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एक माममें शुक्लपच भर कृष्णपच ये दोय वर्ते तैसे एक कल्पकालविषै एक अवसर्पिणी पर एक उत्सर्पिणी ये दोय वर्ते । इनके प्रत्येक वह २ काल है तिनमें प्रथम सुखमासुखमा काल चार कोटाकोटी सागरका है दूजा सुखमाकाल तीन कोटाकोटी सागरका है तीजा सुखमा दुखना दो कोटाकोटी सागरका है अर चौथा दुखमासुखमा काल बयालीस हजार वर्ष बाट एक छोटाकोटी सागरका है पांचवां दुखमा काल इक्कीस हजार वर्षका है छठा दुःखमा दुःखमा काल सो भी इक्कीस हजार वर्षका है यह अवसर्पिणी कालकी रीति कही। प्रथम कालसे लेव छठे काह पर्यंत आयु आदि सर्ग घटती भई अर यासे उलटी जो उत्सर्पमी तामें फिर छठेसे लेकर पहिले पर्यंत आयु काय बल पराक्रम बढ़ते गए । यह कालचक्रकी रचना जाननी ॥
सो जब तीजे काल में पल्यका आठवां भाग वाकी रहा वत्र श्रौदर कुलकर भए विनका कथन पूर्वकर आये हैं चौदहवें नाभिराजा तिनके आदि तीर्थंकर ऋषभ देव पुत्र भए विनके मोख गये पीछे पचास लाख कोटि सागर गये श्री अजितनाथ द्वितीय तीर्थंकर भये ताफे पीछे तीसलास कोटि सागर गये श्रीसंभवनाथ भये ताके पीछे दमलाख कोटिसागर गये श्री अभिनंदन भए ताके पीछे नवलाख कोटि सामर गए श्रीसुमतिनाथ भए ताके पीछे नब्बे हजार कोटि सामर गये श्री पद्मप्रभ भये ताके पीछे नवहजार कोटि सागर गये श्री सुपार्श्वनाथ भए ताके पीछे नौ सौ कोटि सागर गये श्री चंद्रम भए ताके पीछे नब्बे कोटि सागर गये श्रीपुष्पदंत भए ताके पीछे नत्र कोटि सागर गये श्री शीतलनाथ भए ताके पीछे सौसागर घाट कोटि सागर गये श्रेयांसनाथ भए ताके 'चव्वन सागर गए श्रीवासुपूज्य भए ताके पीछे तीस सागर मये श्रीविमलनाथ भए ताके पीछे नव सागर गये श्री अनंतनाथ भए ताके पीछे चार सागर गये श्री धर्मनाथ भए ताके पीछे पौन बन्य घाट तीन सागर गए श्रीशांतिनाथ भए ताके पीछे आधा पन्च गये भौकुंथुनाथ भए ताके पीछे हजार कोटी वर्ष घाट पाव पन्य गए श्रीमरनाथ भए ताके पीछे पैंसठलाख चौरासी हजार वर्ष घाट हजार कोटि वर्ष गए श्रीमल्लिनाथ भए ताके पीछे चौवनलाख वर्ष गए श्रीमुनि सुत्रतनाथ भए ताके पीछे वालाख वर्ष गए श्रीनमिनाथ भए ताके पीछे पांचलाख वर्ष गए श्रीनेमिनाथ भए ताके पीछे पौने चौरासी लाख वर्ष गए श्रीपाश्वनाथ भए ताके पीछे भढाई सौ वर्ष गए श्रीवर्द्धमान भए । जब वर्द्धमान स्वामी मोक्षको प्राप्त होवेंगे तब चौथे कालके तीन वर्ष सा आठ महीना बाकी रहेंगे भर इतने ही तीजे काल वाकी रहे थे तब श्री ऋषभ देव मुक्ति पवारे हुते !
हे श्रेणिक ! धर्मचक्र के अधिपति श्रीवर्द्धमान इन्द्रके मुकुटके रत्नोंकी जो ज्योति सोई भवा जल ताकर धोये हैं वर युगल जिनके सो तिनका भोद पधारे पीछे पांचवां काल लगेगा जामें देवोंका आगमन नाहीं अर अतिशयके धारक मुनि नाहीं, केवलज्ञानकी उत्पचि नाहीं, चक्रवर्ती बलभद्र
र नारायणकी उत्पत्ति नाहीं, तुम सारिखे न्यायवान राजा नाहीं अनीतिकारी राजा होवेंये मर प्रजाके लोक दृष्ट महाडीठ परधन हरनेको उद्यमी होवेंगे, शीलरहित प्रवरहित महाक्लैश व्या विके भरे मिध्यादृष्टि घोरकर्मी होवेंगे घर अतिवृष्टि अनावृष्टि टिड्डी सूवा मूषक अपनी सेना भर पराई
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