________________
पद्म-पुराण
१४६
अथानन्तर ताही केवलीके निकट हनुमानने श्रावकके व्रत लिए अर विभीषणने भी ब्रत लिए भाव शुद्ध होय व्रत नियम आदरे जैसा सुमेरु पर्वतका स्थिरपना होय ताहूते अधिक हनूमानका शील अर सम्यक्त्व परम निश्चल प्रशंसा योग्य है । जब गौतम स्वामीने हनुमानका अत्यन्त सौभाग्य आदि वर्णन किया तब मगध देशकै राजा श्रेणिक हर्षित होय गौतम स्वामी से पूछते भए । हे गणाधीश हनुमान कैसे लक्षणोंका धरणहारा कौनका पुत्र कहां उपजा ? मैं निश्चयकर ताका चरित्र सुनना चाहूँ हूं । तब सत्पुरुषोंकी कथासे उपजा है प्रमोद जाको ऐसे इन्द्रभूति कहिए गौतम स्वामी आह्लादकारी वचन कहते भए–'हे ना ! विजयाध पर्वतकी दक्षिणश्रेणी पृथ्वीसे दश योजन ऊंची तहां श्रादित्यपुर नामा मनोहर नगर तहां राजा प्रह्लाद रानी केतुमती तिनके पुत्र वायुकुमार ताका विस्तीर्ण वक्षस्थल लक्ष्मीका निवास । सो वायुकुमार को संपूर्ण यौवन घरे देखकर पिताके मनविष इनके विवाहकी चिन्ता उपजी। कैसा है पिता ? परंपराय संतानके वह वनेकी है यांचा जाके । अब जहां यह वायुकुमार परणेगा सो कहिए है। भरतक्षेत्र में समुद्रतें पूर्व दक्षिण दिशाके मध्य दंतीनामा पर्वत जाके ऊचे शिखर आकाश लगि रहे हैं नाना प्रकार वृक्ष औषधि तिन संयुक्त अर जलके निझरने झरे हैं जहां, इंद्र तुल्य राजा महेंद्र विद्याधर दाने महेन्द्रपुर नगर बसाए । राजाके हृदयवेगा रानी ताके अरिंदमादि सौ पुत्र महागुणवान भर अंजनी सुन्दरी पुत्री सो मानो त्रैलोक्यकी सुन्दरी जे स्त्री तिनके रूप एकत्रकर वनाई है, नील कमल सारिखे हैं नेत्र जाके, कामके बाण समान तीक्ष्ण दूरदर्शी कर्णान्तक कटाच अर प्रशंसा योग्य कर-पल्ला,रक्तकमल समान चरण, हस्तीके कुम्भस्थल समान कुच अर केहरी समान कटि, सुन्दर नितम्ब, कदलीस्तंभ समान कोमल जंघा, शुभ लक्षण प्रफुल्लित मालती समान मृदु बाहुयुगल, गंधर्वादि सर्व कलाको जाननहारी मानों साक्षात् सरस्वती ही है अर रूपकर लक्ष्मी समान सर्वगुणमण्डित एक दिवस नव यौवनमें कंद्रुक क्रीड़ा करती भ्रमण करती सखियोंसहित रमती पिताने देखी । सो जैसे सुलोचनाको देखकर राजा अकंपनको चिंता उपजी हुवी तैसे अंजनीको देख राजा महेन्द्रको चिंता उपजी तब इसके बर ढंढनविणे उद्यमी हुए। संसारविगै माता पिताको कन्या दुखका कारण है। जे बड़े कुलके पुरुष हैं तिनको कन्याकी ऐसी चिंता रहै है-यह मेरी कन्या प्रशंसा योग्य पतिको प्राप्त होय अर बहुत काल इसका सौभाग्य रहे भर कन्या निर्दोष सुखी रहे । राजा महेन्द्रने अपने मंत्रियोंसे कहा-जो तुम सर्व वस्तुविष प्रवीण हो कन्यायोग्य श्रेष्ठ बर मुझे बतावो । तब अमरसागर मंत्रीने कही-यह कन्या राक्षसोंका भाषीश जो रावण वाही देवी, सर्व विद्याधरोंका अधिपति ताका सम्बन्ध पाय तुम्हारा प्रभाव समुद्रात पृथ्वीपर होगा अथवा इन्द्रजीत तथा मेघनादको देवो अर यह भी तुम्हारे मनविष न मावै तो कन्याका स्वयम्बर रचो ऐसा कहकर अमरसागर मंत्री चुप रहा तब सुमतिनामा मंत्री महापंडित बोला-रायणके तो स्त्री अनेक अर महा अहंकारी इसे परणावें तो भी अपने अधिक प्रीति न होय अर . कन्याकी वय छोटी अर रावण की वय अधिक सो बनै नहीं, इन्द्रजीत तथा मेघनादको परणावें तो उन दोनोंमें परस्पर विरोध होय, श्रागै राजा श्रीपेणके पुत्रों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org