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चत्वारिंशत्तमं पर्व
चौलकर्म-
चौलकर्मण्यथो मन्त्रः स्याच्चोपनयनादिकम । मुण्डभागी भवान्तं च पदमादावनुस्मृतम् ॥ १४७॥ ततो निर्ग्रन्थमुण्डादिभागी भवपदं परम् । ततो निष्क्रान्तिमुण्डादिभागी भव पदं परम् ॥ १४८ ॥ स्यात्परमनिस्तारक केशभागी भवेत्यतः । परमेन्द्रपदादिश्च केशभागी भवध्वनिः ॥ १४६ ॥ परमार्हन्त्यराज्यादिकेशभागीति वाग्द्वयम् । भवेत्यन्तपदोपेतं मन्त्रोऽस्मिन्स्याच्छिखापदम् ॥ १५०॥ शिखामेतेन मन्त्रेण स्थापयेद्विधिवद् द्विजः । ततो मन्त्रोऽयमाम्नातो लिपिसङख्यान सङग्रहे ॥ १५१ ॥ चूर्णि: - उपनयनमुण्डभागी भव, निर्ग्रन्थमुण्डभागी भव, परमनिस्तारककेशभागी भव, परमेन्द्र केशभावी भव, परमराज्यकेशभागी भव, आर्हन्त्यराज्यकेशभागी भव । ( इति चौलक्रियामन्त्रः ) शब्दपरभागी भव श्रर्थपारभागी भव । पदं शब्दार्थ सम्बन्धपारभागी भवेत्यपि ॥ १५२ ॥
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चूर्णिः - शब्दपारगामी ( भागी) भव, अर्थपारगामी ( भागी) भव, शब्दार्थपारगामी ( भागी) भव, ( लिपिसंख्यानमंन्त्रः )
उपनीतिक्रियामन्त्रं स्मरन्तीमं द्विजोत्तमाः । परमनिस्तारकादिलिङ्गभागी भवेत्यतः ॥ १५३ ॥
की वर्षवृद्धि करनेवाला हो) और 'आर्हन्त्यराज्यवर्षवर्धनभागी भव' (अरहन्त पदवीरूपी राज्यके वर्षका बढ़ानेवाला हो ) || १४३-१४६॥
संग्रह-'उपनयनजन्मवर्षवर्धनभागी भव, वैवाहनिष्ठवर्षवर्द्धनभागी भव, मुनीन्द्रजन्मवर्ष वर्धनभागी भव, सुरेन्द्रजन्मवर्ष वर्धनभागी भव, मन्दराभिषेकवर्षवर्धनभागी भव, यौवराज्यवर्षवर्द्धनभागी भव, महाराज्यवर्ष वर्धनभागी भव, परमराज्यवर्षवर्धनभागी भव, आर्हन्त्यराज्यवर्ष वर्धनभागी भव' ।
अब चौलक्रिया के मन्त्र कहते हैं - जिसके आदिमें उपनयन शब्द है और अन्त में 'मुण्डभागी भव' शब्द है ऐसा पहला मन्त्र जानना चाहिये अर्थात् 'उपनयन मुण्डभागी भव' (उपनयन क्रियामें मुण्डन करनेवाला हो ) यह चौलक्रियाका पहला मन्त्र है || १४७ || फिर 'निर्ग्रन्थमुण्डभागी भव' (निर्ग्रन्थ दीक्षा लेते समय मुण्डन करनेवाला हो ) यह दूसरा मन्त्र है और उसके बाद 'निष्क्रान्तिमुण्डभागी भव' (मुनि अवस्थामें केशलोंच करनेवाला हो ) यह तीसरा मन्त्र है ।। १४८ ।। तदनन्तर 'परमनिस्तारककेशभागी भव' (संसारसे पार उतारनेवाले आचार्य के केशों को प्राप्त हो ) यह चौथा मन्त्र है और उसके पश्चात् परमेन्द्रकेशभागी भव ( इन्द्र पदके केशोंको धारण करनेवाला हो ) यह पाँचवाँ मन्त्र बोलना चाहिये ॥ १४९ ॥ इसके बाद ‘परमराज्यक्रेशभागी भव' (चक्रवर्तीके केशोंको प्राप्त हो) यह छठवाँ मन्त्र है और 'आईन्त्यराज्यकेशभागी भव' (अरहंत अवस्थाके केशोंको धारण करनेवाला हो ) यह सातवाँ मन्त्र बोलना चाहिये । द्विजोंको इन मन्त्रोंसे विधिपूर्वक चोटी रखवाना चाहिये । अब आगे लिपि - संख्यानके मन्त्र कहते हैं ।। १५० - १५१॥
संग्रह - 'उपनयनमुण्डभागी भव, निर्ग्रन्थमुण्डभागी भव, निष्क्रान्तिमुण्डभागी भव, परमनिस्तारककेशभागी भव, परमेन्द्रकेशभागी भव, परमराज्यकेशभागी भव, आर्हन्त्य राज्यकेशभागी भव' |
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लिपिसंख्यानके मन्त्र– ' शब्दपारभागी भव' ( शब्दोंका पारगामी हो), 'अर्थपारगामी भागी भव' (सम्पूर्ण अर्थका जाननेवाला हो ) और 'शब्दार्थ सम्बन्धपारभागी भव' (शब्द तथा अर्थ दोनोंके सम्बन्धका पारगामी हो) पद लिपिसंख्यान के समय कहने चाहिये ॥ १५२॥ संग्रह - 'शब्दपारगामी भव, अर्थपारगामी भव, शब्दार्थपारगामी भव' । उत्तम द्विज नीचे लिखे हुए मन्त्रोंको उपनीति क्रियाके मन्त्ररूपसे स्मरण करते हैं
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