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________________ मंत्रहवा पर्व १८३ अंजनी प्रतिसूयकी स्त्रीत सम्भाषण करती भई यो बड़ की ही है जो दुखविणे हू यते न चूकें बहुरि अंजनी मामासे हती भई हे पूज्यत्रक समाप्त शुभाशुभ वृत्तांत ज्योतिपियों से पूछो व सांवत्सरनामा ज्योतिषी लार था ताको पूछ तर जोगिती योना बालकके ज मकी वेला बतायो तव वसंतमालाने कही आज धर त्रि गए ज म भया तब ल न थ पकर बालकके शुभ लक्षण जान ज्योतिषी कहना भया कि 'ह मुक्तिका भाज। है व रि ज म धग जो तिहरे मनमें संदेह है तो मैं संपतासे कहूँ सो सुनो-चैत्र वदी अष्टमीकी थि है अर प्राण नक्षत्र है अर सूर्य मेषका उच्चस्थानकविणे बैठा है अर चन्द्रम' वृपका है म रका गल हे र बुध मीनका है अर वृह पति ककका है सो उच्च है शुक्र तथा शनेश्चर दोना मी. के है सूर्य पूर्ण किरको देखी है अर मंगल दश विश्वा सूर्यका देखी है अर वृह प. पद्रह विराभूका रखा है अर सूर्य दश विश्वा वृहस्पतेिको देख है अर चंद्रमा को पूण हांष्ट वृहस्प त देखी है और वृह पतिको चन्द्रमा देखी है अर वृहस्पति शनीचरको प; ह विश्वा देखो हं र शरीरको दस विश्वा देखो है अर वृह प।ि शुक्रको पन्द्रह श्विा दो है ...र शुक्र वृह पा को पन्द्रह विश्वा देख याके सव ही ग्रह बलवान बैठे हैं सूर्य और मंगल दोनों याका अद्भु। राज्यसि पर करें है अर वृह. स्पति पर शनि मुक्तिका देनहा। जो योगी द्र ताका पणि । कर है जो । क ह पात ही उच्च स्थान बैठा होय तो सर्व कल्याणके प्राप्तिका कारण है अर ब्रह्मनामा माग ह ५ र मुहूर्त शुभ है सो अविनाशी सुखका समागम याके होगग या भ ति माही ग्रह लिव न बैठ है सो सर्व दोषरहित यह होयगा ऐसा ज्यो िपीने जब कहा नव प्रतिसूर्यने ताको बहुन दान दिया कर भानजी को अतिहर्ष उपजाया पर कही कि हे वन्से अब हम सब हारूह द्वीपको गले न्हां बालकका जन्मोत्सब भली भांति होगग ! तब अंजना भगवान्की वेदना का प्रत्रको गोदी में लेग गुफाका अधिपति जो वह गंधर्व देव तासे बारंबार क्षमा कर य सूर्यके परि र हि गुफाकली अर विमानके पास आई, ऊभी रही मानो माक्षात् वन ची ही है कैा है विमान ? मोनिके जे हार सोई मानों नीझरने हैं कर पानकी प्रेरी क्षद्र पणिया बाज रहीं हैं र हलहाट कर ी जे रन्नोंकी झालरी नसे शोभायमान अर केलिके वन से : भयान, सूर्यके रि के ग्पर्श कर ज्योतिरूप होय रहा है अर नानाप्रकारके रन्नोंकी : भर उधो िक मंडल पड रहा है सो मानों इंद्रधनुाही चढ रहा हैर नानाप्रकरके वाडा ..जः फरह है और हमान कल्प पक्ष समान मोहर नानाप्रकारके र ननिकर पित न.पको घर ना गलो से पाया है, सो वा विमानम पुत्रसहित अंजना बसमा । त २जी सियका बारव र सबल बैठ र आकाशके मा चले, सोय लक को क र भुलका माता गोते. छार पर्व. ऊपर जा पडा । माता हाहाकार करता भई २५ सोन र ज प्रामह हार भए बर राजा प्रतिसूर्य बालकके ढूंढनेको आकाशसे पृथ्वीपर ..या, जना *ति नमिलाप कर है। ऐसे विलाप कर है जाको सुनकर तिर्यंचांका मन भी करुण र कोमल होमया । हाय पुत्र कहा भया देव कारय पूर्वोपार्जित कर्मने कहा किया मोह रत्न सह निधान दिखाकर बहुर हर लिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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