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मैता पर्व पहले ही दिनविज मानसरोवर जाय डेरे भए, पुष्ट हैं बाहन जिनके सो विद्याधरोंकी सेना देवों की सेना समान आकाश उतरती हुई यति शोभायमान दीखती भई । कैमी सेना? नाना प्रकारके जे वाहन अर शस्त्र तेई हैं आभूषण जाके अपने २ बाहनोंके यथायोग्य यत्न कराये स्नान कराये खानपानका यत्न कराया।
____ अथानन्तर विद्याके प्रभावतें मनोहर एक बहुखणा महल बनाया चौडा अर ऊचा सो श्राप मित्र सहित महल ऊपर विराजे । संग्रामका उपजा है अति हर्ष जिनके, झरोखावों की जाली के छिद्रोंसे सरोवरके तटके वृक्षोंको देखते थे, शीतल मंद सुगंध पवनसे वृक्ष मन्द मन्द हालते हुते अर सरोवरवि लहर उठती हुती सरोवरके जीव कछुवा, मीन, मगर अर अनेक प्रकार के जलचर गर्वके धारणहारे तिनकी भुनानिकरि किलोल होय रही हैं उज्ज्वल स्फटिक मणि समान निर्मल जल है जामें, नाना प्रकारके कमल फूल रहे हैं हंस, कारंड, क्रौंच, सारस इत्यादि पक्षी सुन्दर शब्द कर रहे हैं जिनके मुननेसे मन अर कर्ण हर्ष पावै अर भ्रमर गुजार कर रहे हैं तहां एक चकवी चकवे बिना अकेली वियोगरूप अग्नितें तप्तायमान अति अाकुल नानाप्रकार चेष्टाकी करणहारी अस्ताचलकी ओर सूर्य गया सो वा तरफ लग रहे हैं नेत्र जाके पर कम- : लिनीके पत्रोंके छिद्रांविष बारम्बार देखे है, पांखोंको हलावती उठे है अर पडै अर मृणाल कहिये कमलकी नाल का तार ताका स्वाद विप समान लगे है, अपना प्रतिविम्ब जल विषै देखकर जान है कि यह मेरा प्रीतम है सो उसे बुलावै है सो प्रतिविम्ब कहा आवै तव अप्राप्तिते परम शोकको प्राप्त भई है । कटक आय उतरा है सो नाना देशोंके मनुष्यों के शब्द अर हाथी घोड़ा आदि नाना प्रकारके पशुयोंके शब्द सुनकर अपने वल्लभ चकवाकी आशाकर भ्रमै है चित्त जाका, अश्रुपात सहित हैं लोचन जाके, तटके वृक्षपर चढ़कर दशोंदिशाकी ओर देखे है। पीतम को न देखकर अति शीघ्र ही भूमिपर पाय पड़े है, पांख हलाय हलाय कमलिनीकी जो रज शरीरके लगी है सो दूर कर है सो पवन कुमारने धनी वेर तक दृष्टि थर चकवीकी दशा देखी दयाकर भीज गया है चित्त जाका चित्त में ऐसा विचारा कि पीतमके वियोगकर यह शोकरूप अग्निविणे बलै है यह मनोज्ञ मानसरोवर अर चंद्रमा की चांदनी चंदन समान शीतल सो इस वियोगिनी चकवीको दावानल समान है, पति बिना इसको कोमल पल्लव भी खड्ग समान भासै हैं चन्द्रमाको किरण भी वज्र समान भास है, स्वर्ग भी नरकरूप होय आचरै है। ऐसा चितवनकर याका मन प्रियाविषे गया अर या मानसरोवरपर ही विवाह भया था सो वे विवाह के स्थानक दृष्टिमें पड़े सो याको अति शोकके कारण भए, मर्मके भेदनहारे दुःसह करौंत समान लगे। चित्तविणै विचारतो भया-हाय ! हाय ! मैं क्रूरचिच. पापी, वह निर्दोष वृथा तजी, एक रात्रिका वियोग चकवी न महार सकै तो बाईस वर्षका वियोग वह महासुन्दरी कैसे सहारे कटुक वचन वाकी सखीने कहे हुते, वाने तो न कहे हुते, मैं पराए दोषसे काहेको ताका:परित्याग किया । धिक्कार है मो सारिखे मूर्खको जो विना विचारे काम करै ऐसे निष्कपट प्राणी को निष्कारणं दुख अवस्था करी मैं पापचित हूं वन समान है हृदय मेरा जो मैंने एते वर्ष असी.
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