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पद्म-पुराण
पूछत भगा मानो मयूर हर्षित करता ही गरजा है । सुमर्यादा कहिये मर्यादाकी eet यह भाई किमकी बेटी किस परणी कारण महावनमें रहे हैं । ह बड़े घर की पुत्री हैं किस कारण पर्व कुवरहित भई है अथवा इस लोक रागद्रष रहित जे उत्तम जीव हैं तिनके पूर्व कर्मोंक मेरे ठिकर बेरी होय हैं तब संगम ला दु:बके भार रुक गया कठ जिसका सीना है इटकर न कही भई - महानुभाव तुम्हारे वचनहीसे तुम्हारे मक्की शुटता जानी जाय है जैसे दाहके नाशका मूल जो चन्दनका वृत्र उसकी छायः भी सुन्दर लगे है तुम सारिखे जे गुणवान पुरुष हैं सो शुद्धभाव प्रकट करनेके स्थानक हैं आप बड़े ही दयालु हो यदि तुम्हारे इसके दुःख सुनने की इच्छा है तो सुनो मैं कहूँ हूँ तुम मारिखे बड़े पुरुषोंने वह हुबा दुःख निवृत्त होय है तुम दुःखह री पुरुष हो तुम्हारा यह स्वभाव ही है कि आप हाथ करो को सुनो ग्रह अंजनी सुन्दरी रजा महेन्द्रकी पुत्री है हरा पृथि पर प्रसिद्ध महायान नी वान निर्मल स्वभाव है और राजा प्रल्हादका पुत्र पनंजय गुणांक सागर की प्राणहून परी यह स्त्री हैं सो पवनंजय एक समय बापकी आज्ञास अपहरण कर युवक अर्थ विदा हो चले थे सो मानसरोवरसे रात्रिको इसके मह तमें आए डर इसको गर्भ रही इसकी मासूका क्रूर स्वभाव दयारहित महामूर्ख था ही उसके चित्त में गर्भका भर्म उपजः तर उगने इमको पिताके घर पठाईं यह सर्व दोषरहित महालीशी निर्विकार है सो तिने भी प्रकीर्तिक भयसे न राखी । जे मज्जन पुरुष हैं वे भृठे भी दोषसे डरें हैं यह बड़े कुनकी बालिका सर्वश्रालंबन रहित इस वनमें मृगीसमान रहे है मैं इसकी सेवा करू' हूँ । इनके कुल क्रमसे हम आज्ञाकारी सेवक है इतवारी हैं अर कृपापात्र हैं सो यह श्राज इस वनमें प्रसूति भई है यह वन नाना उपसर्ग का निवास है न जानिए कैसे इसको सुख होगा ! हे राजन् यह इसका वृत्तांत संक्षेपसे तुमसे कहा थर संपूर्ण दुःख कहां तक कहूँ इस भांति स्नेहमे पूरित जो बसन्तमाला के हृदयका राग मो अन्जनीके तापरूप अग्नि से पिवला र अङ्गमें न समाया को मनो बसन्तमालाके वचन द्वारकर वाहिर निकसा तब वह राजा प्रतिसूर्य हनुहन मद्वी का स्वामी बसन्तमा लागू कहना भया - हे भव्ये मैं राजा चित्रभानु र राणी सुन्द मालिनी का पुत्र हूं, यह अजी मेरी भानजी हे मैंने बहुत दिनमें देखी सो पिछानी नहीं ऐसा क कर अन्जीको बालावस्था से लेकर सकल वृत्तांत कड़कर गद्गद् वाणीकर वचन लापकर प्रसू डलता भया तब पूर्ण वृत्तां कनेर्ते अन्जनीने इसको मामा जान गले लग बहुत रुदन किया तो मानों क न दुःख रुदनमहित कप गया । यह जगरकी रीति है, हिनुको देन अश्रुपात पड़े' हैं वह राजा भी रुदन करने लगा अर ताकी रानी भी रोने लगी बसन्तमाला ने भी प्रति रुद किया इन सबके रुदनसे गुफा गुंजार करती भई सो मानों पर्वतने भी रुदन किया । जतके जे नीझग्ने तेई भए अत उनसे व वन मई हो गया वनके जीव जे मृगा दे सो भी रुदन करते भए तब राजा प्रज से अन्जनीका मुख प्रक्षालन कराया पर आप भी जलसे मुख प्रक्षाला | वन भी शब्दरहित हो गया मानों इनकी वार्ता सुनना चाहे है ।
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