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चतुश्चत्वारिंशत्तमं पर्व
४१७ शास्त्रसंभिन्नसर्वाडागम् अन्तको नेतुमागतः । कान्ता चिन्तापरं कन्तुस्तद्धस्तावहृतापरम् ॥३०३॥ कण्ठे 'चालिङगितः प्रेमशोकाभ्यां प्रियया परः। ध्यात्वा तां त्यक्तदेहोगात् निर्वाणं सवणस्तया ॥३०४॥ श्वः स्वर्गे कि किमत्रैव सङगमो नौ न संशयः। तत्रत्वं बहकान्तोऽद्य रमेऽन्येत्याह' सव्रतम् ॥ प्रत्र वाऽमुत्र वासोऽस्तु किं तया चिन्तयावयोः । वियोगः क्वापि नास्तीति कान्ता कान्तमतर्पयत् ॥३०६॥ 'सबतो वीरलक्ष्मी च कीर्ति चहि० चिरायषा। हन्तु मामेव कामोऽयमिति कान्ताऽवदद्रुषा ॥३०७॥ जयस्य विजयः प्राणस्तवैवैतद् विनिश्चितम् । सवतावद्य यास्यावो दिवमित्यब्रवीत् परा ॥३०॥ शराः पौष्पास्तव त्वं च 'संयुक्तेष्वतिशीतलः१३ । तत्र" विज्ञातसारोऽसि पुरुषेभ्यो भयं तव ॥३०॥ प्रायसाः५ सायकाः काम त्वमप्यस्माकमन्तकः । इति कामं समुद्दिश्य खण्डिताः स्वगतं जगुः ॥३१०॥ सा रात्रिरिति सँल्लापैः१ २०प्रेमप्राणरनीयत । तावत् सन्ध्यागता रागाद् राक्षसीवेक्षितुं रणम् ॥३११॥
अपनी स्त्रीको अपने हृदयमें स्थित मानकर तथा हाय, यह बेचारी इस बाणसे व्यर्थ ही मरी जा रही है ऐसा समझकर शीघ्र ही अपने प्राण छोड़ दिये थे ॥३०२॥ जिसका सब शरीर शस्त्रों से छिन्न-भिन्न हो गया है ऐसे किसी अन्य योद्धाको यमराज लेनेके लिये आ गया था परन्तु स्त्रीकी चिन्तामें लगे हुए उसे कामदेवने यमराजके हाथसे छुड़ा लिया था ॥३०३।। प्रेम और शोकके कारण अपनी स्त्रीके द्वारा गलेसे आलिंगन किया हुआ कोई घावसहित योद्धा उसी प्रिया का ध्यान कर तथा शरीर छोड़कर उसीके साथ मर गया ॥३०४॥ किसी योद्धाने व्रत धारण कर लिये थे इसलिये उसकी स्त्री उससे कह रही थी कि कल स्वर्गमें न जाने क्या क्या होगा ? इसमें कुछ भी संशय नहीं है कि हम दोनोंका समागम यहाँ हो सकता है, चूंकि तुम्हें स्वर्ग में बहुत सी स्त्रियाँ मिल जायँगी इसलिये मैं आज यहां ही क्रीड़ा करूंगी ॥३०५॥ हम दोनोंका निवास चाहे यहां हो, चाहे परलोकमें हो, उसकी चिन्ता ही नहीं करनी चाहिये। क्योंकि हम लोगों का वियोग तो कहीं भी नहीं हो सकता है इस प्रकार कहती हुई कोई स्त्री अपने पतिको संतुष्ट कर रही थी ।।३०६।। कोई स्त्री क्रोधपूर्वक अपने पतिसे कह रही थी कि तुम तो व्रत धारण कर वीर लक्ष्मी और कीतिको प्राप्त होओ-उनके पास जाओ, दीर्घ आयु होनेके कारण यह कामदेव मुझे ही मारे ॥३०७।। कोई स्त्री अपने पतिसे कह रही थी कि यह निश्चित है कि जयकुमारकी जीत तेरे ही प्राणोंसे होगी और व्रतोंके धारण करनेवाले हम दोनों ही आज स्वर्ग जावेंगे ॥३०८।। खण्डिता स्त्रियां कामदेवको उद्देश्य कर अपने मन में कह रही थीं कि अरे काम, संयोगी पुरुषोंपर पड़ते समय तेरे बाण फूलोंके हो जाते हैं और तू भी बहुत ठंडा हो जाता है, उन पुरुषों के पास तेरे बलकी सब परख हो जाती है, वास्तवमें तू पुरुषोंसे डरता है परन्तु हम स्त्रियोंपर पड़ते समय तेरे बाण लोहेके ही रहते हैं और तू भी यमराज बन जाता है। भावार्थ-तू पुरुषोंको उतना दुखी नहीं करता जितना कि हम स्त्रियोंको करता है ॥३०९३१०॥ प्रेमरूपी प्राणोंको धारण करनेवाले स्त्री-पुरुषोंने इस प्रकारकी बातचीतके द्वारा ज्योंही वह रात्रि पूर्ण की त्योंही रागसे संग्राम देखने के लिये आई हुई राक्षसीके समान संन्ध्या (सवेरे की लाली) आ गई ॥३११॥
१ कण्ठेनालिङगितः इ०, अ०, स०, प० । २ मरणम् । ३ अनन्तरागामिदिने । ४ स्यादिति न जाने इति सम्बन्धः । ५ आवयोः। ६ स्वर्गे। ७ क्रीडामि। ८ स्वर्गे। १ सनियमः। १० गच्छ । ११ सनियमावावाम् । १२ सङगतेषु स्त्रीपुरुषेषु । १३ अतिशयेन सुखहेतुः। १४ संयुक्तस्त्रीपुरुषेषु । १५ अयस्सम्बन्धिनः । १६ पुरुषवियुक्ताः । १७ स्वाभिप्रायम् । १८ भणन्ति स्म । १६ मिथो भाषणः । २० प्रेम इव प्राणा येषां तैः ।
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