SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहवा पर्व प्राणियोंकी हिंसासे निवृत्त होहु । काहूकी कभी भी हिंसा कर्त्तव्य नहीं अर जब भगवानके उपदेशसे जगत मिथ्या मागस रहित न होय, काई एक जीव सुलटें तो हम सारिखे तुम सारिखों कर सकल जगत का मिथ्यात्व कैसे जाय ? कैसे हैं भगवान् ! सर्वके देखनहारे सर्वके जाननेहारे। या भांति देवर्षि जे नारद तिनके वचन सुनकर केकसी माता की कुक्षमें उपजा जो रावण सो पुराण कथा सुनकर अति प्रसन्न भया अर बारम्बार जिनेश्वरदेव को नमस्कार किया, नारद अर रावण महा पुरुपनी मनोज्ञ जे कथा उनके कथनकर क्षण एक मुखते तिष्ठ, महापुरुषोंकी कथा में नाना प्रकारका रस भरा है। अथानन्तर गजा मरुत हाथ जोड़ धरतीसे मस्तक लगाय रावणको नपकारकर बिनती करता भया-हे देव ! हे लंकेश !! मैं आपका सेवक हूँ आप प्रसन्न होउ मैं अज्ञानी अज्ञानियोंके उपदेशकर हिंमा मार्ग रूप खोटी चेष्टा करी सो क्षमा करो । जीवोंके अज्ञानकर खोटी चेष्टा होय, है, अब मुझे धमके मार्गमें लेवो अर मेरी पुत्री कनकप्रभा आप परणो जे संसार में उत्ता पदार्थ है तिनके अापही पात्र हो । तव रावण प्रसन्न भए । को हैं रावण ? जो नम्रीभूत होय उसमें दयावान हैं, तव रावणने पुत्री पाणी अताहि अपनो लियो । सो राबणाकी अतिवल्लभा भई। मरुतने रावणाके सामन-लोक बहुत पूजे नानाप्रकारके बत्राभूषण हाथी घोड़े थ दिये, कनकप्रभा सहित रावण रमता भया उसके एक ष वाद कृतचित्रनामा पुत्री भई, सो देखनेहारे लोकनको रूपकर आश्चर्यकी उपजावनहारी मनों मूर्तिवंत शोभा ही है । रावण के सामन्त महाशूरवीर तेजर्व जीतकर उपजा है उत्साह जिनके संपूर्ण पृथ्वीतल में भ्रमते भए । तीन खंडमें जो राजा प्रसिद्ध हुता पर बलवान सो रावण के योद्धाओंके आगै दीनताकों प्राप्त भगा, सबही राजा वश भए, कैसे हैं राजा ? राज्य के भंगका है भय जिनको, विद्याधर लोक भरतक्षेत्रका मध्य भाग देख आश्चर्यको प्राप्त भए । मनोज्ञ नदी मनोज्ञ पहाड़ मनोज्ञ बन तिनको देख लोक कहते भए अहो स्वर्ग भी यातें अधिक रमणीक नहीं, चित्तमें ऐसे उपजे है यहां ही वास करिये। समुद्र समान विस्तीर्ण सेना जिसकी ऐसा रावण जिससमान और नहीं। अहो अद्भुत धैर्य अद्भुत उदा. रसा इस रावणकी यह समस्त विद्याधरोंमें श्रेष्ठ नजर आये है या भांति समस्त लोक प्रशंसा कर हैं जिस देशमें रण गया तहां तहां लोक सनमुख आय मिलने भए जे जे पृथ्वीमें राजाओंकी सुन्दर पुत्री हु ते रापणने परणी । जिस नगरके समीप रावण जाय निकसे ताही नगरके नर नारी देखकर आश्चय प्राप्त होवें । स्त्री सकल काम छोड़ देखनेको दौड़ी, कैयक झरोखों में बैट ऊपरसे असीस देय फूल डारें । कैसा है रावण ? मेघसमान श्याम सुन्दर कन्दूरी समान लाल हैं अथर जाके पर मुकुटविषै नाना प्रकारकी जे मणि उनकर शोभै है सीस जिसका, मुक्ताफलोंकी ज्योति रोई भया जल ताकर पखारा है चन्द्रमा समान बदन जिम्का, इन्द्रनील मा समान श्याम सघन जे केश अर सहस्र पत्र मल समान नेत्र तत्काल बैंचा नम्रीभूत हुआ जो धनुष उसके समान वक्र स्याम चिकने भौंह युगल जिसकर शोभित है शंख समान ग्रीवा (गरदन) जिसकी अर शुषभ समान कन्ध जिसके, पुष्ट विस्तार्ण वक्षस्थल जाके, दिग्गजकी सूड समान भुजा जिसके, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy