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पष्म-पुराण उसे रावणके मुखकर जीता जान भाग गये अर रविणकी हथेली अर पगथली अत्यन्त लाल भर रावणकी स्त्रियोंको अत्यन्त लाल जानकर लज्जावान होय कमलोंके समूह भी छिप गये मानों यह वर्षा ऋतु स्त्री समान है विजुरी तेई कटिमेखला जो इन्द्र धनुष वह पस्त्राभूषण, पयोथर :जे मेघ, तेही पयोधर कहिये कुच अर रावण महा मनोहर केतकी वास तथा पमिनी स्त्रियोंके शरीरको सुगन्ध इत्यादि सव सुगन्ध अपने शरीर की सुगन्वता कर जीतता भरा। जिसके .सुगन्ध श्वासरूप पवनके खेंचे भ्रमरोंके समूह गंजार करते भए । गंगाका तट जो अतिमनोहर है वहां डेरा कर वर्षा ऋतु पूर्ण करी । कैसा है गंगाका तट जहां हरित तृण शाभ हैं नाना प्रकारके पुष्पोंकी सुगन्धता फैल रही है। बड़े बड़े वृक्ष शोभै हैं । कैसा है रावण ? जगत् । बन्धु कहिये हितु है। अति सुख चातुरमास्य पूर्ण किया । हे श्रेणिक ! जे पुण्याधिकारी मनुष्ा हैं तिनका नाम श्रवणकर सर्वता: नस्कार करे हैं। अर सुन्दर स्त्रियोंके समूह सायमेव आय वरें हैं पर ऐश्वर्य के निवास परम विभव प्रगट होय हैं। उनके तेजकर सूर्य भी शतल होय है। भैसा जानकर आज्ञा मान संभप छोड़ पुण्यके प्रवन्धमें यत्न करो।
इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वननिकावि मरुनके काका वियत अर रागणके दिग्निजयका वर्णन करनेवाला ग्यारहनां पर्व पूर्ण भया !! ११ ॥
__ अथानन्तर रावण मंत्रियोंसे विनार करना भया एकान्तविध । श्री मत्रियो ! यह अपनी कन्य कृतचित्रा कोनको परनावें। इन्द्र : संधानने जीतने निश्चय नहीं तातै पुत्रीका पाणिग्रहण मंगल कार्य प्रथम करना योग्य है । तब रावणको पुत्रीके विवाहकी चिन्ताविष तत्पर जानकर राजा हरिवाहनने अपना पुत्र निकट बुलाया सो हरिवाहनके पुत्र को अति सुन्दराकार विनयवान् देखकर जीके परणायवेका मनोरथ किया । रावण अपने मनमें चिंतवता भया कि सर्व नीतिशास्त्रावेष प्रवीण अहो मथुरा नगरःका नाथ राजा इरिवाहन निरन्तर हमारे गुणकी कीतिविष प्रासक्त है मन जाका, इसका प्राणांसे भी प्यारा मधु नापा पुत्र प्रशंसायोग है। महाविनयवान् प्रीतिपात्र महारूपवान् अति गुणान् मेरे निकट पाया । तब मन्त्री रावण से कहते भये
-'हे देव ! यह. मधु कुमार महापराक्रमी इसके गुण वन में न आवे तथापि कछुया कहें हैं इसके शरीरविले अत्यन्त सुगन्धता है जो सर्वलोकके मन को हरे ऐ है रूप जिका, इसका मधु नाम यथार्थ है-धुनाम मिष्टानका है सो यह मिष्टवादी है अर मधु. म नारका है सो यह मकरन्दसे भी अतिसुगन्ध है पर इसके एते ही गुण आप त जानो अमुरमा इन्द्रको चमरेंद्र तान इसको महा गुणरूप त्रिशूजरत्न दिया है। वह निशूरन वैरि बोरर डारा वृशा न जावै अत्यन्त देदीप्यमान है । आप इसके करतूत कर इसके जुग जानोहागे वचनोंने कहां लग कहें तातें-'हे देव ! यासे सम्बन्ध करनेकी बुद्धि करो। यह आपसे सम्बन्ध कर कृतार्थ होयगा. ऐसा जब मंत्रियोंने कहा तब रावणने इसको अपना जमाई निश्चय किया अर जमाई
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