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________________ पंच-पुर किया अर आप डेरा भनोन्माद वनमें किया । कैसा है वह वन ? समुद्र की शीतल पवनसे महाशीतल है सो उसके निवासकर सेनाको रणजनित खे. रहित किया अर वरुण की पकडा सुन उसकी सेना भाजी, पुण्डरीकपुरमें जाय प्रवेश किया। देसी गुण्यका प्रभाव जो एक नायक के जीतन्तें बही जीते। कम्भ रताने कोपकर वरुणाके नगरको लूटनेका विचार किया तब रावण ने मना किया, यह राजाओं । धर्म नहीं। कैसे हैं रावणा ? करुणाकर कोनल है चित्त जाका, सो कुम्भकरण कहते भए-हे मानक ! तैंन यह क्या दुराचारकी बात कही १ जो अपराध था सो तो वरुणका था प्रजाका कहा .पराध ? दुर्वलको दुःख देश दुर ति। कारण है और महाअन्याय है ऐश कहकर कम्पकरणको प्रशांत किया अर वरुण को बुलाया । कैना है वरुण ? नीचा है मुख जाका, ता रावण वरुणको क ते भए- हे प्रवीण ! तुम शोक मत करो जो में युद्धविणे पकडा गया, गोधावोंकी दोपही रीत हैं, मारे जांय अथवा पडे अर रणास भागना कायरका काम है तातें तुम हमसों क्षमा ३.1 अ अपने स्थानक जायकर मित्र बांधवसहित सकल उपद्रवरहित अपना राज्य सुन्वतें करहु । श्रमे मिष्ट वचन रावण के सुनकर वरुण हाथ जोड रावण सू कहता भवा-हे वीराधिीर ! हे महाधीर ! तुम इस लोकमें महापुण्याधिकारी हो तुमसे जो घेर भाव करें गो मूर्ख है, अहो स्वामिन्, यह तिहारा परम धीर्य हजारों स्तोत्रोंसे स्तुति करने योग्य है, तुम देवाधिष्ठित रत्न विना मुझे सामान्य शस्त्रोंसे जीता, कैसे हो तुम ? अद्भुत है प्रताप जिनका अर इस पवनके पुत्र हनूमानके अद्भुत प्रभावको कहा माहेमा कहूं ? तिहार पुण्य के प्रभावतें औसे श्रेस सत्पुरुष तिहारी सेवा करें है । हे प्रभो ! यह पृथ्वी काहू के गोत्रम अनुक्रमकर नहीं चली आई है यह कंवल पराक्रमके वश है । शूरवीर ही याके भाक्ता हैं सो आप सर्व योधायोंके शिरोमणि। हो सो भूमिका प्रतिपालन करी । हे उदारकीर्ति ! हमारे स्वामी आप ही हो, हमारे अपराध क्षमा करो । हे नाथ ! आप जैसी उत्तम क्षमा कहूं न देखो तातें आप सारिखे उदारवित्त पुरुषसे सम्बन्ध कर मैं कृतार्थ होऊंगा तातै मेरी सत्यवती नामा पुत्री श्राप परलो याके परणवे योग्य आप ही हो या भांति बनताकर अति उन्साहत पुत्र परणाई। कैसी है वह सत्यवती ? सर्वरूपवं तयोंका तिलक है, कमल समान है मुख जाका, वरुणने रावणका बहुत सत्कार किया अर कई एक प्रयाए। रावण के लार गया, रा.णन अति स्नहत सीख दीनी तव वरुण अपनी राजधानी आया, पुत्रीक वियोगते व्याकुल है चित्त जाका । कैलःशकप जी रावण ताने हनुमानका अति सन्मानकर अपनी बांहेन जो चंद्रनखा ताकी पुत्रा अनंगकुसुला महारूपबती सो हनुमानको परणाई सो हन न ताको परण र अतिप्रसन्न भए, कैस है अन कुसुमा ? सर्वलोकविणे जो प्रसिद्ध गुण तिनकी राजधानी है। कैसी है कामके आयुध है नेत्र जाके, अर अति सम्पदा दीनी अर कर्णकुण्डलपुरका राज्य दिगा अभिषेक कराया ता नगरमें हनुमान सुखसे विराजे जैस स्वर्गलोकमें इद्र बिराजें तथा किहकपुर नगर का राजा नल द्वाशी पुत्री हरिना लनी नामा रूप सम्पदा र लसीको जीत ही सो महा विभूमि हनुमानको परणाइ तथा किन्नरगत नगरविष जे निरवाधिक विद्यावर तिनकी तो पुत्री रणों या भांति ए. सहसरातों परणी पृथ्याविणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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