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________________ १६५ KAAM उन्नीसर्वा पर्व गग्मने जब हनूमानके गुण वणन किए तब हनूमान नीचा होय रहा, लज वंत पुरुषकी माई नम्रीभून है शरीर जाका सो संतोंकी यह रीति है। अब रावण का वरुणसे संग्राम होयगा सो मानों सूर्य भयकर अस्त होनेको उद्यमी भया मन्द होगई हैं किरण जाकी सूर्यके अम्त भए पीछे संध्या प्रगट भई, बहुरि गई सो मानों प्राणनाथकी विनयवंती पतिव्रता स्त्री ही है अर चंद्रमारूप तिलकको धरै रात्रीरूप स्त्री शोभती भई बहुरि प्रभात भया सूर्य की किरणोंसे पृथ्वीविष प्रकाश भया, तब रायख समस्त सेनाकी लेय युद्धको उद्यमी भया, हनूमान विद्याकर समुद्रको भेद वरूणके नगरविणे गया । वरुणपर जाता हनूमान श्रेसी कांतिको धारता भया जैसा सुभम चक्रवर्ती परशुगमके ऊपर जाता शोभ, रावण को कटकसहित आया जानकर वरुणकी प्रजा भयभीत भई, पाताल पुंडरीक नगरका वह थनी सो नगरमें योधायोंके महाशब्द होते भए, योधा नगरसे निकसे, मानों वह योथा असुरकुमार देवक समान हैं और वरुण चमरेंद्र सुल्य है, महाशूरवीरपनेविगै गर्वित पर वरुणके सौ पुत्र महा उद्धत युद्ध करनेको पाए, नानाप्रकारके शस्त्रोंके समूहकरि रोका है सूर्यका दर्शन जिन्होंन, सो रुमके पुत्रोंन आवते ही रावणका कटक ऐसा व्याकुल किया जैसे असुरकुमार देव चद्र देवोंको कम्पायमान करें, चक्र, धनुष, षञ, सेल, परछी इत्यादि शस्त्रों के समूह राक्षसोंके हाथमे गिर पडे अर वरुणके सो पुत्रों के भागे राक्षसोंका कटक ऐसे भ्रमता भया जैसे वृक्षनिका समूह अशनिपातके भयस भ्रमै तब अपने कटकको व्याकुल देख रावण यरुणके पुत्रोंपर गया जैसे गजेंद्र वृक्षोंको उपाडै तैम बडे बडे 'योधवोंको उपाडे, एक सरफ रावण अकेला एक तरफ वरुणके सौ पुत्र, सो द्यपि उनके वाणों से रावणका शरीर मेड़ा गया तथापि रावण महायोधाने कछु न गिना, जेसे मेषके पटल गाजते वर्षते सूर्य मण्डलको आच्छादित करें तैसे वरुणके पुत्रोंने रावणको बेदा अर कुम्भकरण इन्द्रजीतसे वरुख खडने लगा । जब इनूमानने रावणको अरुणके पुत्रोंकर वेध्या टेसू फूलोंके रंग समान भारक्त शरीर देखा तब रथमें असवार होय वरुणके पुत्रोंपर दोडा । कैसा है हनूमान ? रावणसे प्रीतियुक्त है पिच जाका अर शत्रुरूप अंधकारके हरिवेको सर्य समान है पवनके वेग से भी शीघ्र वरुनके पुत्रोंपर गया सो हनूमानसे वरुणके पुत्र सोही कम्पायमान भए जैसे मेषके समूह पवनसे कम्पायमान होंय, बहुरि हनूमान वरुणके कटकपर ऐसा पडा जैसा माता हाथी कदलीके वनमें प्रवेश कर, कइयोंकों विद्यःमई लांगल पाशकर बांध लिया अर कइयोंको मुद्गरके घातकर वायल किया, वरुणका समस्त कटक, हरमानसे हर जैस जिनमार्गीके अनेकांतनयसे मिथ्यादृष्टि हारे। हनूमानको अपने कटकविणे रण क ड करते देख राजा वरुणने मोर कर रक्तनेत्र किए पर हनूमान पर पाया तब गवण बरुण को हनूमानपर श्रावता देख आप जाय रोका जैसे नदीके प्रवाहको पहाड रोके, वरुणाका पर रावणके महायुद्ध भया तब ताही समयमें घरुण के सौ पुत्र हनूमानने बांध लिये। सो पुत्रों को बधि सुनकर वरुणशोकर विह्वल भया पर विद्याका स्मरण न रहा तब रावणने याको पकड लि । सो मानों बरुण सूर पर शाके पत्र किस तिनके रोकनेसे रावण राहु का रूप धारता भया । रुएको अम्मरण के हवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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