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________________ सहस्र वर्ष जिनशासनवियै गाया है तैा ध्यान करते, समस्त परिग्रहरहित, पवन जैसे अमंगी आकाश जैसे निर्मल, मानी पहाडके शिखर ही हैं सो इन दोनोंने देखे । कैसे हैं वे साधु ? महापराक्रमकेधारी महा शांति ज्योतिरूप है शरीर जिनका । ये दोनों मुनिके पास गईं सर्व दुख विस्मरण भया तीन दक्षिणा देय हाथ जोड नमस्कार किया. मुनि परम बांधव पाए, फूल गए हैं नेत्र जिनके जा समय जो प्राप्ति होनी होय सो होय तब ये दोनों हाथ जोड विनती करती भई । मुनिके चरगारविंदकी ओर धरै हैं अश्रुपातरहित स्थिर मंत्र जिनने । हेगन ! हे कल्याणरूप ! हे उत्तम चेष्टाके धरण हारे ! तिहारे शरीर में कुमल है, कैसा है तिहारा देह ? सर्व तपव्रत आदिका मूल कारण है । हे गुणके सागर ऊपरां ऊर तपी है वृद्धि जिनकी, हे महाक्षमावान, शांति भावके धारी, मन इन्द्रियों के जीवनबारे बिहारा जो विहार है सो जीवन के कल्याण निमित्त है तुम सारिखे पुरुष सकल पुरुषों को कुशन के कारण हैं सो तिहारा कुशल का पूछना परन्तु यह पूछने का आचार हैं है ऐसा कह विनयसे नत्रीभूत भया है शरीर जिनका तो चुप हो रही अर मुनिके दर्शन से सर्व भयरहित भई ॥ अथानन्तर मुनि अमृत तुल्य परम शांति वचन कहने भए - हे कल्याणरूपिणी ! हे पुत्री हमारे कर्मानुसार सब कुशल है ये सर्व ही जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगे हैं। देखो कर्मनि की विचित्रता, यह राजा महेंद्र की पुत्री अपराधरहित कुटुम्ब के लोगनिने काढी है । सो मुनि बड़े ज्ञानी विना कहे त्तांत जाननहारे तिनको नमस्कारकर बसन्तमाला पूछती भई - हे नाथ कोन कारण से भरतार इसे बहुत दिन उदास रहे बहुरि कौन कारण अनुरागी भएर ना सुख योग्य बनविणै कौन कारणले दुसको प्राप्त भई । कौन मंदभागी याके गर्भ में आया जिससे इसको वनेका संशष भय तर स्वामी श्रमितगति तीन ज्ञानके धारक सर्व वृजात यथार्थ कहते भए, यहाँ महापुरुषों की वृद्धि है जो पराया उपकर करें। 1 भवमें पापका च मुनि मामालास कह हैं - हे पुत्री ! या गर्भविषे उत्तम पुरुष आया है सो प्रथम तो ताके भव सुनि बहुरि जा कारण यह अंजनी ऐसे दुःखको प्राप्त भई जो पूर्व रण किया सो सुन | जम्बूद्वीप में भरत नामा क्षेत्र तहां मंदिर नामा नगर तहां प्रियनरी नामा गृहस्थी ताके जाया नाम स्त्री र दमयंत नाम पुत्र था सो महा सौभाग्य संयुक्त कल्याणरूप जे दया क्षमाशील संतोपादि गुण तेई हैं आभूषण जाके । एक समय वसन्तऋतु नन्दनवन तुल्य जो बन तहां नगर के लोग क्रीडाको गए । दमयन्तने भी अपने मित्रोंसहित बहुत क्रीडा करी, वीरादि सुगन्धोंसे सुगन्धित हैं शरीर जाका अर कुण्डलादि आभूषणनिकर शोभायमा नसो ताने ताही समयविषै महामुनि देखे, कैसे हैं मुनि ? अम्बर कहिए आकाश. सोई है अम्बर कहिए बन जिनके तप ही है धनि र ध्यान स्वाध्याय आदि जे क्रिया तिन मैं उद्यमी सो गह दमयन्तमहा देदीयमान क्रीडा बरते जे अपने मित्र तिनको छोड मुनियों की मंडली में गया । बंधनाकर धर्मका व्याख्यान सुन सम्यग्दर्शन ग्रहण किया । श्रावक के व्रत धारे, नाना प्रकार के नियम अंगीकार किए एक दिन जे रुक्ष गुण दाताचे कर नवधा भक्ति तिन संयुक्त होय साधुवोको आहार दिया, Jain Education International 8 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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