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________________ १३० पद्म-पुराण तब इन्द्रका पुत्र जयंत बापके पायनपर विनती करने लगा - हे देवेंद्र ! मेरे होते संते आप युद्ध करो तब हमारा जन्म निरर्थक है । हमको आपने बाल अवस्थाविषै अति लड़ाए अब तुम्हारेडिंग शत्रुवोंको युद्धकर हटाऊ यह पुत्रका धर्म है आप निराकुल विराजिए जो अंकुर नखसे छेदा जाय उसपर फरसी उठावना क्या, ऐसा कहकर पिता की आज्ञा लेय मानों अपने शरीरकर आकाशको ग्रसेगा भैमा क्रोधायमान होय युद्धके अर्थ श्रीमाली पर भाया । श्रीमाली इसको युद्ध योग्य जान खुशी भयो इसके सम्मुख गए ये दोनों ही कुमार परस्पर युद्ध करने लगे धनुष खैच बाण चलावते भए इन दोनों कुमारोंका बड़ा युद्ध भया । दोनों ही सेना के लोक इनका युद्ध देखते भए सो इनका युद्ध देख आश्चर्य को प्राप्त भए । श्रीमाली ने कनक नामा हथियारकर जयंत का रथ तोड़ा और उसको घायल किया मो मूर्छा खाय पड़ा फिर सचेत होय लड़ने लगा । श्रीमाली के भिंडमाल की दीनी रथ तोड़ा र मूर्हित किया तब देवोंकी सेनाविषैति हर्ष भया र राक्षसोंको सोच भया फिर श्रीमाली सचेत भया, जयंत के सम्मुख भषा, दोनों में महायुद्ध या दोनो सुट राजकुमार युद्ध करते शोभते भये मनों सिंहके बालक ही हैं बड़ी देर में पुत्र जयन्तने मान्यवानका पुत्र जो श्रीमाली उसके गदा की छाती दोनी सो पृथ्वीवर पड़ा, बदनकर रुषिर पढ़ने लगा तत्कल सूर्य अस्त हो जाय तैसे प्राणांत हो गया । श्रीमाली को मारकर इन्द्र का पुत्र जयंत शंखनाद करता भया तब राक्षसोंकी सेना भयभीत भई पर पीछे हटी । माल्यवान के पुत्र श्रीमालीको प्राणस्ति देख कर जयंतको उद्यत देख रावण के पुत्र इंद्रजीतने अपनी सेना को धीर्य बंधाया श्रर कोदकर जयंत सम्मुख काया सी इंद्रजीतन जयंतका बखत तोड़ डाला अर अपने बाणोंकर जयंत जर्जरा किया तब इंद्र जयंतको घायल देख छेदा गया है खतर जिसका, रुधिरकर लाल हो गया है शरीर जिसका औसा देखकर आप युद्धको उद्यमी भया, आकाशको अपने आयुधोंकर आच्छादित करता सन्ता अपने पुत्रकी मदद के अर्थ रावण के पुत्र पर आया । तब रावणको सुमति नामा सारथ ने कहा- हे देव; यह इन्द्र याया ऐरावत हाथीपर चढा लोकपालोंकर मण्डित हाथविषै चक्र धरे मुकुटके रत्नोंकी प्रभाकर उद्योत करता हुवा उज्ज्वल छत्रकर सूर्यको आच्छादित करता संता क्षोभको प्राप्त भया ऐसा जो समुद्र उस समान सेनाकर संयुक्त । यह इन्द्र महाबलवान है इन्द्रजोत कुमार यासू युद्ध करने समर्थ नहीं तातें आप उद्यमी होकर अहंकारयुक्त जो यह शत्रु इसे निराकरण करो तब रावण इन्द्रको रुम्मुख आया देख आगे मालीका मरण यादकर अर हाल श्रीमालीके बथकर महाक्रोनरूप भार शत्रुओंकर अपने पुत्रको बेढ़ा देख आप दौड़ा, पवन समान है वेग जिसका ऐन रथवि चढ़ा दोनों सेनाके योद्धाओंति परस्पर विषम युद्ध होता भया, सुभटोके रोमांच हाय आए, परस्पर शस्त्रों के निपातर अंधकार हो गया, रुधिरकी नदी बहने लगी, योद्धा परस्पर पिछाने न परं । केवल ऊँचे शब्द कर पिछाने परें, अपने अपने स्वामीके प्रेरे योद्धा प्रति युद्ध करते भए । गदा शक्ति बरी मूसल खड्ग वाण परिव जातिके शरत्र कनक जातिवं शस्त्र चक कहिए सामान्य चक्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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