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________________ atest पर्व १६५ अथानन्तर राजा श्रेणिक महा विनयवान निर्मल है बुद्धि जाकी सो विद्याधरोंका सकल सुनकर गौतम गणधर के चरणारविंदको नमस्कार कर आश्चर्य को प्राप्त होता मंता कहन भया- हे नाथ ! तिहारे प्रसादतें आठवां प्रतिनारायण जो रावण ताकी उत्पत्ति और सकल ति मैने जाना, तथा राचसवंशी और वानरवंशी जे विद्याधर तिनके कुलका भेद भलीभांति जाना। अब मैं तीर्थ के पूर्व भर सहित सकल चरित्र सुना चाहूँहूँ ९ कैसा है तिनका चरित्र १ बुद्धिकी निर्मलता का कारण है अर आठवें बलभद्र जे श्रीरामचन्द्र, सकल पृथिवीविषै प्रसिद्ध सो कौन वंश विषै उपजे तिनका चरित्र कहो पर तीर्थकरोंके नाम और उनके माता पिताके नाम सब सुनने की इच्छा है सो तुम कहने योग्य हो । या भांति जब श्रेणिकने प्रार्थना करी तब गौतम गणधर भगवत चरित्रके प्रश्न कर बहुत हर्षित भए ! कैसे हैं गगयर ! महा बुद्धिमान परमार्थवि प्रवीण । ते कहे हैं कि हे श्रेणिक ! चौबीस तीर्थकरोके पूर्व भवका कथन पापके बिध्वंसका कारण इन्द्रादिक कर नमस्कार करने योग्य है तू सुन ऋषभ १ अजित २ संभव ३ अभिनन्दन ४ सुमति ५ पद्मप्रभ ६ सुपार्श्व ७ चन्द्रप्रभ ८ पुष्पदन्त ( दुजा नाम सुविधिनाथ ) ६ शीतल १० श्रेयांस ११ वासुपूज्य १२ विमल्ल १३ अनन्त १४ धर्म १५ शान्ति १६ कुंथु १७ र १८ मलि १६ मुनिसुव्रत २० नमि २१ नेमि २२ पार्श्व २३ महावीर २४ जिनका अब शासन प्रवरते हैं ये चौवीस तीर्थ के नाम कहे । अब इनकी पूर्व भवकी नगरेयोंके नाम सुनो। पुण्डरीकनी १ सुसीमा २ चेमा ३ रत्नसंचयपुर ४ ऋषभदेव आदि तीन तीन एक एक नगरीवि श्रनुक्रमतें • वासुपूज्य पर्यतकी ये चार नगरी पूर्व भवके निवासकी जाननी र महानगर १३ अरिष्टपुर १४ सुभद्रिका १५ पुण्डरीन १६ सुमीमा १७ चेमा १८ वी शोका १६ चम्पा २० कौशांबी २१ हस्तिनापुर २२ साकेता १३ छत्राकार २४ ये चौबीस तीर्थकरों की या भरका पहिले जो देवलोक ताभव पहिले जो मनुष्य भव ताकी स्वर्गपुरी समान राजवानी कही । अब ता भवक नाम सुनोनाभि १ बिमलवाहन २ विपुलख्याति ३ बिपुलबाहन ४ महाबन ५६ जित ७ नंदिषेस ८ पत्र 8 महापद्म १० पद्मोचर ११ पंकजन्म १२ कमल समान हैं सुख जिनका ऐसा नलिनगुन्म १३ पद्मासन १४ पद्मरथ १५ हदरथ १६ मेघरथ १७ सिंहस्थ १८ वैश्रवण १३ श्रीर्मा २० सुरश्रेष्ठ २१ सिद्धार्थ २२ आनन्द २३ सुनंद २४ ये तीर्थकरों के या भव पहिले तीजे भवके नाम कहे । अब इनके पूर्व भव के पिता के नाम सुनो, वज्रसेन १ महातेज २ रिपुदमन ३ स्वयंप्रम ४ विमलवाहन ५ सीमंधर ६ पिहिताश्रव ७ अरिंदम = युगंधर ६ सर्व नान्द १० अभयानन्द ११ वज्रदंत १० वज्रनाभि १३ सर्व पुस १४ गुप्तिमान १५ चिंतारक्ष १६ विमलवाहन १७ धनरव १८ वीर १६ संवर २० त्रिलोकी २१ सुनंद २२ वीतशोक २३ प्रोटिल २४ ये पूर्व भवके पितावोंके नाम कहे । अव चौवीसो तीर्थंकर जिस जिस देवलोक से mr तिन देव लोकोंके नाम सुनों । सर्वार्थसिद्धि १ वैजयन्त २ ग्रैवेयक ३ वैजयन्त ४ ऊ वे ५ वैजयन्त ६ मध्यग्र वेयक ७ वैजयन्त ८ अपराजित ६ वरणस्वर्ग १० पुष्पोत्तर बिमान ११ कापि स्वर्ग १२ शुक्रस्वर्ग १३ सहस्रारस्वर्ग १४ पुष्षोत्तर १५ पुष्पोवर १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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