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ग्यारहवां पर्व जिन जिन देशों में महा कल्याणा भरा विनरै वे देश सर्व सम्पदाकर पूर्ण होय । दशमुख दलिद्रियोंका दलिद्र देख न सके, जिनको दुःख मेटनेकी शक्ति नहीं तिन भाइयों कर कहा सिद्धि होय है यह तो सर्व प्राणियोंका बड़ा भाई हाता भगा । यह रावण अपने गुणोंकर लोगोंका अनुराय बढ़ावता भया। जिसके राज्यमें शीत अर उष्ण भी प्रजाको बाधा न कर सकें तो चोर चुगल बटमार तथा सिंह गजादिकोंकी बाथा कहांसे होय ? जिसके राज्यविषपान पानी अग्निकी मी प्रजाको बाधा न होय सर्व बाप्त सुखदायी ही होती भई।
अथानन्तर रावणकी दिग्विजयविप वर्षा ऋतु आई मानो रावण से साम्ही आय मिली मानों इन्द्रने श्याम घट रूपी गज भेंट भेजी। कैसे हैं काले मेघ ? महा नीलाचल समान विजुरी रूप स्वर्णकी सांकल धरै अर बगुलोंकी पंक्ति भई ध्वजा, तिनसे शोभित हैं शरीर जिनके, इन्द्रधनुषरूप आभूषण पहरे। जब वर्षा ऋतु आई तर दशों दिशा में अन्धकार हो गया, रात्रिदिवसका भेद जान न पडै सो यह युक्त ही है श्याम होय सो श्या ता ही प्रगट करै। मेघ भी श्याम अर अन्धकार भी श्याम, पृथ्वीविष मेघकी मोटी धारा अखण्ड वरसती भई जो माननी नायकाके मनविणे मानका भार था सो मेघ गर्जन कर क्षणमात्रविष विलय गया अर मेघकी ध्वनिकर भयको पाई जे भामिनी वे स्वयमेव ही भरतारसे स्नेह करनी भई । जे शीतल कोमल मेघकी धारा वे पंथीन को बाणभावको प्राप्त भई, मर्मकी विदारणहारी धाराओं के समूहकर भेदा गया है हृदय जिनका असे पंथी महाव्याकुल भए मानों तीक्ष्ण चक्रकर विदारे गये हैं। नवीन जो वर्षाका जल उसकर जड़ताको प्राप्त भए पंथो क्षणमात्र में चित्राम कैसे हो गये पर जानिए कि क्षीरसागरके भरे मेव सो गायनके उदरविष बैठे हैं तातै निरन्तर ही दुग्धधारा वर्षे है । वर्षा के समय किसान कृषिकर्म को प्रवते हैं। रावणके प्रभावकर महा :धनके धनी होते नए रावण सबही प्राणियोंको महा उत्साहका कारण होता भया।
गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं कि हे श्रेणिक ! जे पुण्याधिकारी हैं तिनके सौभाग्यका वर्णन कहां तक करिये । इन्दीवर कमल सारिखा श्याम रावण स्त्रियोंके चित्तको अभिलापी करता संता मानों साक्षात् वर्षा कालका स्वरूप ही है, गम्भीर है धनि जिसकी, जैसा मेघ गाजे तैसा रावण गाजै सो रावण की आज्ञासे सर्व नरेंद्र प्राय मिले, हाथ जोड़ नमस्कार करते भये । जो राजावोंकी कन्या महा मनोहर थों सो रावण को स्वयमेव बरती भई। वे रावण को बरकर अत्यन्त क्रीड़ा करती भई । जैसे वर्षा पहाड़को पायकर अति वरस । कैसी है वर्षा ? पयोधर जे मेघ तिनके समूह संयुक्त है अर कैसी है स्त्री ? पयोधर जे कुच तिनकर मण्डित है। कैसा है रावण पृथ्वीके पालनको समर्थ है। वैश्रवण यक्षका मानमर्दन करनहारा दिग्विजयको चढ़ा समस्त पृथ्वीको जीते सो उसे देखकर मानों सूर्य लज्जा अर भयकर व्याकुल होय दव गया। भावार्थ-वर्षाकालविषै सूर्य मेघ पटलकर आच्छादित हुआ अर रावणके मुख समान चन्द्रमा भी नाहीं सो मानों लज्जा कर चन्द्रमा भी दब गया क्योंकि वर्षाकालमें चन्द्रमा भी मेघमालाकर आच्छादित होय है अर तारे भी नजर नहीं आवै हैं मानों अपना पति जो चन्द्रमा
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