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________________ उन्नीसवा पर्व हनमानको श्रीशैल नाम प्रसिद्ध भया काहेते पर्वतकी गुफामें जन्म भया, था । सो पहाडपर हनमान पाय निकसे सो देख अति प्रसन्न भए । रमणीक है दलहटी जाकी वह पर्वत भी पृथ्वीवि प्रसिद्ध भया। . अथानन्तर किहकंध नगरलिपे राजा सुग्रीव ताके रानी सुतारा चंद्र समान कांतिको धरै है मुख जाका, अर रति समान है रूप जाका तिनकी पुत्री पारागा नवीन कमल समान है रंग जाका पर अनेक गुणोंसे मंडित पृथ्वी पर प्रसिद्ध लक्ष्मी समान सुन्दर हैं नेत्र जाके, ज्योतिके मंडलसे मंडित है मुख कमल जाका अर महा गजराजके कुम्भस्थल समान ऊंचे कठोर हैं स्तन जाके अर सिंह समान है कट जाकी, महा विस्तीर्ण अर लावण्यता रूप सरोवर में मग्न है मूर्ति जाकी, जाहि देख चित्त प्रसन्न होग, शोभायमान है चेष्टा जाकी, ऐसी पुत्रीको नवयौवन देख माता पिताको याकै परणायवेको चिता भई या योग्य वर चाहिए सो माता पिताको रात दिन निद्रा न आवै अर दिनमें भोननका रुब गई चितारूप है चित्त जिनका । तब रावण के पुत्र इन्द्रजीत आदि अनेक राजकुमार कुल न शीतवान तिनके चित्रपट लिखे, रूप लिखाय सखियों के साथ पुत्री को दिखाये, सुन्दर है शांति जिनकी सो कन्याकी दृष्टि में कोई न आया, अपनी दृष्टि संकोच लीनी बहुरि हनुमानका चित्रपट देखः नाहि देवकर शोषण, संतापन, उच्चाटन, मोहन, वशीकरण कामके इन पांचां बाणोंसे बेथा गई तब तामह हनूमानविष अनुरागिनी जान सखाजन ताके गुण मान करता भई । हे कन्या ! यह पवनंजयका पुत्र जो हनुमान ताके अपार गुण कहां लो कहैं अर रूप सौभाग्य तो याके चित्रपटमें तैने देखे नाते याको वर. माता पिताकी चिंता निवार, कन्या तो चित्रपट देख मोहित भई हुती और सखा जनोंने गुण वर्णन किया ही है तब लज्जाकर नीची हो गां पर हाथमें क्रीडा करनका कमल था ताकी चित्रपटन दी। तब सबने जाना कि यह हनुमान से प्रीतिवंती भई तब याके पिता सुग्रीवने याका चित्रपट लिखाय भले मनुष्य के हाथ वायुपुत्र भेजा सो सुग्रीवका सेवक श्रीनगरमे गया और कन्याका चित्रपट हनुमानको दिखाया सो अंजनी का पत्र सुताराकी पुत्रीके रूपका चित्र ट देख मोहित भया । यह बात सत्य है कै कामके पांच ही बाण हैं परन्तु कन्याके प्रेरै पवनपुत्रके मानो सौ वाण होय लगे चिचमें चिंतवता भया मैं सहस्र विवाह किए भर बड़ी बड़ी ठौर परणा खरदक्षणकी पुत्री. रावण की भाणजी परणी तथापि जब लग यह परागा न परण तो लग परणा ही नहीं ऐसा विचार महाऋद्धिसंयुक्त एक क्षणमें सग्रीवके पुरमें गया । सुग्रावने सुना जो हेनुमान पधारे तर सुग्रीव अतिहर्षित होय सन्मुख आए बडे उत्साहस नगरमें ले गए सो राजमहलकी स्त्री झरोखोंकी जालीसे इनका अद्भुत रूप देख सकल चेष्टा मज आश्चर्य रूप होय गई अर सुग्रीवकी पुत्री पभरागा इनके रूपको देखकर चकित हो गई। कैपी है कन्या ? अति सुकुमार है शरीर जाका, बड़ी विभूतिसे पवनपुत्रसे पारागाका विषाह मया, जैसा वर तैसी दुःसहन सा दोनों अति हपको प्राप्त भए स्त्रीसहित हनुमान अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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