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पी-पुराण वियोग : दुखसे व्याकुल जो मैं बो मेरे जीवनका अवलम्बन जी बालक भया हुता सो भी पूर्वोपार्जित कर्मने छ य लिया।
सो माना तो यह विलाप करै है अर पुत्र पन्थ पर पडा लो एत्थरके हजारों खंड हो गए अर महा शब्द मा प्रतिसू दे नो वालक एक शिल ऊपर सुःइसे विराजे अपने अंगूठे प्राप आपली चूसै है भीडा कर हे अर मुलकै है प्रतिशोभा समान सूरे पडे हैं ल- लहाट करे हैं कर चरण कमल जि के, सुन्दर शरीर जिनका चेक नदेश पदके धारक उनको कौनकी उमादीने मन्द मन्द जापान तारि लहाट कर । जो रक्त कमलाका न ता समान है प्रभा जिनकी, अपने तेजा रे पहाडके खण्ड खण्ड कर एसे बजकको दु से दे कर राजा प्रसूर्य अनि छाश्चर्यको प्राप्त गया। कैसा है बालक ? निष्पाप है शरीर जाक: च..का स्वरूप तेज पुंज से पुत्र को देश माता बहुत विग्म को प्राप्त पई उठःय सिर चूमा अर छातीले लगा लिया तब प्रतिसूर्य अजह माना हे ब क ह वाक राम-सुरसस्थान बज्र वृषभ नाराच संहननका घर हरामहः वज्रका स्वरूप है जकपडनेकर हड चूर हो गया। जब या बालककी ही देत आवक अद्भु: शक्ति है तो पो न अवस्थाकी सातका कहः कहनः १ यह निश्चय सनी शरीर हे तद्भ। माक्षगमा ह Ti दे: पारंग यानी यही पयायामद्ध पदका कारण है श्री जनकरीन प्रदा। ५९14 जाड स न य अपनी रियाक .मू सहित बालकको नमस्कार करता भया । यह बात का स्त्री ... ना तइ भए श्यामश्वेत अरुण कमल तिनकी ज भाग तिनसे पूजा म .म.५ मद मुलकनका पर हर व ही नर नारिमाका मन हो, राजा प्रात। पुत्र सात अजमानजात विमाम बठाया ने स्थानमें ले आया । कता ह नगर ?जा तारणोते शानायमान हर जाको आया सुन सर्व नगरके लोक नाना प्रकारक मगल द्रासहित सम्मुख पाए र जा पा सूपन र जमलमें प्राश किया ,दिनांके नादतें व्यत नई ह दशादिशज.बालकक जामका बहा उत्साद्याधरने काग। जैसा स्वर्गलोकविषद्र का उत्सांता उत्तर दे कर ह पर्वताव जन्म पाया और मानत पड र पर्वतको चूर्ख किया जात बालक नाम माता अर बालक के मामा प्रसूर्पन *शल ठराया अर 'हरुद्वीमावर्षे जनात्सब भया तात ह भान यह नाम पृथ्वी प्र.सद्ध भया। यह श्रीशल (हनूमान) हनूरुद्वाप रमै। केसा ह कुमाः । दे नि सम न ह प्राजाकी , महातिवान सबको महा उत५.५ ६ शरीर का साकमा र नाका हरनहारा तिहकि मुरविष पिराज।
अथाननार गणधरदेव राजा श्रेणिकत कह हैं-हे नृi ! प्रशि के पूर्योपार्जित गुपके प्रभावतें मिनिका चूरण करनारा नहाकठार जानाभा पुर समान कोमल होय परणव हे अर महा आताप की करणहारी जाग्नि सी भी चद्राको किरण समान तथा सिर्ण कमलिनीक वन समानतल होय है अर महा तीचा खडगी धारा सो महामनोहर कोमल लता मान होय है ऐसा जानकर जेविकी जीव है त पाप विरक्त होय है कैसा है पाप ? महा दुख इनेविष
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