फिरे हैं सो सब पापरूप वृक्षका फल है भर जो अमृत सारिखा अन्न स्वर्णक पात्रमें भोजन कर हैं सो सब धर्म रसायनका फल मुनियोंने कहा है । जो देवोंका अधिपति इन्द्र अर मनुष्य का अधिपति चक्रवर्ती तिनका पद भव्यजीव पावै हैं सो सब जीवदयारूप बेलका फल हैं। कैसे हैं भव्यजीव १ कर्मरूप कंजरको शार्दूल समान हैं अर राम कहिए बलभद्र केराव कहिए नारायण तिनके पद जो भव्यजीव पावै हैं सी सब धर्मका फल हैं।
हे श्रेणिक ! आगे वासुदेवोंका वर्णन करिये है सो सुनि-या अवसर्पणीकालके भरतक्षेत्र के नव वासुदेव हैं प्रथम ही इनके पूर्व मवकी नगरियोंके नाम सुनो-हस्तिनागपुर १ अयोध्या २ श्रावस्ती ३ कौशांबी ४ पोदनापुर ५ शैलनगर ६ सिंहपुर ७ कौशांबी ८ हस्तनागपुर है। ये नव ही नगर कैसे है ? सर्व ही द्रव्यके भरे हैं अर ईतिभीतिरहित हैं। अब वासुदेवोंके पूर्वभवके नाम सुनी-विश्वानन्दी १ पर्वत २ धनमित्र ३ सागरदत्त ४ विकट ५ प्रिय मित्र ६ मानचेष्टित ७ पुनर्वसु ८ गंगदेव जिसे निर्णामिक भी कहे हैं । ये नव ही वासुदेवोंके जीव पूर्वभवविष विरूप दौर्भाग्ययुक्त राज्यभ्रष्ट होय हैं बहुरि मुनि होय महातप करे हैं बहुरि निदानके योगतें स्वर्गविष देव होय तहाँसे चयकर बलभद्रके लघुधाता बासुदेव होय हैं तातै तपसे निदान करना ज्ञानियोंको वर्जित है। निदान नाम भोगाभिलाषका है सो महाभयानक दुख देनेको प्रवीण है । भागे वासुदेवोंके पूर्वभवके गुरुवोंके नाम सुनो, जिनपै इन्होंने मुनिव्रत श्रादरे-संभूत १ सुभद्र २ वसुदर्शन ३ श्रेयांस ४ भूतिसंग ५ वसुभूति ६ घोपसेन ७ परांभोधि ८ द्रुमसेन है। अब जिस जिस स्वर्गसे पाय वासुदेव भये जिनके नाम सुनो-महाशुक्र १ प्राणत २ लांतव ३ सहस्रार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org