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पा-पुराण
२०२ समाधिमरणकर सनत्कुमार स्वर्ग सिधारे। वे शान्तिनाथके पहिले अर मघवा तीजा चक्रवर्ती ताके पीछे भये अर पुण्डरीकनी नगरीमें राजा मेघरथ वह अपने पिता धनरथतीर्थकरके शिष्य मुनि होय सर्वार्थसिद्धिको पथारे तहांतें चयकर हस्तनागपुरमें राजा विश्वसेन राणी ऐरा तिनके शांतिनाथ नामा सोलवें तीर्थकर अर पंचम चक्रवर्ती भए । जगतको शांतिके करणहारे जिनका जन्म कल्याणक सुमेरु पर्वतपर इन्द्रने किया बहुरि पटखण्डके भोक्ता भए । तृण समान राज्यको जान तजा मुनित्रत धर मोक्ष गये । बहुरि कुंथुनाथ छठे चक्रवर्ती सत्रहवें तीर्थंकर अरनाथ सातवें चक्रवर्ती अठारवें तीर्थंकर ते मुनि होय निर्वाण पथारे सो तिनका वर्णन तीर्थंकरोंके कथनमें पहिले कहा ही है अर ध्यानपुर नगरमें राजा कनकप्रभ सो विचित्रगुप्त स्वामीके शिष्य मुनि होय स्वर्ग गए तहांतें चयकर अयोध्या नगरीमें राजा कीर्तिवीर्य राणी तारा तिनके सुभूम नामा अष्टन चक्रवर्ती भये जाकर यह भूमि शोभायमान भई तिनके पिताका मारणहारा जो परशुराम ताने क्षत्री मारे हुते अर तिनके सिर थंभनविष चिनाये थे सो सुभूम अतिथिका भेषकर परशुरामके भोजनकों आये। परशुरामने निमित्तज्ञानीके वचनसे क्षत्रियनिके दांत पात्रमें मेल सुभूमको दिखाए तब दांत क्षीरका रूप होय परणये पर भोजनका पात्र चक्र होय गया ताकरि परशुरामको मारा । परशुरामने क्षत्री मार पृथ्वी सातवार निक्षत्री करी हुती सो सुभूमिने परशुरामको मार इक्कीस वार पृथ्वी अव्राह्मग करी जैसे परशुरामके राज्यमें क्षत्रीकुल छिपाय रहे हुते तैसे याके राज्यमें विप्र अपने कुल छिपाये रहे सो स्वामी अरनाथ के मुक्ति गये पीछे पर मल्लिनाथके होयवे पहिले सुभूम भये, अतिभोगासक्त निर्दश्परिणामी अव्रती मरकर सारवें नरक गये अर वीतशोका नगरी में राजा चित् सी सुप्रभ स्वामीके शिष्य मुनि होय ब्रह्मस्वर्ग गये तहांतें चयकर हस्तिनागपुरवि राजा पत्ररथ राणी मयूरी तिनके मह पद्म नामा नौमे चक्रवर्ती भये । पटखण्ड पृथ्वी के भोक्ता जिनके आट पुत्री महारूपवन्ती सो रूपके अतिशयसे गर्वित तिनके विवाहकी इच्छा नहीं सो विद्याधर तिन को हर ले गये सो चक्रवर्तीने छुड़ाय मंगाई। ये आठों ही कन्या प्रापिकाके व्रतधर समाधिमरणकर देव लोकमें प्राप्त भई अर जे विद्याधर इनको ले गये हुते ते भी विरक्त हाय मुनिव्रत धर आत्मकल्याण करते भए । यह वृत्तांत देख महापन चक्रवर्ती पत्र नामा पुत्रको राज्य देय विष्णु नामा पुत्रसहित पैरागी भए महातपकर केवल उपजाया मोक्षको प्राप्त भए । यह अरनाथ स्वामीके मुक्ति गये पीछे अर मल्लिनाथके उपजनेसे पहिले सुभमके पीछे भए अर विजय नामा नगरविषे राजा महेन्द्रदत्त, ते अभिनन्दन स्वामी के शिष्य मुनि होय महेंद्र स्वर्गको गए तहांसे चयकर कंपिल नगरीमें राजा हरिकेतु ताकी राणी वा तिनके हरिषेण नामा दमवें चक्रवर्ती भए तिनने सर्व भरतक्षेत्रकी पृथ्वी चैत्यालयोंकर मंडित करी अर मुनिसुव्रतनाथ स्वामीफे तीर्थ में मुनि होय सिद्धिपदको प्राप्त भये पर राजपुर नामा नगरमें राजा जो असीकांत थे वह सुधर्ममित्र स्वामीके शिष्य मुनि होय ब्रह्मस्वर्ग गये तहांसे चयकर राजा विजय राणी यशोवती तिनके जयसेन नामा ग्यारवें चक्रवर्ती भए । ते राज्य तब दिगम्बरी दीक्षा घर रत्नत्रयका आराथनकर सिद्ध पदको प्राप्त भए । यह श्रीमुनिसुव्रतनाथ
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