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बारहवां पर्व अथानन्तर योधा कोपको प्राप्त भये, ढोल बाजने लगे, हाथी गाजने लगे, घोड़े हीसन लगे और थनुपके टंकार होनेलगे योधाओंके गुजार होने लगे और बंदीजन विरद बखानने लगे जमत शब्दमई होगा सर्वदिशा तरवार तथा तोमर जातिके शस्त्र तथा पांसिन कर ध्वजावोंकर शस्त्रों कर और धनुषोंकर आच्छादित भई और सूर्य भी अाच्छादित हो गया। राजा इन्द्रकी सेनाके जे विद्याधर देव कहावें थे समस्त रथनूपुरसे निकसे । सर्वसामग्री धरें युद्धके अनुरागी दरवाजे आय भेले भये । परस्पर कहै हैं रथ आगे कर, माता हाथी आया है । हे महावत ! हाथी इस स्थान से परेकर । हे घोड़े के सवार ! कहा खड़ा होरहा है ? घोड़े को आगे लेा, या भांति के वचना., लाप होते हुवे शीघ्रही देव वाहिर निकसे गाजते आये सेनामें शामिल भये और राक्षसोंके सन्मुख
आये रावणके और इन्द्र के युद्ध होने लगा। देवोंने राक्षसोंकी सेना हटाई, शस्त्रात जे समूह तिनके प्रहारकर आकाश आच्छादित होगया तब रावणके योधा बजवेग, हस्त प्रहस्त, मातीच उद्भव, नज, वक्र, शुक्र, घोर, सारन, गगनोज्वल, महाजठर, मध्याभ्रकर इत्यादि विद्याधर बड़े योधा राक्षतवंशी नाना प्रकारके वाहनोंपर चढ़ अनेक प्रायुधोंके धारक देवोंसे लड़ने लगे तिनके प्रभावस क्षणमात्र में देवों की सेना हटी । तब इन्द्रके बड़े योगा कोपकर अरे युद्धको सनमुख भए तिनके नाम मेघमाली, तडिपिंग, ज्वलिताक्ष, अरि, संचर, पाचक यं न इत्यादि बड़े बड़े देवोंने शस्त्रोंके ममूह चलावते हुए राक्षसोंको दबाया सो कल्लु इक राक्षसोंकी सेना हनी।ज्यों समुद्रमें भंवर भ्रमै त्यों राक्षमलोक अपनी सेनाविष भ्रमते भए। कछु इक शिथिल हो गए तब और बड़े २ राक्षस इनको धीर्य बंधावते भए । महालामा राक्षसवंशी विद्याधर प्राण तजते भए परंतु शस्त्र न डारते भए । राजा महेन्द्रसेन वानरवंशी राक्षसोंके बड़े मित्र उनका पुत्र प्रसन्नकीर्ति ताने बाणोंके प्रहारकर देवनकी सेना हटाई। राक्षसोंके बल को बड़ा धीर्य बंगा तब अनेकदेव प्रसन्नकीर्तिपर आये। सो प्रसन्नीसिने अपने बाणोंसे विदारे जैसे खोटे तपस्वियोंका मन मन्मथ (काम) विदारे तब और बड़े २ देव आए । कषि राक्षस अर देवोंके खड़ा कन: गदा शक्ति धनुष मुद्गर इनकर अति युद्ध भया तब माल्यवानका बेटा श्रीमाली रावणका काका महा प्रसिद्ध पुरुष अपनी सेनाकी मददके अथे देवापर आया । सूर्य समान है कांति जिसकी सो उसके बाणों की वर्षासे देवोंकी सेना हट गई जैसे महाग्राह समुद्रतो झकोले तैसे देवनकी सेना श्रीमालीन झकोली तब इंद्रके योधा अपने बलकी रक्षा निमित्त महाक्रोधक भरे अन आयुगों के धारक शिखि केसर दंडाग्र कनक प्रवर इत्यादि इन्द्र के भानजे वाण वर्षाकर आकाशको बाच्छादते हुए श्रीमालीपर आए सो श्रीमालीने अर्धचन्द्र वाणगे उनके मिररूप कमलोंकर पृथ्वी आच्छादित करी तब इन्द्रने विचारा कि यह श्रीमाली मनुष्योंविपै महायोधा राक्षसबंशियों का अधिपति माल्यवानका पुत्र है उसने बड़े २ देव मारे हैं अर ये मेरे भानजे मारे या राक्षसके सम्मुख मेरे देवोंमें कौन आवै यह अतिवीर्यवान महातेजस्वी देखा न जाय तातें मैं युद्धकर याहि मारू नातर यह मेरे अनेक देवोंको हतैगा असा विचार अपने जे देवजातिके विद्याधर श्रीमालीसे कम्पायमान भए हुते तिनको धीर्य बंधाय आप युद्ध करनेको उद्यमी भया ।
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