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संवहा पर्व भोगै, कवहक अनन्तकाल पुन्यके योगत मनुष्य देह पावे है । हे शोभने मनुष्य देह का पुण्यके योम तपाई है तातें यह निंद्य श्राचार तू मत कर, योग्य क्रिया करने के योग्य है । यह मनुष्य देह पाय जो मुक्त न कर है मो डारे रत्न खोवै मन तथा वचन तथा कायसे जो शुभ क्रियाका साधन है सोई गेष्ठ है अर अशुभ क्रियाका साधन है सो दुःखका मूल है । जे अपने कल्याणक अर्थ पुकनधि प्रवरते हैं तेई उत्तम हैं यह लोक महानिंद्य अनाचारका भरा है जे संत संसार सागर ते आप तर हैं औरोंको तार हैं, भव्य जीवोंको धर्म का उपदेश देय हैं तिन समान और उत्तम नाही. ते कृतार्थ हैं तिन मुनियोंके नाथ सर्व जगतके नाथ धर्मचक्री श्रीअरिहंत देव तिनके प्रतिविम्बका जे अविनय कर हैं वे अज्ञानी अनेक भवमें कुगतिक महादुख पावै है सो वे दुःख कोन वर्ण कर मकै, यद्यपि श्रीवीतराग देव राग द्वेषरहित हैं जे सेवा करें तिनतें प्रसन्न नहीं, अर जे निंदा करें किन द्वष नाही महा मध्यम भाको धारै हैं परन्तु जे जीव सेवा करे ते स्वर्ग मोक्ष पावै है जे निंदा करें ते नर निगोद पात्रं काहेत. जीवोंके शुभ अशुभ परणापनिते सुख दुख की उत्पत्ति होय है जैस अग्नि के सेवनसे शीतका निवारण होय; अर खान पानसे क्षधा तृषाझी पीडा मिटे तैसे जिनराजके अर्चन स्वयमेव ही सुख होय है अर अनियस परम सोय है हे शोनन ! जे संसारविषे दुख दोखे हैं वे सब पापक फल हैं अर जे सुख है ते पन फल है। सो तू पूर्व पुए पक प्रभावते महाराज की पटराणी भई अर महासंपत्ति ती भई अर अद्भुत कार्यका करणहारा तरा पुत्र इ अब तू ऐसा कर जो फिर सुख पावै अपना कल्याण कर, मर वचनोंसे। हे भव्ये ! भूयक पर नेत्रा हात संत तू कूपमें मत पड़े जो श्रेय में करेगी तो धार नर कमें पडेगी देव गुरु शास्त्रका अविनय करन अन्त दुखका कारण है अर ऐन दोष ख जो मैं ताहि न संबाध्' ती माहि प्रमादका दोष लाग है ताते तरे कल्याण निशिच धर्मोपदेश दिया है जब श्री. आणिकाजीन ऐसा कहा तब यह नरक दुखसे डरी सम्यक दर्शन धारण किया श्राविकाके व्रत श्रादरे श्राजाकी प्रतिमा मंदिरमें पथरा, बहुत विधानसे अष्ट प्रकार की पूजा करादे, या भांति राणी कनकादरीका आधिका धर्मका उपद अपने स्थानको गई अर वह कनकोइरी श्रीसवज्ञ देव का धर्म पारावकर समाधिमरण कर स्वर्ग लो में गई, तहां महामुख भोगे, स्वर्गत चयकर राजा महेंद्रकी राणी जी मनाचंगा ता अंजना सुन्दरी नामा तुमुनी भई सो पुलके प्रभावी रजालावष उपजी उत्तम दर पाया पर जा जिन्द्रिदेवकी प्रतिमा को क क्षण मन्दिरके माहिर रख. था प.प कर धमाका विग जुम्मन पर प.! । बिबाइक तीन दिन पहिले प.जा प्रकारुपाए रात्रि तिहारे झरोखेविष प्रहमन मित्र माहन वठ हुतो का समय मिकेशी वधु प्राकी स्तुति करा, ५ नंजी निंदा करीला कारण पानंज द्वको प्राप्त भए । वर युद्धक अर्थ धरते चले मानसराम्रपर डेरः किया वहां चकीका विरह देखकर करुणा उपनी की करुणा ही मानों सखीक रूप होय कुमरको सुन्दरी मीप लाई तत्र ताकरि गर्भ रहा बार कुमार प्रछन ही पिता की माज्ञाक साधिवेक अर्थ रावष निकर गए । ऐसा कर
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