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पद्म-पुराण
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महा नरकमें जाय हैं और नरक निकस कर तिर्यंच तथा मनुष्य होय सो दुरगन्धमुख होय हैं । मांस मद्य मधु निशिमोन चोरी कर परनारी जो सेवै हैं सो दोनों जन्म खोचे हैं । जो रात्री भोजन वरैं हैं सो अल्प आयु हीन व्याधिपं डित सुखरहित महादुखी होय हैं । रात्रीभोजन के पापतैं बहुकाल जन्म मरण के दुख पावे हैं, र्भवासविषै बसे हैं, रात्रिभोजी, अनाचारी, शूकर, कूकर, गरदभ, मार्जार, काग बन, नरकनिगोद स्थावर त्रस अनेक योनियों में बहुत काल भ्रमण हैं। हजारों वसर्पणीकाल अर हजारों उर्पणी काल योनिनिविषै दुःख भोगे हैं । जो कुबुद्धि निशि-भोजन करें है सो निशाचर कहिये राचस समान हैं और जो भव्यजीव जिनधर्मका पाकर नियम वर्षे तिष्ठ है सो समस्त पापको भ+मकर मोक्षपदको पा हैं । जो व्रत लेइकरि भंग करें को दुःखी हो हैं । जे खुवोंमें परायण रत्नत्रय के धारक श्रावक हैं ते दिवसविप ही भोजन करें, दो परहित योग्य आहार करें, जे दयावान रात्रीभोजन न करें स्वर्ग सुख भोगकर तहांते चयकर चक्रवत्र्यादिकके सुख भोगे हैं शुभ है चेष्टा जिनकी, उच्चम वूतळनियम चेष्टाके धरनहारे सोधर्मादि स्वर्गविष ऐसे भोग पावैं जो मनुष्योंको दुरलभ हैं अर दवोंसे मनुष्य होय सिद्ध पद पावें हैं । कैस मनुष्य होय ? चक्रवर्ति, कामदेव, बलदेव, महामण्डलीक, भडलीक, महाराजा राजाधिराज महा विभूतिके धनी, महागुणवान उदारचित्त दीरघायु सुंदररूप जिनधर्मके मर्ती जगतके हितु अनेक नगर ग्रामादिकों के अधिपति नाना प्रकार के बाहर मण्डित सर्व लोकके बल्लभ अनेक सामन्तोंके स्वामी दुस्सह तेजके धारनहारे ऐसे राजा होय हैं अथवा राजावकि मन्त्री पुरोहित सेनापति राजश्रेष्ठी तथा श्रेष्ठी वड़े उमराव महा सामंत मनुष्या में यह पद रात्री भोजनके त्यागी पावे हैं । देवनि इन्द्र भवनवासियोंके इन्द्र वक्र के धनी मनुष्यों इन्द्र महालक्षणों कर सम्पूर्ण दिनभोजनतें होय हैं। सूर्य सारिखे प्रतापी चन्द्रमा सारखं सौम्यदर्शन, अस्तको प्राप्त न होय प्रताप जिनका, देवनि समान हैं भोग जिनके ऐसे तेई होंइ जे सूर्य अस्त भए भोजन न करें और स्त्री रात्रिमानक पावसे माता पिता भाई कुटुम्ब राहव अनाथ का परिरहित मागनी शोक दलिद्र कर पूर्ण रूक्ष फटे अर हस्त पादादि सूका शरीर चिपटी नासिका जी देखे सो ग्लान करें दुष्ट लक्षण बुरी, मांजरी, श्राषी, लूली, गूंग े, वहरा, व.वरी, कानी, चीड़, दुरगन्धयुक्त, स्थूल अथर खांटे फर्ण भूरे ऊ'चे बुरे सिरके कश तूं बड़ीके बीज समान दांत कुवरण कुलक्षण कादिरहित कठोर अंग अनक रोगोंकी भरी मलिन फटे वस्त्र उच्छिष्ट की भक्षणहारी पराई मंजूरी करणारी नारी होय है । रात्रिभोजनकी करणहारी नारी जा पति पावै तो कुरूप कुशील काढी बुर कान बुरी नाक बुरी श्राखें चितावान धर्म कुटुम्बरहित ऐसा पावें । रात्री भोजन तें विधवा बालावेधवा महादुखवन्ती जल काष्ठादिक भारके बहनहारी दुख कर भरे है उदर जाका सबै लोग कर हैं अपमान जाका, बचनरूप बसूलोंकर छीला है चित्त जाका अनेक फोड़ा फुनसीकी वरणहारी ऐसी नारी होय हैं वर जे नारी शीलवन्ती शान्त है चित्त जिनका दयावन्ती रात्रि भोजनका त्याग करें हैं वे स्वर्ग में मनवांछित भोग पावै हैं । तिनकी आज्ञा अनेक देव देवी सिरपर धारै हैं हाथ जोड़
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