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## Forty-fourth Chapter
Then one should utter "Swaha" to the Divyajata (one born divine). Then one should recite the word "Swaha" to the Divyarcyajata (one born with divine radiance). ||46||
Then one should utter "Swaha" to the Neminatha (Lord of the Wheel of Dharma). After that, one should remember the word "Swaha" to the Saudharma (Lord of the Saudharma heaven). ||50||
Then one should utter the word "Swaha" to the Kalpadhipati (Lord of the Kalpa). Then one should utter the word "Swaha" to the Anuchara (attendant of Indra) and so on. ||51||
Then one should utter the word "Swaha" to the Paramparendra (Lord of the lineage). Then one should recite the word "Swaha" to the Ahamindra (Lord of the Ahamindra heaven). ||52||
Then one should recite the word "Swaha" to the Paramārhata (one who is worthy of the highest). Then one should utter the word "Swaha" to the Anupama (one who is unparalleled). ||53||
Then one should utter the word Samyagdristi (one with right vision) twice. Similarly, one should utter the words Kalpapati (Lord of the Kalpa) and Divyamurti (one with divine form) twice. ||54||
Then one should utter the word Vajranaman (one with the name Vajra) twice and conclude with "Swaha". As before, one should recite the Kamya mantra at the end with three words. ||55||
**Summary:**
Satyajataaya Swaha, Arhajataaya Swaha, Divyajataaya Swaha, Divyarcyajataaya Swaha, Neminathaaya Swaha, Saudharmaaya Swaha, Kalpadhipataye Swaha, Anucharaaya Swaha, Paramparendraaya Swaha, Ahamindraaya Swaha, Paramārhataaya Swaha, Anupamaaya Swaha, Samyagdriste Samyagdriste Kalpapate Kalpapate Divyamurte Divyamurte Vajranaman Vajranaman Swaha.
May the fruit of service be the six supreme realms. May there be destruction of untimely death. May there be death in Samadhi.
(I offer this) One should recite this excellent verse. ||48||
Then one should utter "Divyajataaya Swaha" (I offer oblations to the one born divine). Then one should recite the word "Divyarcyajataaya Swaha" (I offer oblations to the one born with divine radiance). ||49||
Then one should utter "Neminathaaya Swaha" (I offer oblations to the Lord of the Wheel of Dharma, the Jina). After that, one should remember the word "Saudharmaaya Swaha" (I offer oblations to the Saudharma Indra). ||50||
Then one should utter "Kalpadhipataye Swaha" (I offer oblations to the Lord of the heaven). Then one should utter "Anucharaaya Swaha" (I offer oblations to the attendants of Indra). ||51||
Then one should utter "Paramparendraaya Swaha" (I offer oblations to the Indras of the lineage). Then one should recite "Ahamindraaya Swaha" (I offer oblations to the Ahamindra). ||52||
Then one should recite "Paramārhataaya Swaha" (I offer oblations to the supreme devotee of the Arhat). Then one should utter "Anupamaaya Swaha"
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चत्वारिंशत्तमं पर्व
