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चौन्हा पर्व भक्तिकर आहार देना सो पात्रका दान कहिये पर बाल वृद्ध अंध पंगु रोगी दुबन दाखित मुखित इनो करुणा र अत्र जल और िवस्त्रादिक दीजिये सो करुणादान कहिये, पात्रके दान कर उत्कृष्ट भोगभू पे अर मध्यम पात्रके दानकर मध्य भोगभू ने अर जघन्य पात्रके दानकर जघन्य भोगभूमि होय है, जो नरक निगोहादि दुःख से रक्षा कर सो पात्र कहिये। सो सम्यग्दृष्टि मुनिराज हैं ते जीवोंकी रक्षा करे हैं । जे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र कर निर्मल हैं ते परमपात्र कहिये जिनके मान अपमान सुख दुःख तृण कांचन दोनों बराबर हैं तिनको उत्तम पात्र कहिये। जिनके राग द्वेष नहीं जे सर्व परियारहित महा तपती आलध्यान में तत्पर ते मुनि उत्तम पात्र कहिये, तिनको भाषकर अपनी शक्ति प्रमाण अन्न जन औषध देनी तथ: बनमें तिनके रहनेके वसतिका करावनी तथा पायांवोंको अन्न जल वस्त्र प्रोषधी देसी, श्रापक श्रविका सम्पादृष्टियोंको अन्न जल वस्त्र औषधि इत्यादि सर्व सामग्री देनी बहुत विनयो, सो पादानकी विधि है । दीन अंधादि दुःखित जीवोंको अन्न वस्त्रादि देना, बंदीसे छुड़ावना यह करु णादान की रीति है।
__यद्यपि यह पात्रदान तुल्य नहीं तथापि योग्य है, पुपका कारण है, पर उपकार सो ही पुण्य है अर जैसे भले क्षेत्रमें बोया बीज बहुत गुणा होय फलै है तैसे शुद्ध चित्त कर पात्रों को दिया दान अधिक फलको फल है, अर जं पापी मिथ्यादृष्टि रागपादि युक्त ब्रा क्रिधारहित महामानी ते पात्र नहीं अर दीन भी नहीं, तिनको देना निष्फल है नरकादिकका कारण है जैसे ऊसर (कल्लर ) खेतविणे बोया बीज वृथा जाय है और जो एक काका जन ईखविणे प्रात हा मधुरताको लहै है अर नीवविष गया कडकताको भने है तथा एक सरोंर का जल गायने दिया सो धरूप होय परण है अर सपने पियापि होय परणवै है तै । सम्पष्ट पात्रों को भक्ति कर दिया जो दान सो शुभ फलको फल है .र पापी पाखंडी मिथ्या दृष्टि अभिमानी परिग्रही तिनको भक्तिसे दिया दान अशुभ फल को फल है । जे मांसाहारी मद्यानी कुशील आपको पूज्य माने तिनका सत्कार न करना जिनर्धामयों की सेवा करना दुःखपों को देख इया करनी अर विपरीतियोंसे मध्यस्थ रहना, दया सर्व जीवों कर राखना, किसी को क्लेश न उपजावना अर जे जिनधर्मसे पराङमुख हैं परवादी हैं ने भी धर्म को करना ऐ । कहे हैं परन्तु धर्मका स. रूप जाने नहीं तात जे विवेकी हैं ते परखकर अंगीकार कर हैं । केपे हैं विवेकी ? शुभोपयोग रूप है चिच जिनका, वे ऐसा विचार करै हैं जे गृहस्थ स्त्री सयुक प्रारम्मी पारग्रही हिंसक काम क्रोधादि कर संयुक्त गवन्त धनाढ्य अर आपको पूज्य माने उनका भक्तिसे बड़ा धन देना उसविषे कहा फल है अर उनसे आप कहा ज्ञान पावें ? अहो यह बड़ा अज्ञान है कुमारग से ठगे जीव उसे पात्रदान कहे हैं और दुःखी जीवों को करुणादान न करे हैं। दुष्ट धनाढ्योंको सर्व अवस्थामें धन देय हैं सो वृथा थनका नाश करै हैं धनान्तों को देने कहा प्रयोजन, दखिगों को देना कार्यकारी है। धिक्कार है उन दुष्टोंको जे लोभके उदयसे खोटे ग्रन्थ बनाय मह जीवोंको ठगे हैं। जे मृषावादके प्रभावसे मांसहूका भvण ठहरावें हैं। पापी पाखण्डी मांसका भो त्याग न करें तो और कहा करेंगे । जे क्रूर मांसका भक्षण करै हैं तथा जो मांसका दान करे हैं वे घोर
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