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1. Manaḥparyayajñānam - Omniscience, the knowledge of the thoughts of others. 2. Pratīkṣya pratimāhya śrāpa lebhe, amarārcanam devakṛtapūjām - He waited and received the consecration, the worship performed by the gods. 3. Saṃmataḥ ko., kha., ga., 10 - Approved by ko., kha., ga., 10. 4. Niṣkriyaḥ ko., kha., ga., 50 - Inactive, according to ko., kha., ga., 50.
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________________ ४२ महापुराणे उत्तरपुराणम् गर्भागम द्वादश्यां सायासंयम श्रितः। नृपैः सह सहस्रेण तदापोपान्त्यबोधनम् ॥१२॥ पश्चिमे दिवसे सोमखेटे तं कनकयुतिः । नृपो महेन्द्रदत्ताख्यः प्रतीक्ष्यापामरार्चनम् ॥ १३ ॥ सुपाश्चों मौनमास्थाय छानस्थ्ये नववर्षक: । सहेतुकवने मूले शिरीषस्य युपोषितः॥४४॥ गर्भावतारनक्षत्रे कृष्णषष्टयपराहगः । समुपमान्तहरज्ञानः सम्प्रासामरपूजनः ॥ ४५ ॥ बलाख्यमुख्यपञ्चान्तरन्ध्रोकगणभृद्धृतः । शून्यत्रिशून्यपक्षोक्तसर्वपूर्वधराधिपः ॥ ४६ ॥ शून्यद्विरन्ध्रवाओं ब्धिपक्षमानोतशिक्षकः । शून्यत्रयनवज्ञाततृतीयावगमश्रितः ॥ १७ ॥ खत्रयैकैकनिदिंष्टकेवलावगमान्वितः । शून्यद्वयत्रिपकसङ्ख्यावैक्रियिकाचितः ॥ ४०॥ शून्यपञ्चैकरन्ध्रोक्तमनःपर्ययबोधनः । षट्शताष्टसहस्रोकवादिवन्दितवाक्पतिः ॥ ४९ ॥ पिण्डीकृतत्रिलक्षोक्तमुनिवृन्दारकाधिपः। मीनार्याद्यायिकात्रिंशत्सहस्रान्तत्रिलक्षकः ॥ ५० ॥ त्रिलक्षश्रावकः पञ्चलक्षसत्श्राविकाचितः । असङ्ख्यदेवदेवीज्यस्तिर्यक्सङ्ख्यातसंयतः ॥ ५ ॥ धर्मामृतमयीं वाणी प्राहयन् विहरन् महीम् । पश्चात्संहृत्य सम्मेदे विहारं मासमुद्वहन् ॥ ५२ ॥ प्रतिमायोगमापाय सहस्त्रमुनिभिः समम् । फाल्गुने कृष्णससम्यां राधायां दिनपोदये ॥ ५३॥ कृतपञ्चमकल्याणाः कल्पपुण्याः सुरोत्तमाः । निर्वाणक्षेत्रमत्रेति परिकल्प्यागमन् दिवम् ॥ ५४॥ शार्दूलविक्रीडितम् दुर्वारा दुरितोरुशत्रुसमिति निष्पन्नधीनिष्क्रियन्।। सूष्णीं युद्धमधिष्ठितः कतिपयाः काष्ठाः प्रतिष्ठां गतः । के दिन सायंकालके समय, गर्भके विशाखा नक्षत्रमें वेलाका नियम लेकर एक हजार राजाओंके साथ संयमी हो गये-दीक्षित हो गये। उसी समय उन्हें मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया ॥ ४१-४२ ॥ दूसरे दिन वे चर्याके लिए सोमखेट नामक नगरमें गये। वहाँ सुवर्णके समान कान्तिवाले महेन्द्रदत्त नामके राजाने पडगाह कर देवोंसे पूजा प्राप्त की ॥४३॥ सुपार्श्वनाथ भगवान छमस्थ अवस्थामें नौ वर्ष तक मौन रहे। तदनन्तर उसी सहेतुक वनमें दो दिनके उपवासका नियम लेकर वे शिरीष वृक्षके नीचे ध्यानारूढ़ हुए। वहीं फाल्गुन (?) कृष्ण षष्ठीके दिन सायंकालके समय गर्भावतारके विशाखा नक्षत्र में उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ जिसमें देवोंने उनकी पूजा की ॥४४-४५॥ वे बलको श्रादि लेकर पंचानवे 'गुणधरोंसे सदा घिरे रहते थे, दो हजार तीस पूर्वधारियोके अधिपति थे, दो लाख चवालीस हजार नौ सौ बीस शिक्षक उनके साथ रहते थे, नौ हजार अवधिज्ञानी उनकी सेवा करते थे, ग्यारह हजार केवलज्ञानी उनके सहगामी थे, पन्द्रह हजार तीन सौ विक्रियाऋद्धिके धारक उनकी पूजा करते थे, नौ हजार एक सौ पचास मनःपर्ययज्ञानी उनके साथ रहते थे, और आठ हजार छह सौ वादी उनकी वन्दना करते थे। इस प्रकार सब मिलाकर तीन लाख मुनियोंके स्वामी थे। मीनार्याको आदि लेकर तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ उनके साथ रहती थीं, तीन लाख श्रावक और पाँच लाख श्राविकाएँ उनकी पूजा करती थीं, असंख्यात देव-देवियाँ उनकी स्तुति करती थीं और संख्यात तिर्यश्च उनकी वन्दना करते थे। ४६-५१ ।। इस प्रकार लोगोंको धर्मामृतरूपी वाणी पर बिहार करते थे। अन्तमें जब आयुका एक माह रह गया तब विहार बन्द कर वे सम्मेदशिखर पर जा पहुँचे। वहाँ एक हजार मुनियोंके साथ उन्होंने प्रतिमा-योग धारण किया और फाल्गुन कृष्ण सप्तमीके दिन विशाखा नक्षत्रमें सूर्योदयके समय लोकका अग्रभाग प्राप्त किया-मोक्ष पधारे ॥५२-५३॥ तदनन्तर पुण्यवान् कल्पवासी उत्तम देवेने निर्वाण-कल्याणक किया तथा 'यहाँ निर्वाण-क्षेत्र है। इस प्रकार सम्मेदशिखरको निर्वाण-क्षेत्र ठहराकर स्वर्गकी ओर प्रयाण किया ॥५४॥ १ मनःपर्ययज्ञानम् । २ प्रतीक्ष्य प्रतिमाह्य श्राप लेभे, अमरार्चनं देवकृतपूजाम् । ३ संमतः क०, ख०, ग०, १०,। ४-निष्क्रियस क०, ख०, ग०,५०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002728
Book TitleUttara Purana
Original Sutra AuthorGunbhadrasuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages738
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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