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पद्म-पुराण
खाते खोहेके गोले तिनके मुख में दीजिये है अर मद्यपान करने वालों के मुम्बमें सीसा गाल गाल दारिए है अर परदारा लंपटिगोंको ताती लोहे की पूतलि पोसे आलिंगन करावे हैं जे महापरिग्रह के धारी महा प्रारम्भी कर है चित्त जिनका प्रचण्ड कर्मके करनहारे हैं ते सागरा पर्यन्त नरकमें बसे हैं साधुओं के द्वषी पापी मिथ्यादृष्ट कुटिल कुबुद्धि रौद्रध्यानी मरकर नरकमें प्राप्त होय हैं जहां विक्रियामई कुहाड़े तथा खड्ग चक्र करोंत अर नाना प्रकारके विक्रियामई शत्र तिनसे खण्ड खण्ड कीजिए है फिर शरीर मिल जाय है गायु पर्यन्त दुख भोगे हैं तीवण हैं चौंच जिनकी ऐसे मायामई पक्षी ते तन विदारें हैं तथा मायामई सिंह व्याघ्र स्वान सर्व अष्टापद ल्याली वीछू तथा और प्राणियोंसे नानप्रकारके दुख पावे हैं नरकके दुःखको कहां लग बरणन करिए अर जे मायाचारी प्रपंची विषयाभिलापी हैं वे प्राणी तियंचगति को प्राप्त होय हैं तहां परस्पर बध अर नानाप्रकारके शस्त्रनको घातसे महा दुःख पावे हैं तथा अति भारका लादना शीत उष्ण क्षुधा तृषादिकर अनेक दुख भोगवे हैं । यह जीव भवसंकटविणे भ्रमता स्थल विषै जलवि गिरि वि तरुविणे और गहनवनविषे अनेक ठौर सूता एकेंद्री वेइंद्री तेइन्द्री चौइन्द्री पंचेन्द्री अनेक पर्याय में अनेक जन्म मरण किये । जीव अनादि निधन है इसका आदि अन्त नहीं, तिलमात्र भी लोकाकाशविर्षे प्रदेश नहीं जहां संसार भ्रमणविपे इस जीवने जन्म मरण न किये हों अर जे प्राणी निगर्व है काटरहित समभाव ही कर संतोषी हैं ते मनुष्य देहको पात्र हैं सो यह नरदेह परम निर्माण सुखका कारण उसे पायकर भी जे मोहमदकर उन्मत्त कल्याण मार्गको तजकर क्षणमात्र सुखके अर्थ पाप करे हैं ते मूर्ख हैं । मनुष्य भी पूर्व कर्मके उदयसे कोई आर्यखण्डविणे उपजे हैं, कोई म्लेक्षखण्ड हिपे उपजे हैं तथा कोई धनाढ्य कोई अत्यन्त दरिद्री होय हैं कोई कर्मके परे अनेक मनोरथ पूर्ण करे हैं, कोई कष्टसे पराए घरों में प्राण पोषण करे हैं, केई कुरूप केई रूपवान केई दीर्घ आयु केई अल्प आयु केई लोकोंको वल्लभ केई अमावने केई सभाग केई अभागे केई औरोंको आज्ञा देवें केई औरनके आज्ञाकारी केई यशस्वी केई अपयशी केई शूर कई कायर केई जलविषे प्रवेश करें कई रणमें प्रवेश करें केई देशांतरमें गमन करें केई कृषि कर्म करें कई व्यापार करें, केई सेवा करें। या भांति मनुष्य गतिमें भी सुख दुम्सकी विचित्रता है, निश्चय विचारिये तो सर्वगतिमें दुख ही है, दुःख हीको कल्पना कर सुख माने हैं अर मुनिग्रन तथा श्रावकके बनोंसे तथा अव्रत सम्यक्त्वसे तथा अकाम निर्जरासे, तथा अज्ञान तपसे देवगनि पावै हैं । तिनमें केई बड़ी ऋद्धिके धारी केई अल्प ऋद्धिके धारी आयु क्रांति प्रभाव बुद्धि सुख लेश्याकर ऊपरले देन चढ़ते अर शरीर अभिमान अर परिग्रहसे घटते देवगतिमें भी हर्प विषाद कर कर्मका संग्रह करै है। चतुरगतिमें यह जीव सदा अरहटकी घड़ीके यन्त्र समान भ्रमण करै हैं । अशुभ संकल्पसे दुःखको पावे हैं। पर शुभसंकल्पसे सुखको पावे हैं, अर दानके प्रभावसे भोग भूमि विषै भोगोंको पावे हैं, जे सर्व परिग्रह रहित मुनिव्रत के धारक हैं उत्तम पात्र कहिए अर जे अणुव्रतके धारक श्रावक हैं, तथा श्राविका, तथा आर्थिका सो मध्यम पात्र कहिये हैं अर बतरहित सम्यग्दृष्टि हैं सो जघन्यपात्र हिये है। इन पात्रों को विनय
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