________________
की प्रज्ञा प्रमाण सेनाके लोगोंको पयान की आज्ञा करता भया, समुद्रसमान सेना रथ घोड़े पयादे इनका बहुत शब्द भया कन्या का निवास नजीक ही है सो सेनाके पयानके शब्द कन्या के कान में पड़े तब कुमार का कूच जानकर कन्या अति दुखित भई । वे शब्द कानको ऐसे बुरे लगे जैसे बज्रकी शिला कान में प्रवेश करै अर उ.परसे मुद्गरकी धात पडै । मनमें विचारती भई । हाय हाय ! मोहि पूर्वोपार्जित कर्मने महानिधान दिया था सो छिनाय लिया, कहा करूं अब कहा होय मेरे मनोरथ हुता जो इस नरेंद्रके साथ क्रीड़ा करूंगी सो और ही भांति दृष्टि श्राव है तो अपराध कछु न जान पडै है परन्तु यह मेरी वैरिन मिश्रवेशी ताने निंद्य वचन कहे हुते सो कदाचिन् कुमारको यह खबर पहुंची पर मोवि कुमाया करी होय यह विवेकरहित पापिनी कटुभापिर्णा धिक्कार इसे, जानें मेरा प्राणवल्लभ मांत कृपारहित किया अब जो मेरे भाग्य होय पर मेरा पिता मुमार कृयाकर प्रणनाथ को पीछा बहोड़े पर उनकी सुदृष्टि होय तो मेरा जीतव्य हे अर जो नाथ मेरा परित्याग करे तो मैं आहारको त्याग कर शरीरको तजंगी ऐमा चिंतन करती यह सती मूर्छा खाय धरती पर पड़ी जैसे बेलिकी जड़ उपाड़ी जाय अर वह पाश्रयतै रहित होय कुमलाय जाय तैसे कुमलाय गई तब सर्व सखी जन यह कहा भया ऐसे कहकर अति संभ्रमको प्राप्त भई । शीतल क्रियाएँ इसे सचेत किया तघ यामू का कारण पूछा सो यह लज्जासे कह नर के निश्चन लोवन होय रही। ___अथानन्तर पवनंजयकी सेना के लोकम.नमें पाकुन भए पर विचार करते भए जो निःकारण कूच काहेका? यह कुमार विवाह करने आया सा दुलहिन को परण कर क्यों न चले, याके कोप काहेसे भया इसको कोजने कहा, सर्व वस्तुकी सामग्री है काहू वस्तु की कमी नाही याका सुसरा बड़ा राजा कन्या अतिसुन्दरी यह पराङ मुख क्यों भया तब कैयक हसि करि कहते भए नाम पवनंजय है सो अपनी चंचलतात पश्नको जीत है श्रार कैपक कहते भए अभी स्त्रीका सख नहीं जाने है तातें ऐसी कन्याको छोड़ कर जानेको उद्यमी भया है, जो याके रतिकालका राग होय तो जैसे वनहस्ती प्रेमके बन्धनसे बंधे हैं तैसे यह बंध जाय, या भांति सेनाके सामन्त कहै हैं अर पवनंजय शीघ्रगामी वाहन पर चढ़ चलनेको उद्यमी भए तब कन्याका पिता राजामहेन्द्र, कुमार का कूच सुन कर अति प्राकुल भषा समस्त भाईयों सहित राजा प्रल्हादपै आया । प्रल्हाद अर महेन्द्र दोनों प्राय कुमारको कहते भए-हे कल्याणरूप हमको शोकका करणहारा यह कूच काहेको करिये है अहो कोनने आपको क्या कहा है शोभायमान तुम कौनको अप्रिय हो जो तुमको न रुचे सो सबहीको न रुचं तुम्हारे पिताका घर हमारा वचन जो सदोप होय तो भी तुमको मानना योग्य है सो तो हम समस्त दापरहित रहे हैं तुमको अवश्य धारना योग्य है । हे शूरवीर कृचसे पीछे फिरो हमको हमारे दोनोंके मनवांछित सिद्ध करो। हम तुम्हारे गुरु जन हैं सो तुम सारिखे सत्पुरुषोंको गुरु नोंकी आज्ञा अानन्दका कारण है ऐसा जब राजा महेन्द्रने अर प्रल्हादने कहा तब यह कुमार धीर वीर विनयकर नम्रीभूत भया है मस्तक जाका । जब तातने पर ससुरने बहुत अादर सों हाथ पकड़े तब यह कुमार गुरुजनोंकी जो गुरुता ताको उलंघनेको असमर्थ भया । उनकी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org