ततश्च दिव्यजाताय स्वाहेत्येवमुदाहरेत् । ततो दिव्यार्च्यजाताय स्वाहेत्येतत्पदं पठेत् ॥४६॥ ब्रूपाच्च नेमिनाथाय स्वाहेत्येतदनन्तरम् । सौधर्माय पदं चास्मात्स्वाहोक्त्यन्तमनुस्मरेत् ॥५०॥ कल्पाधिपतये स्वाहापदं वाच्यमतः परम् । भूयोऽप्यनुचरायादि स्वाहाशब्दमुदीरयेत् ॥५१॥ ततः परम्परेन्द्राय स्वाहेत्युच्चारयेत्पदम् । सम्पठेदहमिन्द्राय स्वाहेत्येतदनन्तरम् ॥५२॥ ततः परमार्हताय स्वाहेत्येतत् पदं पठेत् । ततोऽप्यनुपमायेति पदं स्वाहापदान्वितम् ॥ ५३ ॥ सम्यग्दृष्टिपदं चास्माद् बोध्यन्तं द्विरुदीरयेत् । तथा कल्पतं चापि दिव्यमूर्ति च सम्पठेत् ॥ ५४ ॥ द्विर्वाच्यं वज्रनामेति ततः स्वाहेति संहरेत्' । पूर्ववत् काम्यमन्त्रोऽपि पाठ्योऽस्यान्ते त्रिभिः पदैः ॥ ५५ ॥
चूणिः- सत्यजाताय स्वाहा, श्रर्हज्जाताय स्वाहा, दिव्यजाताय स्वाहा, दिव्याच्यजाताय स्वाहा, नेमिनाथाय स्वाहा, सौधर्माय स्वाहा, कल्पाधिपतये स्वाहा, अनुचराय स्वाहा, परम्परेन्द्राय स्वाहा, अहमिन्द्राय स्वाहा, परमार्हताय स्वाहा, अनुपमाय स्वाहा, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे कल्पपते कल्पपते दिव्यमूर्त दिव्यमूर्ते वजूनामन् वज्रनामन् स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु, अपमृत्युविनाशनं भवतु, समाधिमरणं भवतु ।
समर्पण करता हूँ ) यह उत्कृष्ट पद पढ़ना चाहिये ||४८ || फिर 'दिव्यजाताय स्वाहा' (जिसका जन्म दिव्यरूप है उसे हवि समर्पण करता हूँ ) ऐसा उच्चारण करना चाहिये और फिर 'दिव्याचिर्जाताय स्वाहा' (दिव्य तेजःस्वरूप जन्म धारण करनेवालेके लिये हवि समर्पण करता हूँ ) यह पद पढ़ना चाहिये ॥ ४९ ॥ तदनन्तर 'नेमिनाथाय स्वाहा' (धर्मचक्रको धुरी के स्वामी जिनेन्द्रदेवको समर्पण करता हूँ ) यह पद बोलना चाहिये और इसके बाद 'सौधर्माय स्वाहा' (सौधर्मेन्द्रके लिये समर्पण करता हूँ) इस मन्त्रका स्मरण करना चाहिये ॥ ५० ॥ फिर 'कल्पाधिपतये स्वाहा (स्वर्गके अधिपतिके लिये समर्पण करता हूँ ) यह मन्त्र कहना चाहिये और उसके बाद 'अनुचराय स्वाहा' (इन्द्रके अनुचरोंके लिये समर्पण करता हूँ ) यह शब्द बोलना चाहिये ॥५१॥ फिर ‘परम्परेन्द्राय स्वाहा' (परम्परासे होनेवाले इन्द्रोंके लिये समर्पण करता हूँ ) इस पदका उच्चारण करे और उसके अनन्तर 'अहमिन्द्राय स्वाहा' (अहमिन्द्रके लिये समर्पण करता हूँ ) यह मन्त्र अच्छी तरह पढ़े ॥ ५२ ॥ | फिर परार्हताय स्वाहा' (अरहन्तदेवके परमउत्कृष्ट उपासकको समर्पण करता हूँ ) यह मन्त्र पढ़ना चाहिये और उसके पश्चात् ‘अनुपमाय स्वाहा' (उपमारहित के लिये समर्पण करता हूँ ) यह पद बोलना चाहिये ॥ ५३ ॥ तदनन्तर सम्बोधनान्त सम्यग्दृष्टि पदका दो बार उच्चारण करना चाहिये तथा सम्बोधनान्त कल्पपति और दिव्यमूर्ति शब्दको भी दो दो बार पढ़ना चाहिये इसी प्रकार सम्बोधनान्त वज्रनामन् शब्द को भी दो बार बोलकर स्वाहा शब्दका उच्चारण करना चाहिये और अन्तमें तीन तीन पदों के द्वारा पहले के समान काम्य मन्त्र पढ़ना चाहिये अर्थात् सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे कल्पपते कल्पपते दिव्यमूर्ते दिव्यमूर्ते वज्रनामन् वज्रनामन् स्वाहा ( हे सम्यग्दृष्टि, हे स्वर्गके अधिपति, हे दिव्यमूर्तिको धारण करनेवाले, हे वज्रनाम, मैं तेरे लिये हवि समर्पण करता हूँ ) यह बोलकर काम्य मन्त्र पढ़ना चाहिये ।।५४-५५ ॥
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ऊपर कहे हुए सुरेन्द्र मन्त्रोंका संग्रह इस प्रकार है
'सत्यजाताय स्वाहा, अर्हज्जाताय स्वाहा, दिव्यजाताय स्वाहा, दिव्याचिर्जाताय स्वाहा, नेमिनाथाय स्वाहा, सौधर्माय स्वाहा, कल्पाधिपतये स्वाहा, अनुचराय स्वाहा, परम्परेन्द्राय स्वाहा, अहमिन्द्राय स्वाहा, परमार्हताय स्वाहा, अनुपमाय स्वाहा, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे कल्पपते कल्पपते दिव्यमूर्ते दिव्यमूर्ते वज्रनामन् वज्रनामन् स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु १ सम्यग् ब्रूयात् । २ षट् परमस्थानेत्यादिभिः ।
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