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________________ उम्तीमा पर्व ऐसा शब्द कहा तब प्रतिसूर्यने कहा- सोच मत करो जो वृत्तांत भगा सो सुनो जा करि सर्व दुखसे निवृत्ति होय, बालकको पड़ा देख मैं विमानसे नीचे उतरा तब क्या देखा पर्वतके खंड २ हो गये पर एक शिला पर बालक पड़ा है पर ताकी मोते कर दशों दिशा प्रकाशरूप होय रही हैं तब मैंने तीन प्रदक्षिणा देय नमस्कार कर बालकको उठाय लिया अर माताको सौंपा सो माता अति विस्मयको प्राप्त भ पुत्र का श्रीशैल नाम धरा । बसंतमाला अर पुत्र सहित अंजनी को हनुमान द्वीप ले गया वहां पुत्र का जन्मोत्सव भया सो बालकका दूजा नाम हनुमान भी है यह तुमको मैंने सकल वृत्तांत कहा । हमारे नगरमें वह पतिव्रता पुत्र हित आनन्दसे तिष्टै है। यह वृतांत सुनकर पवनंजय तत्काल अंजनीके अवलोकनके अभिल पी हनुरुद्वीपको चले अर सर्व विद्याधर भी इनके संग चले हनूरुद्वोपमें गये सो दोय महीना सबको प्रतिसूर्णने बहुा आदर से राखा बहुरि सब प्रसन्न होय अपने २ स्थानको गये। बहुत दिनोंमें पाया है स्त्रीका संयोग जाने सो ऐसा पानंजय यहां ही रहै । कैना है परनंजय ? सुन्दर है चेटा जाकी और पुत्र की चेष्टासे अति आनन्दरूप हनूरुद्वीपमें देानकी न्याई रमते भए । हनूमान नव यौवन को प्राप्त भए मेरुके शिखर समान सुन्दर है सीम जिनका, सर्व जीवोंके मनको हरणहारे होते भए, सिद्ध भई हैं अनेक विद्या जिनको अर महाप्रभावरूप विनयवान् बुद्धिमान् महाबली सर्व शास्त्रके अर्थ विष प्रवीण परोपकार करनेको चतुर पूर्वभव स्वर्गमें सुख । ग आए अब यहां हनुरुहद्वीप विष देवोंकी न्याई रमें हैं। हे श्रेणिक ! गुरु पूलामें तत्पर श्री हनुमानके जन्मका वर्णन अर पवनंजय का अंजनीसे मिलाप यः अद्भुत कथा नाना रसकी भरी है, जे प्राणी भावधर यह कथा पढें पह वें सुनें सुनावें उनकी अशुभकर्म में प्रवृत्ति न हाय, शुभक्रि गाके उद्यमी होय हार जो यह कथा भावधर पढ़ें पढ़ वं उनकी परभवमें शुभगति दीर्घ आयु होय शरीर निरंग सुन्दर होय महापराक्रमी हाय अर • उनकी बुद्धि करने योग्य कार्यके, पारको प्राप्त होय अर चन्द्रमा समान निर्मलानि होय अर जासे स्वर्ग मुक्तिके सुख पाये ऐप धर्म की बढवारी होय ना लोकमें दुर्लभ वस्तु हैं सा व सुलभ होय सूर्य समान प्रताप के धारक होय। इति श्रीरविषेणाचार्यविचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविषै बनंजय अन्जनाका मिला५ वर्णन करने वाला अठारहबां पर्व पर भया ।।१८।। अथा नंतर राजा वरुण बहुरि आज्ञालोप भयः तब कोप कर तापर रावण फिर चहे सर्व भूमि गोचरी विद्याधरोंको पाने समीप बुलाया, मुबके नि:ट आज्ञा पत्र लेष दूत गए । कैसा है रावण ? राज्यकार्यविष निपुण है, किहकंधाप के धनी अर लंकाके धनी रयापुर पर चक्रवालपुर के धनी तथा बताध्य की दोनों श्रेणीक विद्याधर तथा भूमिगोचरी सब ही आज्ञा प्रमाण रावणके समीप आए हनूरुद्वापर भी प्रतिसूर्य तथा पवनंजयकं नाम आज्ञा पत्र रु य दत पाए सो ये दोनों आज्ञा पत्रका माथ चढाय दूत का बहुत सन्मानकर आज्ञा प्रमाणे गमनक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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