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पन्द्रहवां पर्व
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विषै विरोध भया तातें यह न करना तब ताराधन्य मंत्री कहता भया - - दक्षिण श्रेणीविष कनकपुर नामा नगर है तहां राजा हिरण्यग्रम ताके रानी सुमना । पुत्र सौदामिनीप्रभ सो महा यशवंत कीर्तिधारी नवयवन नववय अति सुन्दर रूप सर्व विद्या कलाका पारगामी लोकनिके नेत्रोंको श्रानन्दकारी अनुपम गुण, अपनी चेष्टासे हर्षित किया है सकल मण्डल जाने घर ऐसा पराक्रमी है जो सर्व विद्याधर एकत्र होंय तासें लड़ें तो भी उसे न जीतें म'नों शक्तिके समूह से निरमाया है । सो यह कन्या उसे दो जैनी कन्या तेरा वर, योग्य सम्बन्ध है यह वार्ता सुनकर संदेहनामा मंत्री मात्रा धुने, आंख मीच र कहता भया - वह सौदा मिन पभ महा भव्य है। ताके निरन्तर यह विचार है कि यह संसार अनित्य है सो संसारका स्वरूप जान वरम अठारहमें वैराग्य धारेगा, विष भिनाषी नहीं, भागरूप गज बंधन तुडय गृहस्थीका त्याग करेगा, बाह्याभ्यन्तरपरिग्रह परिहारकर केवलज्ञानको पाथ मोक्ष जायना सो याहि परणावें तो कन्या पति विना शोभा न पावै जैसे चन्द्रमा चिन र नीका न दीखें । कैसा है चन्द्रमा ? जगतमें प्रकाश करणहारा है तातें तुम इन्द्रके नगर समान आदित्यपुर नगर है रत्नोंकर सूर्य समान देदीप्यमान है। वहां राजा प्रह्लाद महाभोगी पुरुष, चन्द्रमा समान कांवेका धरी ताके राणी केतुमती कामकी ध्वजा उनके वायुकुमार कहिए परनंजय नामा पुत्र पराक्रमका समूह रूपवान शीलवान गुणनिधान सर्व कलाका पारगामी शुभ शरीर महावीर, खोटी चेष्टासे रहित ताके समस्त गुण सर्व लोकोंके चित्तविषै व्याप रहे हैं, हम सौ वर्षमेंदू न कह सकें तातैं आप ही वाहि देख लेहु | पवनंजयके ऐसे गुण सुन सर्व ही हर्षको प्राप्त भए । कैना है पवनंजय ? देवनिके समान है द्युति जाकी जैसे निशाकरकी किरणोंकर कुमुदनी प्रफुल्लित होय तैसे कन्या भी यह वार्ता सुनकर प्रफुल्लित भई ।
अथानन्तर बसंत ऋतु आई, स्त्रियों के मुख कमल की लावण्यताकी हरणहारी शीतऋतु गई कमलिनी प्रफुल्लित भई, नवीन कमलों के समूहकी सुगंधाकरि दशों दिशा सुगंध भई कमलोंपर भ्रमर गुंजार करते भए । कैसे हैं अनर 3 मरंद कहिए पुष्पकी सुगंध रज ताके अभिलाषी हैं । वृक्षनिके पल्लव पत्र पुष्पादि नवीन प्रकट भए मानों संतके लक्ष्मीके मिलापसे हर्ष कुर उपजे हैं अर आम पैं मौल आए तिनपर भ्रमर भ्रम है लोकोंके मनको कामबाण बींधते भए, कोकिलावोंके शब्द मानिनी नायिकावोंके मानका मोचन करते भए । बसन्त समय परस्पर नर नारियोंके स्नेह बढता भया । हिरण जो है सो दू के अकुर उखाड़ हिरणी मुखमें देता भया सो ताको अमृत समान लगे अधिक प्रीति होती भई अर बेल वृक्षोंसे लपटी, कैसी हैं बेल ? भ्रमर ही हैं नेत्र जिनके, दक्षिण दिशाकी पवन चली सो सब ही को सुहावनी लगी । पवन के प्रसंगकरि केसर के समूह पड़े सो मानों बसन्त सिंहके केशों के समूह दी हैं, महा सघन कौरव जातिके जे वृक्ष तिनपर भ्रमरोक समूह शब्द करें हैं मानों वियोगिनी नायिकावोंके मनको खेद उपजावनेको बसन्तने प्रेरे हैं, अर अशोक जातिके वृक्षोंकी नवीन कोंपल लहलहाट कर हैं सो मानों सौभाग्यवती स्त्रियोंके रागकी राशि ही शोभे हैं । अर वनोंमें टेसू
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