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________________ DAAR.. . सोलहवा पर्व वात कहै है । तब इतने जायकर रावणसे सर्व वृत्तांत कहा रावणने कोपकर समुद्र तुल्य सेनासहित जाय बरुणका नगर घेरा अर यह प्रतिज्ञा करी जो मैं याहि देवाधिष्ठित रत्नों विना ही वश करूंगा, मारू अथवा बाधू । तर बरुणके पुत्र राजीव पुण्डरादिक क्रोधायमान होय रावणके कटकपर मारे । रावण की सेनाके पर इनके बड़ा युद्ध भया, परस्पर शस्त्रोंके समूह छेद दारे, हाथी हाथियोंसे, घोड़े घोड़ोंसे, रथ रथोंसे, भट भटोंसे महायुद्ध करते भए, बड़े २ सामन्त होठ डस डसकर लाल नेत्र हैं जिनके वे महाभयानक शब्द करते भए । बड़ी बेरतक संग्राम भया । सो दरुणकी सेना रावणकी सेनासे कछु इक पीछे हटी तव अपनी सेनाको हटी देख वरुण राक्षसोंकी सेना पर आप चला आया कालाग्नि समान भयानक | तब रावण वरुणको दुर्निवार रणभूभिविषे सम्मुख आवता देख कर आप युद्ध करनेको उद्यमी भए । यरुणके रावणके आपसविणे युद्ध होने लगा अर वरुण के पुत्र खरदूषण से युद्ध करते भए । कैसे हैं वरुणक पुत्र महाभटोंके प्रलय करनहारे अर अनेक माते हाथियों के कुम्भस्थल विदारनहारे । सो रावण क्रोधकर दीप्त है मन जाका महाकर जो भृकुटि तिनकरि भयानक है मुख जाका, कुटिल हैं कैश जाके जव लग धनुषके वास तानकर वरुणपर चलायै तब लग वरुण के पुत्रोंने राणके बहनेऊ खरपण को पकड़ लिया तव रावणने मनमें विचारी जो हम बरुण से युद्ध करें अर खरमणका मरण होय तो उचित नहीं तात संग्राम मने किया, जे बुद्धिमान है ते मंत्रविणे चूके नहीं, तब मंत्रियों ने मंत्रिकर सब देशोंके राजा बुलाए, शीघ्रगामी पुरा भेजे, सवनको लिखा-बड़ी सेनासहित शीघ्र ही आवो पर राजा प्रल्हादपर भी पत्र लेय मनुष्य आया सो राजा प्रल्हादने स्वामीकी भकिकर रावण के सेवकका बहुत सन्मान किया पर उठकर बहुत आदरसे पत्र माथे चढ़ाया भर बांचा सो पत्रविणे या भांति लिखा था कि पातालपुरके समीप कल्याणरूप स्थानको विष्ठता महाक्षेमरूप विद्याधरोंके अधिपतियों का पति सुमालीका पुत्र जो रत्नश्रया ताका पुत्र राक्षसवंशरूप आकाशमें चन्द्रमा ऐसा जी रावण सो आदित्य नगरके राजा प्रन्हादकों आज्ञा करें है। कैसा है प्रन्हाद ? कल्याणरूप हैं, न्यायका वेत्ता है, देश काल विधानका शायक है, हमारा बहुत वल्लभ है, प्रथम तो तुम्हारे शरीरकी कुशल पूल है बहुरि यह समाचार है कि हमको सर्व खेचर भूचर प्रणाम करै हैं हाथोंकी अंगुली तिनके नखकी ज्योतिकर ज्योतिरूप किए हैं निज शिरके केश जिनने पर एक अति दुय द्धि वरुण पाताल नगर में निवास करें है सो प्राज्ञासे पराक मुख होय लड़नेको उद्यमी भया है, हृदयको व्यथाकारी विद्याधरोंके समूहसे युक्त है, समुद्रके मध्य द्वीपको पायकर वह दुरात्मा गर्वको प्राप्त भया है सो हम ताके ऊपर चढ़कर आये हैं। बड़ा युद्ध भया वरुण के पुत्राने खरदूषण को जीवता पकड़ा है सो मंत्रियोंने मंत्रर खरदूषण के मरपकी शंकातें युद्ध मने किया है तातै खरदूषण का छुड़ावना अर वरुणको जीतना सो तुम अवश्य शीघ्र आइयो डील करो मत, तुम सारिखे पुरुष कर्तव्यमें न चूकें । अव सव विचार तुम्हारे आवनेपर है यद्यपि सूर्य तेजका पुंज है तथापि अरुण सारिखा सारथी चाहिये। .तब राजा प्रल्हाद पत्रके समाचार. जान मंत्रियोंसों मंत्र कर रावणके समीप चलनेको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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